सत्यखबर,चढ़ीगड़
बता दे की निजी प्रकाशकों की महंगी पुस्तकें लगाने वाले प्राइवेट स्कूलों पर शिक्षा विभाग सख्त हो गया है। बगैर मंजूरी के राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद की किताबों से अलग पुस्तकें लगाने वाले स्कूल संचालकों पर कार्रवाई होगी। साथ ही तीन महीने की फीस और वार्षिक शुल्क मांग रहे कई स्कूलों को नोटिस थमाया गया है।शिक्षा निदेशालय में लगातार शिकायतें पहुंच रही हैं कि बड़ी संख्या में निजी स्कूल संचालक अभिभावकों पर फीस वसूली और निजी प्रकाशकों की महंगी किताबें खरीदने का दबाव बना रहे हैं। न केवल छोटे स्कूल, बल्कि नामी-गिरामी संस्थाओं द्वारा संचालित स्कूलों द्वारा बकायदा मोबाइल फोन पर संदेश भेजे जा रहे कि भले ही सरकार ने शुल्क नहीं लेने का निर्देश जारी किया है, लेकिन स्कूल के अपने खर्चे हैं। स्टाफ की सैलरी भी देनी होगी, इसलिए शुल्क जमा कराकर सहयोग करें। फीस नहीं देने पर आपके बच्चे का नाम काट दिया जाएगा।
बता दे की इस पर संज्ञान लेते हुए शिक्षा निदेशालय ने साफ किया है कि किसी भी अभिभावक से जबरन फीस नहीं ली जा सकती। अगर निजी प्रकाशकों की किताबें थोपी गईं तो संबंधित स्कूल के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाएगी। भारी जुर्माने से लेकर स्कूल की मान्यता रद करने तक का कदम शिक्षा विभाग उठा सकता है।
कई स्कूल संचालकों ने लॉकडाउन में अभिभावकों की बिगड़ी आर्थिक स्थिति को देखते हुए तीन महीने की फीस माफी से लेकर किताबों और स्टेशनरी की कीमत में भारी भरकम छूट देने की घोषणा की है। अगर किसी अभिभावक ने शुल्क जमा भी कराया है तो जुलाई-अगस्त की फीस में इसे समायोजित कर दिया जाएगा। करनाल के पट्टी सालवन स्थित आदर्श पब्लिक स्कूल, फरीदाबाद के डिवाइन पब्लिक स्कूल और यमुनानगर के स्प्रिंग फील्ड्स पब्लिक स्कूल सहित ऐसे निजी विद्यालयों की फेहरिस्त लंबी है, जिन्होंने महामारी का हवाला देते हुए कई तरह की रियायतें अपने छात्रों को दी हैं। साथ ही विभिन्न शिक्षण संस्थाओं ने कई-कई लाख रुपये कोरोना रिलीफ फंड में जमा कराए हैं।
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