सत्य खबर
पराली के धुएं और और पटाखों पर हंगामा भले कितना बरपा हो, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि यह दिल्ली एनसीआर के वायु प्रदूषण के अल्पकालिक कारक हैं, स्थायी नहीं। वायु प्रदूषण के स्थायी कारक वे होते हैं जो वर्ष भर प्रदूषण फैलाते हैं व प्रदूषण बनाए रखते हैं। इनमें घर पर खाना बनाना, निर्माण कार्यो से उठने वाली धूल, कूड़ा जलाना, ईट भट्ठे, रेस्तरां, औद्योगिक गतिविधियां, डीजल जेनरेटर, परिवहन व्यवस्था एवं थर्मल पावर प्लांट हैं।
आइआइटी कानपुर, आइआइटी दिल्ली और आइआइटी पुणे के वैज्ञानिकों द्वारा तैयार संयुक्त रिसर्च पेपर में सामने आया है कि दिल्ली-एनसीआर प्रदूषण के लिहाज से सुपर हॉट स्पॉट है। यहां पर प्रदूषण के कारकों में धूल, कोहरा और मंद हवा ही नहीं बल्कि मानव निर्मित गतिविधियां भी सम्मिलित हैं। सर्दियों के मौसम में तो दिल्ली-एनसीआर को सुपर हॉटस्पॉट बनाने में 93 फीसद तक मानव गतिविधियां ही मुख्य कारण होती हैं।
विडंबना यह कि यहां की भौगोलिक बनावट कुछ ऐसी है कि प्रदूषक तत्व स्वयं से छंट भी नहीं पाते। इस रिसर्च पेपर के अनुसार दिल्ली- एनसीआर को प्रदूषण के लिहाज से सुपर हॉटस्पॉट बनाने में मानवीय गतिविधियां सर्दियों में 93 फीसद, गर्मियों में 54 फीसद और मानसून में 88 फीसद रहती है।
सर्दियों के दौरान कुल पीएम 2.5 का 50 से 60 फीसद हिस्सा द्वितीयक (स्त्रोत से छूटने के बजाय रासायनिक रूपांतरण के जरिये वातावरण में बनता है) किस्म का होता है। ऐसा सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, वोलेटाइल ऑर्गेनिक कंपाउंड (वीओसी), पोली साईकल एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन (पीएएच) आदि के पार्टिकुलेट मैटर में तब्दील होने से होता है। इन गैसों का आंशिक रिश्ता कोयले से होता है।
इस पेपर के मुताबिक बायोमास और अपशिष्ट जलने से ब्लैक कार्बन एवं कार्बनिक कण धुएं के रूप में निकलते हैं जो धीरे- धीरे वाहनों, कारखानों और ईट भट्ठों आदि के प्रदूषण से मिलकर वातावरण में प्रदूषण की मोटी परत बनाते हैं।
संयुक्त रिसर्च पेपर के अनुसार प्रदूषण के स्थायी कारकों को दूर करने में राज्यों की हीलाहवाली हमेशा ही सामने आती रही है। फिर वह चाहे परिवहन व्यवस्था को मजबूत करना हो या जेनरेटर निर्भरता को खत्म करना और औद्योगिक गतिविधियों को प्रदूषण मुक्त बनाना।
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यहां तक कि हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में क्रमश: 3000, 2800, 19000 और 246 से ज्यादा ईट भट्ठे हैं जबकि सुप्रीम कोर्ट, एनजीटी और सीपीसीबी की सख्ती के बावजूद अभी भी इन राज्यों में हजारों भट्ठे पर्यावरण अनुकूल जिग-जैग तकनीक नहीं अपना सके हैं।
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