उत्तराखंड में सत्ताधारी बीजेपी सत्ता में वापसी के लिए हर समीकरण को साधने में जुटी है। इसके लिए पार्टी हर मोर्च पर विपक्ष की घेराबंदी की रणनीति बना चुकी है। युवा सीएम पुष्कर सिंह धामी को कमान सौंपने के साथ ही बीजेपी डेमेज कंट्रोल को भी लगातार नौकरशाही से लेकर पार्टी स्तर और संवैधानिक पदों पर भी सभी समीकरणों को साधने की कोशिश कर रही है। केन्द्र की मोदी सरकार से किसानों की नाराजगी से भी बीजेपी को अपनी चुनावी रणनीति बदलनी पडी हैा इसके साथ ही कांग्रेस की परिवर्तन रैली में किसानों और सिख समुदायों का जिस तरह से कांग्रेस को समर्थन मिला हैा उसके बाद भी बीजेपी माेर्चाबंदी करने में जुटी हैा शुरूआत पुष्कर सिंह धामी के सीएम बनने के बाद से हुई जब नौकरशाही में बड़ा फेरबदल करते हुए मुख्य सचिव एसएस संधू को बनाया गया।
एसएस संधू सिख समुदाय से आते हैं, जो कि साफ, स्वच्छ, तेजतर्रार छवि का अधिकारी बताकर बीजेपी ने सीएम बदलने के साथ ही नया मैसेज देने की कोशिश की। हाल ही में पार्टी ने चुनाव प्रभारी नियुक्त किए इसमें सरदार आरपी सिंह को सह प्रभारी बनाया गया। आरपी सिंह भी सिख नेता हैं। अब राज्यपाल पद पर सिख समुदाय और आर्मी बैकग्राउंड से रिटायर लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह को उत्तराखंड लाना बीजेपी की चुनावी रणनीति का ही हिस्सा बताया जा रहा है। रिटायर लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह के बहाने बीजेपी सिख समुदाय, सेना से जुड़े परिवारों को भी चुनावी मैसेज देने में सफल रहे हैं। किसानों के केन्द्र की बीजेपी सरकार से नाराजगी का असर विधानसभा चुनाव होने वाले राज्यों में भी साफ देखा जा रहा है। उत्तराखंड भी इससे अछूता नहीं है। उत्तराखंड में किसानों के हरिद्वार, नैनीताल, यूएसनगर, देहरादून जैसे जिलों में सीधा-सीधा असर है।
इसके साथ ही सिख समुदायों का भी उत्तराखंड में मैदानी, तराई जिलों के अलावा पर्यटन और तीर्थाटन पर प्रभाव है। सिख समुदायों का उत्तराखंड में पवित्र धाम हेमकुंड साहिब भी है। इस कारण सिख समुदायों का उत्तराखंड से अलग लगाव है। यही कारण है कि उत्तराखंड के पहले राज्यपाल सुरजीत सिंह बरनाला को बनाया गया था। अब रिटायर लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह को उत्तराखंड राजभवन लाकर बीजेपी ने पार्टी की छवि के अनुरूप नई रणनीति पर फोकस किया है। कांग्रेस की तराई क्षेत्र में परिवर्तन यात्रा और पूर्व सीएम हरीश रावत का पंजाब के साथ ही सिख समुदायों को लेकर चुनावी रणनीति से भी बीजेपी की चुनावी टेंशन बढ़ी हुई है। परिवर्तन यात्रा में कांग्रेस को सिखों का खासा सपोर्ट मिला। जिसके बाद कांग्रेस खेमा उत्साहित नजर आया। हरीश रावत पंजाब कांग्रेस के प्रभारी होने की वजह से भी सिख समुदायों पर खासा फोकस कर रहे हैं। सिख समुदायों का उत्तराखंड और पंजाब दोनों जगह अपना अपना प्रभाव हैा हरीश रावत का सिख समुदायों को अपने पक्ष में करने की रणनीति उत्तराखंड ही नहीं पंजाब के चुनाव में भी काम आ सकता है। इसी को देखते हुए बीजेपी ने सिख समुदायों पर विशेष रणनीति के तहत निर्णय लिए हैं।
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