सत्यखबर
किसान आंदोलन को शुरुआत में जिस तरह अविवादित होने पर मिसाल पेश की जा रही थी, अब आंदोलन के साथ लगातार विवाद जुड़ते जा रहे हैं। किसान नेता जब भी आंदोलन को तेज करने के लिए कोई कड़ा कदम उठाते हैं तभी नया विवाद शुरू हो जाता है। यही वजह है कि सरकार के साथ बातचीत का रास्ता नहीं खुल रहा है। जहां पहले दिल्ली में ट्रैक्टर परेड के दौरान बवाल हुआ तो उसके बाद किसान नेताओं में आपसी खींचतान शुरू हो गई। वहीं अब किसानों ने सरकार पर दबाव बनाने के लिए बॉर्डर पर दोबारा से भीड़ जुटानी शुरू की तो अब युवती संग दुष्कर्म होने से नया विवाद खड़ा हो गया है।
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जिससे सरकार पर दबाव बनाकर बातचीत का रास्ता खोलने की जगह नेताओं को आंदोलन की छवि सुधारने में लगना पड़ रहा है। इस तरह आंदोलन जितना लंबा होता जा रहा है, उतने ही विवाद भी उससे जुड़ते जा रहे हैं।कृषि कानून रद्द कराने के लिए किसानों ने आंदोलन शुरू किया तो 26 जनवरी से पहले तक इस आंदोलन को अविवादित होने की मिसाल दी जाती थी। इसलिए ही उससे पहले तक सरकार व किसानों के बीच 11 दौर की बातचीत भी हुई, जिससे किसानों की मांगों पर कोई हल निकाला जा सके। लेकिन किसान आंदोलन से सबसे पहला विवाद 26 जनवरी को दिल्ली में ट्रैक्टर परेड के दौरान बवाल होने का जुड़ा तो उसके बाद पंजाब, हरियाणा व यूपी के किसान नेताओं के बीच खींचतान खुलकर सामने आने लगी।
उसका भी आंदोलन पर बड़ा असर पड़ा। इस तरह के विवाद आंदोलन से जुड़ने के कारण बंद हुआ सरकार से बातचीत का रास्ता खोलने के लिए किसानों ने सड़कों से लेकर रेलवे ट्रैक तक जाम किया तो भारत बंद भी कराया। उसके बाद भी बातचीत का रास्ता नहीं खुल सका और दोनों एक-दूसरे के आगे आकर बातचीत का प्रस्ताव रखने का इंतजार करते रहे। लेकिन उम्मीद जताई जा रही थी कि पांच राज्यों के चुनाव के बाद सरकार से बातचीत का रास्ता खुल सकता है और उसके लिए ही बॉर्डर पर दोबारा से भीड़ जुटानी शुरू की गई थी। इस बीच ही बंगाल की युवती से टीकरी बॉर्डर पर दुष्कर्म होने के कारण किसान आंदोलन से नया विवाद जुड़ गया। ऐसे में किसानों का बॉर्डर पर भीड़ जुटाकर सरकार पर दबाव बनाने की योजना भी फेल होती दिख रही है। क्योंकि इस समय युवती के साथ दुष्कर्म के कारण खराब हुई आंदोलन की छवि को सुधारने में सभी किसान नेता लगे हुए हैं। इस विवाद से आंदोलन को अलग करने के बाद ही किसान नेता कोई बड़ा फैसला लेंगे और सरकार से बातचीत का रास्ता खोलने का प्रयास करेंगे। क्योंकि किसान नेताओं को खुद भी लगता है कि जिस तरह से आंदोलन के साथ विवाद जुड़ रहे हैं, ऐसे में बातचीत शुरू होना मुश्किल है।
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