सत्यखबर, नई दिल्ली
महंगी चीजों में हीरे-जवाहरात का नाम तो सभी ने सुना होगा पर किसी केकड़े का नाम सुना है। नहीं तो अब सुनिए और जानिए की केकड़ा और उसका खून अति महंगी चीज है ये इसकी पुष्टी वैज्ञानिक आधार है। आपको बता दें कि दुनिया की कई महंगी चीजों में शुमार है हॉर्सशू केकड़े का खून। इसकी वजह खास है। इस खून का इस्तेमाल मेडिकल फील्ड में होता है। इस खून की कई विशेषताएं हैं जो इसे हीरे-जवाहरात से महंगा बना देते हैं।
इस केकड़े का नाम हॉर्सशू क्रैब यानी कि घोड़े के नाल वाला केकड़ा है। इसका आकार घोड़े के नाल की तरह है तभी इसे हॉर्सशू क्रैब का नाम मिला हुआ है। आप सोच रहे होंगे कि खून किसी जीव का हो होता तो लाल ही होगा। ऐसा सोचते हैं तो आप गलत हैं। इस केकड़े का खून नीले रंग का होता है। यही नीला रंग इसे खास बनाता है। किसी भी चीज में वैक्टीरिया की मिलावट है, अगर इसे पता करना हो तो केकड़े के खून की तनिक मात्रा इस मिलावट को फ ौरन पकड़ लेती है। यही कारण है कि हॉर्सशू क्रैब का खून मेडिकल फील्ड में सबसे ज्यादा इस्तेमाल होता है।
इस खून की मांग इतनी ज्यादा है कि एक गैलन लगभग 4 लीटर की कीमत 60000 डॉलर या 44 लाख रुपये है। एक लीटर का दाम तकरीबन 11 लाख रुपये है। अब सवाल है कि इस केकड़े का खून इतना मंहगा क्यों है। कौन लोग इनती ऊंची कीमत देकर केकड़े का नीला खून खरीदते हैं। दरअसल इस खून में कॉपर बहुत ज्यादा मात्रा में पाया जाता है इसलिए इसका रंग गहरा नीला होता है हालांकि कॉपर ही इस खून की सबसे बड़ी खासियत नहीं है।
इसमें बहुत ही खास मिलावट की पहचान करने वाला केमिकल होता है। जिसे लिमुलस एमिबेकाइट लाइसेट या एलएएल कहते हैं। जब तक एलएएल का पता नहीं चला था तब तक वैज्ञानिकों को वैक्सीन या मेडिकल टूल में किसी वैक्टीरिया की मिलावट के बारे में पता करने में परेशानी होती थी। जैसे कि ईण् कोलाई या सालमोनेला की मिलावट हो तो उसे पकड़ पाने में भारी मुश्किल होती थी।
वैज्ञानिक वैक्सीन की टेस्टिंग के लिए कई खरगोशों को इंजेक्शन देते थे और लक्षणों का इंतजार करते थे। ये लक्षण कुछ ही देर में खरगोशों में दिखने लगते थे। लेकिन 1970 में एलएएल के इस्तेमाल को मंजूरी मिल गईण्। इसके बाद मेडिकल की दुनिया में बहुत कुछ बदल गया। हॉर्सशू के खून से निकाले गए एलएएल की कुछ बूंदें मेडिकल डिवाइस या वैक्सीन पर डाली जाती हैं। डाले जाने के कुछ ही सेकेंड बाद एलएएल किसी भी ग्राम निगेटिव बैक्टीरिया को जेली कोकून में कैद कर देता है। एलएएल बैक्टीरिया को मार देता है और जेली कोकून मरे बैक्टीरिया को चारों ओर से घेर लेता है। एलएएल से वैक्सीन या मेडिकल टूल में उस संभावित खतरे के बारे में पहले ही पता चल जाता है जिससे बाद में जान भी जा सकती है।
इस प्रक्रिया के जरिये एलएएल संक्रमण पर रोक लगाता है जो प्राणघातक भी हो सकता है। एलएएल ज्यादा मात्रा में निकाला जा सके। इसके लिए बड़ी मात्रा में हॉर्सशू क्रैब पकड़े जाते हैं। दुनिया के समुद्री क्षेत्रों में मेडिकल इंडस्ट्री से जुड़े बोट और जहाज दिन-रात हॉर्सशू क्रैब पकड़ते हैं। हर साल मेडिकल इंडस्ट्री लगभग 600000 हॉर्सशू क्रैब पकड़ती है। इन केकड़ों में से 30 परसेंट से खून निकाला जाता है। 30 परसेंट केकड़े ऐसे होते हैं जो इस टेस्ट में पास नहीं होते और खून निकाले जाने के दौरान मर जाते हैंख् जो केकड़े जिंदा बच जाते हैं उन्हें फिर से समुद्र में छोड़ दिया जाता है। बाद में यह पता नहीं चलता कि समुद्र में जाने के बाद वे केकड़े कितनी जल्दी रिकवर करते हैं या रिकवर कर भी पाते हैं या नहीं।
इन केकड़ों की उपयोगिता को देखते हुए इंटरनेशनल यूनियन फॉर दि कन्जर्वेशन ऑफ नेचर ने अमेरिकन हॉर्सशू क्रैब को खतरे की श्रेणी या रेड लिस्ट में डाल दिया है। माना जा रहा है कि अमेरिका में इन केकड़ों की संख्या लगातार घट रही है और अगले 40 साल में इसकी आबादी 30 परसेंट तक घट जाएगी। एलएएल पर जो कंपनियां काम करती हैं उनका मानना है कि समुद्र में छोड़े जाने के बाद केकड़े रिकवर करते हैं लेकिन कुछ नई स्टडी बताती है कि सभी केकड़े खुशकिस्मत नहीं होते। वैज्ञानिकों का कहना है कि समुद्र में छोड़े जाने के कुछ ही दिन में 10-25 परसेंट तक केकड़े मर जाते हैं। ये क्रैब कुछ महीनों तक कमजोर रहते हैं, अगर ये केकड़े दो हफ्ते तक स्वस्थ रहें तो फिर से अपनी पुरानी जिंदगी में लौट जाते हैं।
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