सत्य खबर, नई दिल्ली
कोविड 19 के मामले बढऩे के साथ-साथ देश में तेजी से रेमडेसिविर इंजेक्शन की कालाबाजारी की खबरें भी सामने आने के बाद पुलिस ऐसे गिरोह पर नजर रख रही है जो रेमडेसिविर की कालबाजारी कर रहे हैं या फिर ऐसे लोग जो नकली रेमडेसिविर बेच रहे हैं, लेकिन मध्य प्रदेश से अब ऐसी खबर सामने आई है जिसके बाद राज्य की पुलिस के सामने अजीब से समस्या पैदा हो गई है कि वह नकली रेमडेसिविर बेचने वालों के खिलाफ कैसे केस दर्ज करे।
दरअसल मध्य प्रदेश में नकली रेमडेसिविर लगवाने वाले 90 प्रतिशत से ज्यादा लोगों ने कोरोना को मात दी है। इतना ही नहीं जिन लोगों ने नकली रेमडेसिवर खरीदी और लगवाई उन लोगों में से 90 प्रतिशत लोगों का फेफड़े का संक्रमण भी खत्म हो गया। अब नकली रेमडेसिवर बेचने वाले लोगों के खिलाफ जांच करने वाली एमपी पुलिस के सामने यह समस्या है कि आखिर कैसे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के निर्देशानुसार आरोपियों के खिलाफ हत्या का केस दर्ज करे। गौरतलब है कि सीएम ने आदेश जारी कर निर्देश दिए हैं कि इंदौर और जबलपुर में नकली रेमडेसिविर बेचने वालों के खिलाफ पुलिस हत्या का केस दर्ज करे, लेकिन ताबुज की बात यह है कि जिन लोगों ने नकली रेमडेसिविर बेची और जिन्होंने उसे प्रयोग में लिया उनमें से किसी का भी अभी तक शव नहीं दफ नाया गया है।
वहीं पुलिस नतीजों से काफी हैरान व परेशान है। इंदौर में नकली रेमडेसिवर की शीशियों में ग्लूकोज वाटर पाया गया था। अब पुलिस का कहना है कि अब इस पूरे मामले में डॉक्टर्स को जांच करनी चाहिए कि आखिर ग्लूकोज वॉटर से कोरोना कैसे खत्म हुआ और इसने फेफ ड़े को इंफेक्शन से कैसे राहत दिलाई। एक पुलिस अधिकारी के मुताबिक इंदौर में नकली इंजेक्शन से 10 लोगों की मौत हुई है लेकिन वहीं फेस इंजेक्शन के ठीक होने वालों की संख्या 100 के करीब है। उन्होंने बताया कि जिन लोगों की मौत हुई उनका अंतिम संस्कार हो चुका है। ऐसे में जब ठीक होने वालों की संख्या ज्यादा है तो मरने वालों को इजेक्शन से कैसे जोड़ा जाए।
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वहीं पुलिस ने जानकारी दी कि जिन लोगों को नकली इंजेक्शन बेचने के आरोप में पकड़ा गया है। उनका संबंध गुजरात के एक गिरोह से है। आरोपियों ने कबूल किया है कि उन्होंने लगभग 700 इंजेक्शन इंदौर में बेचे थे और लगभग 500 नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन जबलपुर में बेचे थे। फिलहाल पुलिस मामले की जांच में जुटी है लेकिन पुलिस के सामने नकली इंजेक्शन खरीदने वालों की तलाश करना भी एक बड़ा मुश्किल काम है क्योंकि ऐसे लोगों का अस्पताल में कोई रिकॉर्ड मौजूद नहीं है। वैसे भी हैरानी की बात यह है कि यहां पर नकली इंलेक्शन का प्रयोग करने वालों में अधिकतर स्वस्थ्य हो चुके हैं।
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