सत्यखबर,जींद
जींद की सबसे मजबूत कंडेला खाप में रविवार को फूट हो गई। एक सप्ताह पहले एक गुट ने ओमप्रकाश कंडेला को खाप का प्रधान बनाया था तो दूसरे गुट ने रविवार को धर्मपाल कंडेला को प्रधान नियुक्त कर दिया। इससे साफ है कि अब यह खाप बिखरने की कगार पर पहुंच गई है। पांच वर्ष पहले 28 गांवों की कंडेला खाप से 14 गांव अलग होकर माजरा खाप बना ली थी। अब बाकी बचे 14 गांवों में भी दो प्रधान बन गए हैं। इस पूरे घटनाक्रम को काफी लोगों ने शर्मनाक बताया और खापों पर राजनीति हावी होने के संकेत दिए हैं।
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रविवार को दालमवाला गांव में पंचायत हुई, जिसमें पूर्व प्रधान टेकराम कंडेला को फिर से प्रधान बनाने पर विचार हुआ, लेकिन उन्होंने मना कर दिया। इसके बाद रामदिया खोखरी व महताब अहलावत ने धर्मपाल कंडेला के नाम का प्रस्ताव रखा, जिसे सर्वसम्मति से पारित कर दिया। इसके बाद सभी ने धर्मपाल कंडेला को प्रधान नियुक्त कर दिया।
धर्मपाल कंडेला ने कहा कि वह तन, मन तथा धन से खाप की चौकीदारी करेंगे। खाप किसी भी राजनीतिक गतिविधि में भाग नहीं लेगी। पूर्व प्रधान टेकराम कंडेला ने कहा कि वह 29 साल तक खाप के प्रधान रहे हैं। अब वह अपने निजी कारणों के चलते यह जिम्मेदारी नहीं उठा सकते। इसलिए लोगों ने सर्वसम्मति से धर्मपाल कंडेला को प्रधान नियुक्त किया है। वहीं दूसरी तरफ एक सप्ताह पहले गांव कंडेला में पंचायत हुई थी जिसमें ओमप्रकाश कंडेला को प्रधान नियुक्त किया गया था। ओमप्रकाश कंडेला गुट ने रविवार को जाट धर्मशाला में पत्रकारों से बातचीत में कहा कि इस प्रकार से दूसरा प्रधान नियुक्त करना खाप में फूट डालने के लिए किया गया है। यदि दालमवाला गांव में पंचायत ही करनी थी तो उनको भी बुलाना चाहिए था। सभी लोगों को मिलकर केवल एक ही प्रधान बनाना चाहिए था। यह सबकुछ लोगों ने अपने स्वार्थ की राजनीति से प्रेरित होकर किया है।
एडवोकेट ईश्वर लोहचब ने कहा कि टेकराम कंडेला ने दूसरा प्रधान बनाकर कंडेला खाप पर कलंक लगाने का काम किया है। यह सब किसान आंदोलन को तोड़ने के लिए किया जा रहा है। टेकराम कंडेला जजपा व भाजपा के समर्थक हैं, इसलिए ऐसा कर रहे हैं। जगत सिंह रेढू ने कहा कि किसी भी सूरत में खाप को बंटने नहीं दिया जाएगा।कंडेला खाप के तहत पहले 28 गांव आते थे। बाद में खेड़ा खाप के नाम से 14 गांव अलग हो गए। लेकिन अब भी यह लोग एक ही नजर आते हैं। यह सभी गांव तीन विधानसभा क्षेत्र जींद, उचाना और जुलाना में फैले हैं। ऐसे में राजनीतिक रूप से भी कंडेला खाप की खास भूमिका रहती है। वहीं 2001 में हुए किसान आंदोलन में कंडेला गांव ही केंद्र रहा। इसके बाद से कंडेला खाप को नई पहचान मिली है। अब दो-दो प्रधान होने से खाप की वह ताकत नहीं रह गई है। कंडेला खाप में हुई इस खींचतान का सीधा असर किसान आंदोलन पर पड़ेगा।
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