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देश में बीते एक साल में खाद्य तेल के दामों में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है। जिसके साथ ही खाने के तेल की कीमतें पिछले 11 साल के मुकाबले सबसे ज्यादा हो गई हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक सरसों के तेल के दाम में करीब 44 फीसदी की बढ़ोतरी के साथ ही 28 मई को खुदरा बाजार में इसकी कीमत 171 रुपए प्रति लीटर दर्ज की गई। गौरतलब यह है कि पिछले साल 28 मई को एक लीटर सरसों के तेल की कीमत 118 रुपए थी। वहीं, सूरजमुखी के तेल की कीमत में भी 50 फीसदी से ज्यादा बढ़ोतरी हुई है।
भारत में आमतौर पर 6 खाद्य तेल का इस्तेमाल किया जाता है। इनमें सरसों का तेल, मूंगफली का तेल, डालडा (वनस्पति तेल), रिफाइंड (सोया तेल), सूरजमुखी का तेल (सनफ्लावर ऑयल) और ताड़ का तेल (पाम ऑयल) शामिल हैं।
उपभोक्ता मामले विभाग की वेबसाइट के मुताबिक बीते एक साल में इन तेलों के दाम 20 से 56 फीसदी तक बढ़ गए हैं। देश की एक बड़ी आबादी पहले से ही महंगाई, कोरोना वायरस और लॉकडाउन से जूझ रही है। ऐसे में खाने के तेल के दामों में हुई इस वृद्धि ने आम आदमी के बजट को बिगाड़ दिया है।
खाने का तेल कम से कम इस्तेमाल करने के कुछ आसान टिप्स
खाने के तेल की कुल खपत का 56% आयात होता है
तेल की कुल खपत का 56 फीसदी हिस्सा आयात किया जाता है और अंतरराष्ट्रीय बाजार में बीते कुछ महीनों में खाने के तेल की कीमतों में अलग-अलग वजहों के चलते तेजी से बढ़ोतरी हुई है।
सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईएआई) के कार्यकारी निदेशक बी. वी. मेहता ने एक इंटरव्यू में बताया कि बीते कुछ समय से वनस्पति तेल से जैव ईंधन बनाने पर काफी जोर दिया जा रहा है और ये खाने के तेल की बढ़ती कीमतों की एक बड़ी वजह है।
इसके अलावा अमेरिका व ब्राजील के साथ और भी कई देशों में सोयाबीन तेल से अक्षय ईंधन (Renewable Fuel) बनाने पर भी बल दिया जा रहा है। कोरोना वायरस और लॉकडाउन के बावजूद बीते एक साल में खाने के तेल की वैश्विक मांग में भी बढ़ोतरी हुई है।
बढ़ते दामों के पीछे ये भी हैं बड़ी वजहें
इतना ही नहीं, अंतरराष्ट्रीय बाजारों में खाद्य तेल की बढ़ती कीमतों की प्रमुख वजहों में चीन द्वारा खरीदारी, मलेशिया में मजदूर मामला, ताड़ और सोया उत्पादक क्षेत्रों में ला लीना (मौसम) का बुरा असर, इंडोनेशिया और मलेशिया में ताड़ के कच्चे तेल पर निर्यात शुल्क शामिल हैं।
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इसके अलावा फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन के मुताबिक अपेक्षा से कम खेती और अमेरिका के प्रमुख सोया उत्पादक क्षेत्रों में खेती के लिए विपरीत मौसम भी इसके बड़े कारणों में शामिल हैं।
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