रेवाड़ी। आपातकाल का काला दौर मुझे आज भी अच्छे तरीके से याद है। मैं उस समय रोहतक में चल रहे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के शिविर में हिस्सा ले रहा था। 25 जून 1975 की मध्यरात्रि को आपातकाल की घोषणा कर दी गई। आरएसएस के बड़े नेताओं को गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया गया था। शिविर में हिस्सा ले रहे सभी स्वयं सेवकों को निर्देश दिए गए कि सभी लोग वेष बदलकर इधर-उधर रहेंगे तथा आपातकाल के खिलाफ संघर्ष करेंगे।
पत्रिका को घर-घर पहुंचाने की मिली थी जिम्मेदारी
उस दौर में सत्ता के मद में चूर लोगों ने लोकतंत्र का पैरों तले कुचलकर रख दिया था। समाचारपत्रों तक पर सेंसरशिप लगा दी गई थी। उस समय संघ की तरफ से दर्पण नाम की पत्रिका निकाली जा रही थी। इस पत्रिका में आपातकाल का काला चेहरा उजागर किया जा रहा था तथा जिन-जिन लोगों को गिरफ्तार किया जा रहा था,उनके बारे में जानकारी दी जा रही थी। जींद, हिसार व सिरसा में संघ कार्यकर्ताओं के पास उस पत्रिका को पहुंचाने की जिम्मेदारी मेरी थी। मैं छिप-छिपकर पत्रिका पहुंचाता रहा। मैंने अपना नाम बदलकर रमेश रख लिया तथा जींद में एक गोशाला में अपना केंद्र बनाया। यहां आसपास के 25 बच्चों को लेकर मैंने गोपाल विद्या मंदिर के नाम से स्कूल की शुरूआत की। यहां बच्चों को भी पढ़ाता रहा तथा आपातकाल के खिलाफ लड़ाई भी लड़ता रहा।
सीएम के सामने की थी नारेबाजी
दिसंबर 1975 में बनारसीदास गुप्ता प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे। मुख्यमंत्री बनने के बाद जून 1976 के आसपास वे हिसार आए थे। हिसार में उनकी जनसभा चल रही थी और मैं अपने पांच साथियों के साथ उनकी जनसभा में ही पहुंच गया। जनसभा में मैंने बनारसीदास गुप्ता के सामने ही भारत माता के जयकारे लगाए तथा आपातकाल के खिलाफ नारेबाजी की। सीएम के आदेश पर मुझे व मेरे साथियों को उसी समय पकड़ लिया गया। पुलिस ने पब्लिक के बीच में ही हमारे ऊपर लाठियां बरसाई। फिर थाने में ले जाकर इतनी बुरी तरह से पीटा गया कि मेरा पैर तक तोड़ डाला। पेट में भी चोटें मारी गई थी। हालत खराब होने पर मुझे अस्पताल में भी भर्ती कराया गया था। करीब पांच महीनों तक मुझे जेल में रखा गया। वो काले दिन कभी भुलाए नहीं जा सकेंगे।
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