सत्यखबर, जींद, अशोक छाबड़ा
माता-पिता या सोसायटी एक व्यस्क बच्चे को अपनी शर्त पर जीने के लिए मजबूर नहीं कर सकते। यह टिप्पणी पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट की जस्टिस अलका सरीन ने जींद के एक प्रेमी जोड़े की सुरक्षा की मांग का निपटारा करते हुए की। जींद के एक केस में हाई कोर्ट ने यह महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। लड़की व उसके प्रेमी ने हाई कोर्ट में कहा था कि दोनों वयस्क हैं। याचिकाकर्ता 18 वर्षीय लड़की और 19 वर्षीय लड़का एक-दूसरे को जानते हैं और दोनों ने 18 जनवरी से लिव-इन रिलेशनशिप में एक साथ रहना शुरू कर दिया लेकिन लड़के की उम्र विवाह योग्य नहीं है।
लड़की के परिजनोंं को यह रिलेशन स्वीकार्य नहीं हैं और वे याचिकाकर्ताओं को गंभीर परिणाम की धमकी दे रहे हैं। इस पर कोर्ट ने कहा कि लड़का विवाह योग्य उम्र का नहीं है, लेकिन दोनों वयस्क हैं और दोनों को अपनी मर्जी से जीने के अधिकार को अस्वीकार नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि माता-पिता अपने वयस्क बच्चे को अपनी शर्तों पर जीवन जीने के लिए मजबूर नहीं कर सकते और प्रत्येक वयस्क व्यक्ति को अपनी तह से जीवन को जीने का अधिकार है। इसी के साथ कोर्ट ने जोड़े के लिव-इन रिलेशनशिप में रहने के अधिकार को बरकरार रखा। कोर्ट ने कहा कि समाज यह निर्धारित नहीं कर सकता कि किसी व्यक्ति को अपना जीवन कैसे जीना चाहिए।
एक व्यक्ति जिसके साथ कोई व्यक्ति अपना जीवन बिताना चाहता है या चुनता है, वह यह निर्धारित नहीं कर सकता कि समाज क्या चाहता है। हाई कोर्ट की राय के अनुसार माता-पिता केवल इस डर से अपनी बेटी की पसंद को स्वीकार नहीं करते हैं कि यह समाज के लिए स्वीकार्य नहीं है। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता दोनों वयस्क होने के नाते लिव-इन रिलेशनशिप में साथ रहने का फैसला किया है और परिजनो के लिए इस पर आपत्ति जताने का कोई कानूनी कारण नहीं हो सकता है। कोर्ट में याचिका का निपटारा करते हुए जींद के पुलिस प्रमुख को आदेश दिया कि वह याचिकाकर्ताओं द्वारा सुरक्षा की मांग पर उचित कार्रवाई करें।
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