सत्यखबर, नरवाना (सन्दीप श्योरान) :-
हरियाणा की जनता सीधा सवाल पूछ रही है, प्रदेश सरकार शराब घोटाले की जांच कर रही है या ऑपरेशन कवरअप। पूरे हरियाणा में शराब घोटाले की परतें उजागर हो चुकी हैं। पर जानबूझकर शराब घोटाले को स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम व स्पेशल इंक्वायरी टीमज के पचड़े में फंसा दिया गया। अब एक बार फिर स्पेशलइंक्वायरी टीम को सीआरपीसी की धारा 32 में शक्तियां देने या न देने का स्वांग रच पूरे मामले पर पर्दा डालने की साजिश की जा रही है। यह बात कांगेे्रस के राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी रणदीप सुरजेवाला ने प्रेस कांफ्रेस में कही। उन्होंने कहा कि इसका सबूत है कि प्रदेश सरकार ने फाईल को एलआर व एडवोकेट जनरल से कानूनी राय लेने के बीच मेंएक फुटबॉल बना रखा है। पूरा मामला इस षडयंत्रकारी तरीके से उलझा दिया कि स्पेशल इंक्वायरी टीम को सीआरपीसी की धारा 32 में शक्तियां दी जा सकती हैं या नहीं। दूसरी ओर स्पेशल इंक्वायरी टीम के प्रमुख सदस्य एडीजीपी सुभाष यादव 31 मई को रिटायर हो जाएंगे। साफ है कि शराब माफिया द्वारा लॉकडाऊन पीरियड में सैकड़ों करोड़ की नाजायज शराब बेचने पर पर्दा डालने की साजिश चल रही है। हरियाणा की जनता तो कह रही है कि, लीपा पोती जाँच, ताकि किसी को न आए आंच। लगता है कि शराब माफिया को व उनसे जुड़े सरकार में बैठे व्यक्तियों को बचाने का प्रयास किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि यदि यह सच नहीं, तो हरियाणा की जनता मुख्यमंत्री से 7 सवालों के जवाब मांगती है, जिसमें शराब घोटाले में स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम को खारिज कर स्पेशल इंक्वायरी टीम का गठन क्यों किया गया? क्या यह सही नहीं कि स्पेशल इंक्वायरी टीम को मात्र रिकॉर्ड देखने व पूछ ताछ का इख्तियार है, जबकि स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम शराब घोटाले की तह तक जाकर गहन पड़ताल कर सकती थी?क्या यह सही नहीं कि स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम का गठन क्रिमिनल प्रोसीजर कोड, 1973 की धारा 2(एच) व 2(ओ) के तहत किया जा सकता है तथा इस एसआईटी को शराब घोटाले वाले हर गोदाम में जाकर व्यापक जाँच करने, कागजात जब्त करने, रेड करने, एक्साईज विभाग व पुलिस विभाग के रिकॉर्ड को खंगालने तथा दोषियों की गिरफ्तारी का व्यापक अधिकार होता? पर जब मौजूदा स्पेशल इंक्वायरी टीम को उपरोक्त शक्तियां हैं ही नहीं, तो यह शराब घोटाले की जाँच कैसे कर पाएगी? क्या यह सही नहीं कि आपराधिक मामलों में जांच के लिए इंक्वायरी टीम का गठन कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसीजर, 1973 की धारा 2 (जी) के तहत केवल अदालत या मजिस्ट्रेट द्वारा ही किया जा सकता है? तो फिर ऐसे में प्रदेश सरकार द्वारा बनाई गई स्पेशल इंक्वायरी टीम क्या मात्र एक प्रशासनिक इंक्वायरी करने तक सीमित नहीं है? ऐसे में शराब घोटाले की जाँच कौन और कैसे करेगा? क्या यह सही नहीं कि मुख्यमंत्री मनोहर लाल द्वारा बनाई स्पेशल इंक्वायरी टीम के एडीजीपी सुभाष यादव तो 31 मई, 2020 को ही यानि अगले 5 दिन में रिटायर हो जाएंगे? तो ऐसे में पूरे प्रदेश में फैले शराब घोटाले की जाँच होगी कैसे, खासतौर से जबकि इस स्पेशल इंक्वायरी टीम को पिछले 2वर्षों तक का रिकॉर्ड खंगालना है? प्रदेश सरकार ने स्पेशल इंक्वायरी टीम को धारा 32 सीआरपीसी में शक्तियां देने या न देने को लेकर फाईल की फुटबॉल क्यों बना रखी है? क्या यह मामला एलआर व एडवोकेट जनरल के बीच इसलिए उलझाया जा रहा है, ताकि पूरे मामले को ही रफा दफा किया जा सके। क्या मुख्यमंत्री मनोहर लाल की शराब घोटाले पर पूर्णतया चुप्पी कहीं न कहीं पूरे मामले को रफा दफा करने तथा सरकार में बैठे राजनीतिज्ञों व अफसरों को बचाने बारे मूक सहमति को जताती है?
प्रदेश सरकार के साढे 5 सालों में घोटालों की जांच नहीं हुई पूर्ण
रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि प्रदेश सरकार के 5.5 वर्षों में किसी मामले या घोटाले की जाँच न संपूर्ण हुई और न ही नतीजा सामने आया। इसका सबूत धान घोटाला पार्ट 1, माईनिंग घोटाला, गुडग़ांव-फरीदाबाद-अरावली पहाड़ कॉलोनाईजेशन घोटाला, एससी छात्रवृत्ति घोटाला, कुछ महीने पहले हुआ धान घोटाला हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्यामौजूदा शराब घोटाला भी इसी लीपा-पोती व जाँच पर परदा डालने की नीति की भेंट चढ़ जाएगा? मुख्यमंत्री के जवाब का इंतजार रहेगा।
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