सत्य खबर, नारायणगढ़ (सरिता धीमान)। भगवान श्री परशुराम जन्मोत्सव के बारे विस्तृत जानकारी देते हुए उपमंडल नारायणगढ़ के गांव नन्हेड़ा निवासी पंडित श्याम लाल कौशिक ने बताया कि इस वर्ष यह पर्व भारत सहित संसार के कईं देशों में 25 अप्रैल दोपहर से 26 अप्रैल अक्षय तृतीया तक धूमधाम से मनाया जायेगा। उन्होंने कहा कि कोरोना वायरस से बचाव के लिए हम सभी को सरकार द्वारा दिए गए दिशा निर्देशों का पालन करते हुए इस पर्व को अपने-अपने घरों में ही रहकर मनाना चाहिये और हवन करके रात्रि के समय दीपमाला करनी चाहिये।
पंडित श्याम लाल कौशिक ने कहा कि जब-जब पृथ्वी पर धर्म की हानि होती है ओर अधर्म बढ़ जाता है तब-तब धर्म व साधु पुरूषों की रक्षा हेतू व पापियों का विनाश करने के लिए भगवान जन्म लेते हैं। भगवान श्री परशुराम जी के पिता श्री जमदग्नि व माता रेणुका जी का सतयुग में श्री राम नाम के रूप में भगवान विष्णु का दूसरा अंश अवतार हुआ। भगवान श्री परशुराम जी भृगु कुल में अवतरित हुए। भृगु ऋषि भारद्वाज मुनि के शिष्य थे। शिव पुराण के अनुसार दक्ष यज्ञ के विध्वंस के समय भृगु ऋषि ही थे जिन्होंने क्रोधित भगवान शिव का सामना करके उन्हें शांत किया था। भगवान परशुराम जी एक महान तेजस्वी व यशस्वी कुल मे पैदा हुये थे। भृगु ऋषि जी के पुत्र ऋचिक का विवाह राजा गाधि की पुत्री से हुआ जिसका नाम सत्यवती था। सत्यवती ने अपने ससुर की सेवा कि जिससे प्रसन्न होकर उन्होंने अपनी पुत्रवधु से वर मांगने को कहा तो उसने भाई नहीं होने के कारण अपनी माता व अपने लिए एक-एक पुत्र का वर मांग लिया। यह एक रहस्य है कि ससुर ने वर देते हुये पुत्रवधु को गुल्लर व उसकी माता को पीपल के साथ आलिंगन करने को कहा व दोनों को एक-एक फल दिया लेकिन उन्होंने उल्टा आलिंगन कर दिया। सत्यवती ने पीपल व उनकी माता ने गुल्लर का आलिंगन कर लिया जिससे सत्यवती के जमदग्नि व उनकी माता गाधि के महाप्रतापी विश्वामित्र पैदा हुये। जो राजर्षि हुये तथा ऋचिक के आश्रम मे दिव्य शास्त्रों की शिक्षा ग्रहण की। जमदग्नि का विवाह परशैनजीत की पुत्री रेणुका के साथ हुआ व रेणुका की बहन का विवाह कारतवीरय सहस्त्रार्जुन के साथ हुआ। महर्षि जमदग्नि भृगु वंशी व सहस्त्रार्जुन हेहय वंश के थे परन्तु आपस में उनकी एक दुसरे के प्रति बैरभाव था। सहस्त्रार्जुन स्वभाव से बड़ा उपद्रवी तथा ऋषि मुनियों का शत्रु तथा आर्य सभ्यता का विनाशक था व उससे मानव, दानव, नाग, यक्ष कांपते थे। भगवान श्री परशुराम जी का जन्म जमदग्नि की अर्धांगिनी रेणुका (माता रेणुका) के गर्भ से हुआ। उनका जन्म बैशाख शुक्ला तृतीया को पुनर्वसु नक्षत्र, उच्च के छ: ग्रह व राहु मिथुन राशि मे हुआ। यह पांच भाई थे जिनके नाम क्रमश: रूमणवान, सुषेण, वशु, विशवावशु व राम थे। राम अपने भाईयों में सबसे छोटे थे। यज्ञोपवीत संस्कार के पश्चात परशुराम ने नेशाल पर्वत पर जाकर वेदाध्ययन किया व छोटी ही अवस्था में ब्रहम विद्या व मृत्युंजय विद्या प्राप्त कर चुके थे। इन्होंने रेणुका माता के सानिध्य में अपने पिता जमदग्नि से शास्त्र व शस्त्र की विद्या लेकर गनधमादन पर्वत पर भगवान शंकर की कठोर तपस्या की और भगवान आशुतोष ने उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें अपना अजैय परशु व त्रयमबंक धनुष दिया तथा आदेश दिया कि जाओ और पृथ्वी से असुर शक्तियों का संहार करो। उनकी परीक्षा लेने के लिए प्रभु आशुतोष जी ने स्वयं उनके साथ युद्ध किया व उनकी युद्ध कला से प्रसन्न होकर उन्हें परशु दिया उनका राम के पूर्व परशु जोडक़र परशुराम का नाम दिया तथा उन्हें अन्याय, अत्याचार व असुर शक्तियों को समाप्त करने के लिए अपना आशीर्वाद दिया। भगवान श्री परशुराम जी का बल, पराक्रम व यश कीर्ति चारों ओर फैल गई। इसकी चर्चा कारतय वीरीय सहस्त्रार्जुन ने भी सुनी तथा ईष्र्या वश अपनी सेना के साथ जमदग्नि के आश्रम में जा पहुंचा। परशुराम जी उन्हें आश्रम मे नहीं मिले लेकिन जमदग्नि जी ने अपने रिश्तेदार का आदर सत्कार किया व कामधेनु गाय के माध्यम से उनकी व समस्त सेना की सेवा की जिसे देखकर उसने उन्हें कामधेनु गाय देने का अनुरोध किया लेकिन रेणुका जी ने अपने बहनोई की प्रार्थना को स्वीकार नहीं किया जिससे सहस्त्रार्जुन ने क्रोध करते हुए जमदग्नि के आश्रम को तहस नहस कर दिया व कामधेनु गाय को बलपूर्वक अपने साथ ले गए। जब परशुराम जी अपने आश्रम मे आये तथा आश्रम को तहस नहस देखा तो माता रेणुका जी ने पूरा वृतांत उन्हें सुनाया जिसे सुनकर परशुराम जी ने सहस्त्रार्जुन के महल में जाकर आक्रमण कर दिया व अपने अजैय फरसे से उसकी सभी बाहें काट कर पृथ्वी पर गिरा दी तथा सेना को तहस नहस करके कामधेनु को लेकर अपने आश्रम में आ गये। सहस्त्रार्जुन के सौ पुत्र थे जो इस घटना के पश्चात परशुराम जी से नफरत करने लगे थे व अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने को आतुर थे। अंततोगत्वा एक दिन सभी पुत्रों ने मौका पाकर आश्रम में उपस्थित अकेले जमदग्नि पर आक्रमण करके उन्हें मौत के घाट उतार दिया। जब परशुराम जी आश्रम मे आये तो अपनी माता रेणुका को व्यथित देखकर बहुत रोये। जब पिता जमदग्नि की मृत देह को देखा तो उस पर 21 घाव थे तथा माता रेणुका ने परशुराम जी के समक्ष 21 बार अपनी छाती पीटकर परशुराम जी से अपने पिता की मृत्यु का प्रतिशोध लेने को कहा था। भगवान परशुराम जी ने तत्काल क्रोधित होकर कार्तिकविरय के समस्त पुत्रों को मौत के घाट उतार दिया तथा समस्त पृथ्वी को 21 बार श्रत्रिय विहीन किया। परशुराम जी ने पंचकक्षेत्र कुरूक्षेत्र में अपने पिता जी का पिण्ड दान किया। भगवान श्री परशुराम जी के क्रोध को शांत करने के लिये स्वयं महर्षि ऋचिक जी को आना पड़ा व भविष्य मे उस संहार को बंद करवा दिया और उनके आदेश से अश्वमेघ यज्ञ कर जीती गई समस्त भूमि कश्यप ऋषि को वापिस करके अपना फरशा गोवा के तट से फैंका जो कन्याकुमारी पर जाकर गिरा तथा वहां से समुद्र हट गया जो अब भी परशुराम क्षेत्र कहलाता है। उसके बाद परशुराम जी महेन्द्र पर्वत पर तपस्या करने चले गए तथा वर्तमान मे उसी पर्वत पर उनका निवास है। माता सीता जी के स्वयंवर के समय श्री राम द्वारा धनुष किए जाने पर क्रोधित होकर भगवान श्री परशुराम विवाह मंडल मे पहुंचे तो श्री राम से बोले की ब्राह्मणों के साथ हिंसा पूर्ण व्यवहार उनके लिए निन्दनीय है। भगवान विष्णु अवतार की परीक्षा के लिए उन्होंने श्री राम को धनुष पर परतंचया चढ़ाने को कहा जिसे भगवान श्री राम ने पूरा किया। श्री राम ने उन्हें सभी तरह से पूज्य बताया। परशुराम जी ने हमेशा ही आततायीयों, पापियों, दुराचारियों का विनाश किया। धर्म की स्थापना की। पंडित श्याम लाल कौशिक ने बताया कि उन्होंने यह सभी अंश भगवान वाल्मीकि रामायण, श्री तुलसी रामायण, श्री मद भागवत पुराण, अन्य भिन्न-भिन्न पुराणों, डोरी लाल शर्मा श्रोतिय ब्राह्मण वंशावली से संकलित की हैं।
Aluminium scrap melting Aluminum scrap pricing Scrap metal compliance