सत्य ख़बर, दिल्ली
रूस और यूक्रेन की जंग को अब लगभग दो सप्ताह पूरे हो रहे हैं। समूचा यूरोप इसकी आग की लपटों को महसूस कर रहा है। इस जंग की वजह से यूक्रेन के पड़ोसी देशों में रिफ्यूजियों की संख्या 17 लाख को भी पार कर चुकी है। वहीं यूक्रेन में इस जंग की वजह से भारी नुकसान हुआ है। जवाहरलाल नेहरू की प्रोफेसर अनुराधा शिनोए मानती हैं कि इस जंग की वजह से यूक्रेन कई दशक पीछे चला गया है। हालांकि, ये पहले से ही दिखाई दे रहा था कि रूस के आगे यूक्रेन कुछ भी नहीं है। रूस के सामने उसकी सैन्य शक्ति भी न के ही बराबर है। इसके बाद भी पश्चिमी देशों और अमेरिका के बहकावे में आकर यूक्रेन गलती कर बैठा।
प्रोफेसर शिनोए का कहना है कि रूस चाहता तो अपनी वायु सेना को इस युद्ध में उतार कर दो दिन में ही यूक्रेन को जीत सकता था। लेकिन उसने ऐसा इसलिए नहीं किया क्योंकि वो नहीं चाहता था कि यूक्रेन को बर्बाद किया जाए। रूस पहले से ही कहता आया है कि उसका मकसद यूक्रेन को बर्बाद करने का नहीं है। वो केवल यही चाहता है कि वो अमेरिका की तरफ न जाए। रूस चाहता है कि वो यूक्रेन की सैन्य शक्ति को नष्ट कर दे। इसके पीछे रूस की केवल इतनी ही सोच है कि वो यूक्रेन को अमेरिका के साथ जाने से रोक सके।
जेएनयू के सेंटर फार रशियन कल्चर की प्रोफेसर का ये भी कहना है कि वायु सेना के उतारने से ये एक फुलफ्लैश्ड युद्ध कहा जाने लगता, जबकि रूस इसको अब तक मिलिट्री आपरेशन का नाम दे रहा है। इन दोनों में ही काफी अंतर है। रूस के पास में पूरी क्षमता है। वो नहीं चाहता है कि यूक्रेन नाटो की गोद में बैठ जाए और इसकी वजह से उसकी अपनी सुरक्षा को खतरा मंडराने लगे।
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आपको बता दें कि नाटो की स्थापना के बाद से इस संगठन में काफी कुछ बदलाव देखने को मिला है। ये लगातार अपना विस्तार करता आया है। अब ये रूस के काफी करीब आ गया है। ऐसे में यदि यूक्रेन भी नाटो में शामिल हो जाता है तो नाटो के खतरनाक हथियार रूस की सीमा पर आ जाएंगे और युद्ध की स्थिति में ये पल भर में मास्को पर निशाना लगा सकते हैं।
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