कुल 12 कैंडिडेट के रिसर्च पेपर संदेह के घेरे में, कुछ की जा सकती है सहायक प्रोफेसर की नौकरी
सत्य खबर सफीदों, महाबीर मित्तल: हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग द्वारा पेपर लीक मामला अभी विधानसभा में गूंज ही रह था कि हरियाणा लोक सेवा आयोग द्वारा सहायक प्रोफैसरों की भर्ती में कथित फर्जीवाडे का मामला सामने आया है। मामला वर्ष 2014 में निकली गई भौतिकी विषय में सहायक प्रोफेसरों की भर्ती से जुडा है जिसके लिए साल 2017 में लिखित परीक्षा के बाद साल फरवरी 2018 में साक्षात्कार लिए गए थे। हरियाणा लोक सेवा आयोग द्वारा उपरोक्त भर्ती में चयन प्रक्रिया में शैक्षणिक योग्यता के लिए 30 अंक निर्धारित किए गए थे। तीस अंको में से तीन अंक रिसर्च पेपर पब्लिकेशन के लिए निर्धारित थे। इन तीन अंकों को अर्जित करने के लिए चयनित उम्मीदवारों द्वारा साक्षात्कार के समय जमा करवाए गए रिसर्च पेपर सवालों के घेरे में आ गए है।
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घोटाले को लेकर संबंधित विभागों के उच्चाधिकारियों को संपर्क किया गया, लेकिन उनकी तरफ से कोई कार्रवाई नहीं की गई। हरियाणा के जींद जिले में सफीदों के रहने वाले अजय सिंगला ने बताया कि उपरोक्त मामले को सभी सबूतों के साथ अक्तूबर 2020 में एडिशनल चीफ सक्रेटरी (हायर ऐजुकेशन) चण्डीगढ, डायरेक्टर जनरल हायर एजुकेशन पंचकुला एवं हरियाणा लोक सेवा आयोग पंचकुला में पंजीकृत डाक द्वारा संज्ञान में ला दिया गया था परंतु कोई कार्रवाई नहीं हुई, जिसके बाद अजय सिंगला ने इस मामले को लेकर कोर्ट की शरण ली। जिसके बाद माननीय पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में दायर याचिका पर मामले में जनवरी 2021 में उम्मीदवारों सहित सरकार को भी नोटिस जारी किया। अजय ने बताया कि डायरेक्टर जनरल आफ हरियाणा ने इस मामले में अप्रैल 2021 में रीटा गुप्ता को मुखिया बनाते हुए तीन सदस्यों की एक जांच बैठा दी है जिसने सभी उम्मीदवारों को अपना पक्ष रखने के लिए 7 एवं 8 सितम्बर 2021 को अपने आफिस शिक्षा सदन पंचकुला में तलब किया है।
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इन कैंडिडेट के रिसर्च पेपर है संदेह के घेरे में।
अजय सिंगला का कहना है कि उनके द्वारा लगाई गई आरटीआई में 12 ऐसे कैंडिडेट सामने आए हैं जिनके रिसर्च पेपर संदेह के घेरे में हैं जिनमें जागृति दिवान, पारुल जैन, सुमनलता, रीटा रानी, रेनू देवी, संदीप कुमार, भीष्म नारायण, मुकेश श्योराण, कोमल, प्रवीण जैन, अनुज व कमलजीत सिंह शामिल है। अजय का कहना है कि इन सभी कैंडीडेट्स के रिसर्च पेपर या तो किसी दूसरे पब्लिसर द्वारा पहले ही प्रकाशित हो चुके हैं जिनको कॉपी करके यहां पर सबमिट करा दिया गया है जो रिसर्च में मान्य नहीं है या नेशनल साइंस लाइब्रेरी द्वारा जारी आईएसएसएन नंबर ही नहीं है। बता दें कि रिसर्च के दौरान नेशनल साइंस लाइब्रेरी द्वारा आईएसएसएन नंबर अर्थात इंटरनेशनल स्टैंडर्ड सीरियल नंबर जारी किया जाता है। पूरे विश्व में रिसर्च कर रहे छात्रों को यह यूनिक नंबर दिया जाता है जिससे यह पता चल सके कि कौन सा रिसर्च पेपर किस कैंडिडेट द्वारा सबमिट किया गया है।
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इस तरह हो पाया यह मामला उजागर
सफीदों निवासी अजय सिंगला ने बताया कि उसने भी साल 2014 में फिजिक्स के असिस्टेंट प्रोफेसर के पद की भर्ती के लिए अप्लाई किया था लेकिन कुछ ही अंको की कमी के कारण उसका चयन नहीं हो पाया था। अजय का कहना है कि रिसर्च पेपर से संबंधित जालसाजी करके स्थानीय कॉलेजों में कॉन्ट्रैक्ट बेस पर भर्ती होना आम बात है। असिस्टेंट प्रोफेसर में चयन नहीं होने के बाद उन्होंने सोचा कि जब कॉलेज स्तर पर इस तरह के मामले हो सकते हैं तो बड़े स्तर पर भी इस तरह के मामले पाए जा सकते हैं जिसके बाद अजय ने आरटीआई लगाकर सभी चयनित कैंडिडेट्स के रिसर्च पेपर निकलवाए वे अपने स्तर पर जांच की जिसके बाद यह मामला उजागर हो पाया।
क्या कहती है जांच कमेटी की अध्यक्ष
इस मामले को लेकर हायर एजुकेशन की ज्वाइंट डायरेक्टर व जांच कमेटी की अध्यक्ष रीटा गुप्ता ने बताया कि उनके पास मामले की जांच आई है। 7 व 8 सितंबर को उन 12 कैंडिडेट को अपना पक्ष रखने के लिए बुलाया गया है। जांच पूरी होने के बाद ही इस विषय में कुछ कहा जा सकता है।
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