सत्यखबर, नरवाना (सन्दीप श्योरान) :-
9 जुलाई 1999 का वह दिन बड़ा मनहूस रहा होगा, जब कारगिल युद्ध में हिसार जिले के मिलकपुर गांव के लाडले पवित्र कुमार ने मात्र 21 वर्ष की छोटी आयु में ही अपनी शहादत दे डाली। लेकिन मरते-मरते भी यह अविवाहित बहादुर सैनिक 11 दुश्मनों को मौत के घाट उतार गया और अपने फौजी पिता किताब सिंह और माता सुजानी देवी की आंखों में गर्व के आंसू भर गया। उसकी निडरता व बहादुरी के किस्सों में से एक किस्सा यह है कि भयंकर लड़ाई के दौरान वह गांव में अपने दोस्त के पास चिठ्ठी लिखता है कि धूप में बैठा चि_ी लिख रहा है और घर वालों को कहना कि मैं लड़ाई में नहीं हूं। इसलिए चिंता की कोई बात नहीं है। उसके बाद अनहोनी की अपनी चाल देखिए कि शहीद सैनिक पवित्र कुमार का तिरंगे में लिपटा शव गांव में पहले आता है और उस द्वारा दोस्त के पास लिखी चिठ्ठी बाद में पहुंचती है। नरवाना निवासी शहीद के चाचा महासिंह श्योरान ने बताया कि माना कि तत्कालीन सरकारों ने शहीद के परिजनों को आर्थिक सहायता तो प्रदान की, लेकिन उसकी अंत्येष्टि के समय सरकार के एक नुमाइंदे द्वारा गांव के स्कूल का नाम शहीद के नाम करने की घोषणा अब तक अधूरी पड़ी है। उन्होंने मांग की कि अगर सरकार वास्तव में शहीदों के सम्मान को प्राथमिकता देती है, तो उसके गांव में स्थापित सरकारी हाई स्कूल को पूर्व घोषणानुसार शहीद पवित्र कुमार का नाम दे। तब जाकर शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि होगी और आने वाली पीढिय़ों उससे प्रेरणा लेती रहेंगी।
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