सत्य खबर, नई दिल्ली
जापान में करीब 15 लाख लोग आइसोलेट यानी अकेले रह रहे हैं. लोगों के इस अलगाव को हिकिकोमोरी का नाम दिया गया है. यहां के लोग किसी भी तरह के सोशल कॉन्टेक्ट करने से बच रहे हैं, जिससे मेंटल हेल्थ को चिंता जताई जा रही है. बीते साल नवंबर में किए गए कैबिनेट ऑफिस के एक सर्वे के अनुसार, COVID-19 महामारी को कुछविशिष्ट घटनाओं के लगभग पांचवें हिस्से से जोड़ा गया है, जिसमें नौकरी छोड़ना भी शामिल है.
10 से 69 वर्ष की उम्र के 30 हजार जापानी नागरिकों पर किए गए सर्वे में आगे पता चला कि 15 से 62 आयु वर्ग के 2 प्रतिशत व्यक्ति हिकिकोमोरी थे यानी इन लोगों को अलग रहना पसंद है.
जापान में होंगे सोशल इवेंट्स
हिकिकोमोरी को लेकर जापान की लोकल ऑथोरिटी की प्रतिक्रिया भी आई है. ऑथोरिटी के मुताबिक, जून महीने में एडोगावा के टोक्यो वार्ड में मेटावर्स के जरिए सोशल इवेंट्स करवाए जाएंगे, जिससे 2 फीसदी हिकिकोमोरी जुड़ सकते हैं. साल 2021 के एक अध्ययन के अनुसार, ये वार्ड 9 हजार से ज्यादा हिकिकोमोरी लोगों का घर है. इन लोगों में वो स्टूडेंट्स भी शामिल हैं, जिन्होंने क्लास में जाना बंद कर दिया है.
कब आया हिकिकोमोरी शब्द
हिकिकोमोरी शब्द जापान में 1990 के दशक में सामने आया था. जापान में जो लोग समाज या घरों से अलग रहने लगे थे, उनके बारे में बताने के लिए हिकिकोमोरी नाम का ये नया शब्द जोड़ा गया. हालांकि, हिकिकोमोरी कोई क्लीनिकल डाइगनोस नहीं है बल्कि ये एकसामाजिक घटना है. मनोवैज्ञानिकों की मानें तो हिकिकोमोरी एंग्जायटी, डिप्रेशन और बुली करने जैसे तमाम सोशल फैक्टर्स के कारण ट्रिगर हो सकता हैं.
ये भी है कारण
यह भी माना जाता है कि कुछ खास तरह की पर्सनालिटी भी हिकिकोमोरी सिंड्रोम से प्रभावित होने के जोखिम को बढ़ा सकती हैं. इनमें जरूतत से ज्यादा शर्मीला होना शामिल है. जापान में कई युवा लोग स्कूल में बेहतरीन परफॉर्मेंस और अच्छी नौकरियों के लिएएकेडमिक प्रेशर का सामना कर रहे हैं, जिससे एंग्जायटी और स्ट्रेस के मामले बढ़ रहे हैं. जापान की वर्क कल्चर भी काफी इंटेस है. यहां लंबे समय तक काम करना और करियर में सीमित उन्नति के अवसर भी बर्नआउट के का कारण बन सकते हैं.
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