सत्य खबर, काबुल । तालिबान की स्थापना करने वाले संस्थापकों में एक संस्थापक ने इस्लाम की अजीबोगरीब व्याख्या कर लगता है इस्लाम को बदनाम करने की ‘सुपारी’ ले चुका है। तालिबान ने कहा है कि वो पुराने तरीके से ही सजा देगा, जिसमें महिलाओं को पत्थर मारना और चोरी करने पर हाथ काट देना शामिल है। तालिबान के संस्थापक ने कहा है कि हाथ काटना बेहद जरूरी है। तालिबान के इस बयान के बाद अब इसमें कोई शक नहीं रह गया है कि ये आतंकवादी संगठन बिल्कुल भी नहीं बदला है।
हाथ काटना बेहद जरूरी’ तालिबान के संस्थापकों में से एक और इस्लामी कानून की कठोर व्याख्या करने के लिए कुख्यात तालिबान ने जब 1996 में अफगानिस्तान की सत्ता संभाली थी, उस वक्त ये क्रूर शासन के लिए पूरी दुनिया में कुख्यात था। तालिबान के लिए किसी को फांसी देना, पत्थर से पीटकर मार देना और हाथ काट देना कोई बड़ी बात नहीं थी, लेकिन इस बार काबुल पर कब्जा करने के बाद तालिबान ने ‘उदार’ होने का दावा किया था। लेकिन, हर वादे की तरह, तालिबान ने अपने इस वादे को भी तोड़ दिया है। एसोसिएटेड प्रेस के साथ एक इंटरव्यू में मुल्ला नूरुद्दीन तुराबी ने कहा है कि ‘हाथ काटना बेहद जरूरी है।’
स्टेडियम में फांसी नहीं तालिबान के मंत्री बने मुल्ला नूरूद्दीन तुराबी ने हालांकि इस बार कहा है कि वो सार्वजनिक जगहों पर किसी कैदी को फांसी नहीं देगा। बल्कि, कैदियों को फांसी अब जेल में ही दी जाएगी। पहले तालिबान किसी स्टेडियम में या फिर सड़कों पर किसी शख्स को फांसी देकर उसकी लाश को चौराहों पर लटका देता था। तुराबी ने एसोसिएटेड प्रेस से काबुल में बात करते हुए कहा कि, “स्टेडियम में दंड के लिए सभी ने हमारी आलोचना की, लेकिन हमने उनके कानूनों और उनकी सजा के बारे में कभी कुछ नहीं कहा।” उसने कहा कि, “कोई हमें नहीं बताएगा कि हमारे कानून क्या होने चाहिए। हम इस्लाम का पालन करेंगे और हम कुरान पर अपने कानून बनाएंगे”
1990 के दशक में लौटा तालिबान जब से तालिबान ने 15 अगस्त को काबुल पर कब्जा किया और अफगानिस्तान पर राज कायम किया है, तब से अफगानिस्तान के लोग और दुनिया यह देख रही है, कि क्या वे 1990 के दशक के अंत के अपने कठोर शासन को फिर से बनाएंगे या नहीं। तुराबी की टिप्पणियों ने साफ कर दिया है कि, तालिबान बिल्कुल भी नहीं बदला है और वो उसी तरह से बर्बरता करता रहेगा, जैसा कि वो पहले करता था। तालिबान ने पश्चिमी देशों के द्वारा बनाए गये टेक्नोलॉजी को भले ही जहर उगलते उगलते हुए भी स्वीकार कर लिया हो, लेकिन उसकी कट्टरपंथी सोच अब भी वही है।
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कौन है मुल्ला नूरुद्दीन तुराबी?
आपको बता दें कि, मुल्ला नूरुद्दीन तुराबी अपने शुरुआती 60 के दशक में, तालिबान के पिछले शासन के दौरान न्याय मंत्री और कथित तौर पर इस्लाम का प्रचार करने वाला और तालिबान की धार्मिक पुलिस का प्रमुख हुआ करता था। उस समय, दुनिया तालिबान की सजा की निंदा करती थी, जो काबुल के खेल स्टेडियम में या विशाल ईदगाह मस्जिद के मैदान में लोगों की दी जाती थी। जिसमें अक्सर सैकड़ों अफगान पुरुष शामिल होते थे। सजायाफ्ता कैदियों की फांसी आमतौर पर सिर पर एक ही गोली मारकर की जाती थी, जिसे पीड़ित परिवार द्वारा अंजाम दिया जाता था, जिसके पास “ब्लड मनी” को स्वीकार करने और अपराधी को जीने देने का विकल्प होता था। सजायाफ्ता चोरों के लिए, सजा के तौर पर हाथ काटने का प्रावधान था। वहीं, हाईवे डकैती के दोषियों का एक हाथ और एक पैर काट दिया जाता था। वहीं, तालिबान ने कहा है कि इस बार भी कैजियों को वैसी ही सजा दी जाएगी।
कैसी होती थी तालिबान की अदालत
तालिबान की अदालत सार्वजनिक नहीं होती थी और उसके कोर्ट में कोई कानून का जानकार नहीं, बल्कि मौलवी होते थे, जिसके पास इस्लाम की जानकारी भी काफी कम होती थी। और तालिबान की अदालत में आरोपियों के पास बोलने का अधिकार नहीं होता था। रिपोर्ट के मुताबिक, पहली तारीख में ही तालिबान की अदालत में किसी कैदी को ना सिर्फ गुनहगार ठहरा दिया जाता था, बल्कि सजा का फैसला भी कर दिया जाता था। तुराबी ने कहा कि इस बार न्यायाधीश, महिलाओं सहित सभी मामलों का फैसला करेंगे, लेकिन अफगानिस्तान के कानूनों की नींव कुरान होगी। उसने कहा कि वही सजा बहाल की जाएगी
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