सत्यखबर
दिल्ली से 125 किमी दूर मुजफ्फरनगर के जीआईसी मैदान में शुक्रवार को भाकियू की महापंचायत में भीड़ का सैलाब उमड़ पड़ा। पंचायत के माहौल में बीजेपी सरकार के प्रति नाराजगी साफ नजर आई। नरेश टिकैत समेत कई खाप चौधरियों ने कहा कि अब किसान भाई हमेशा बीजेपी से होशियार रहें। किसान समुदाय में गुस्सा इस कदर है कि मुजफ्फरनगर के स्थानीय बीजेपी सांसद संजीव बालियान के घर की सुरक्षा बढ़ा दी गई है। खाप चौधरियों का कहना था कि गाजीपुर बॉर्डर पर जो हुआ, वह भाकियू या राकेश टिकैत को नहीं बल्कि पूरे जाट समुदाय को सीधी चुनौती है।
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मुजफ्फरनगर की किसान पंचायत का समय शुक्रवार, सुबह 11 बजे का था, लेकिन पंचायत तीन घंटे देरी से शुरू हुई। भीड़ में मौजूद किसान इस फैसले के इंतजार में थे कि पंचायत में दिल्ली कूच का फैसला होगा, लेकिन भाकियू प्रमुख नरेश टिकैत ने संयम दिखाया। उन्होंने कहा, ‘गाजीपुर में पहले ही बड़ी संख्या में लोग पहुंच चुके हैं। ऐसे में अभी किसान घर जाएं और जरूरत पड़ने पर बारी-बारी से दिल्ली बॉर्डर पर आते-जाते रहे। कुछ किसानों के बीच दिल्ली हिंसा को लेकर भी चर्चा थी। नरेश टिकैत ने कहा, ‘हमारे लोगों ने हिंसा नहीं की। जांच होनी चाहिए। हम अनुशासित लोग हैं और देश को शर्मिंदा करने की सोच भी नहीं सकते हैं।’
महापंचायत किसानों की बुलाई गई थी, लेकिन इसमें समाजवादी पार्टी, कांग्रेस और राष्ट्रीय लोकदल के नेता भी नजर आए। भीड़ का 90 फीसद हिस्सा जाट बिरादरी से था और वह नेताओं के बजाय सिर्फ यह सुनना चाहता था कि नरेश टिकैत क्या कहते हैं। हालांकि, रालोद नेता जयंत चौधरी जब मंच पर आए तो किसानों में थोड़ा उत्साह आया। जयंत ने मंच से कहा कि वह राकेश टिकैत से गाजीपुर बॉर्डर पर मिलकर यहां पहुंचे हैं। जयंत को लेकर किसानों में यह चर्चा थी कि वह चौधरी चरण सिंह के सियासी वारिस हैं। इसी बीच नरेश टिकैत ने यह कहकर किसानों के जख्मों पर मरहम रख दिया, ‘हमसे बहुत बड़ी गलती हुई, हमें चौधरी अजित सिंह (जयंत के पिता) को नहीं हराना चाहिए था।’ मंच से वक्ताओं ने इशारा किया कि अगर रालोद और अजित की सियासत 2014 से पहले वाली होती तो केंद्र सरकार इस तरह के किसान कानून लाने की कोशिश भी नहीं कर सकती थी।
भीड़ में किनारे बैसाखी के सहारे खड़े बहादुरपुर के 68 वर्षीय किसान सुरेश पाल सिंह एकाएक चीखकर कहने लगे, ‘सरकार तक यह बात पहुंचा दो कि किसी किसान से बदसलूकी न करे, वरना ये किसान सरकार गिराना भी जानते हैं।’ जब भी मंच पर बोल रहे वक्ता सरकार के विरोध की बात करते, भीड़ में बैठे किसान खड़े होकर रणसिंघे बजाकर उसका समर्थन करते तो मैदान के बाहर खड़े अफसरों के चेहरे का रंग बदलने लगता था। मुजफ्फरनगर के तीन थानों में तालाबंदी की गई थी। बाजार बंद थे। कई थानों को भारी बैरिकेडिंग्स से कवर किया गया था।
राकेश टिकैत के आंसुओं ने बदला माहौल
दिल्ली के मॉडल टाउन से आए मुकेश कुमार चहल साथियों को बता रहे थे कि वह राकेश टिकैत के आंसू देखकर रात भर नहीं सोए और सुबह 5 बजे यहां आने के लिए घर से निकल गए थे। जब उनसे हमने पूछा कि दिल्ली के कुछ स्थानीय लोग बॉर्डर पर किसानों का विरोध क्यों कर रहे हैं तो उन्होंने कहा, ‘वे एक पार्टी विशेष के लोग हैं, दिल्ली का आम आदमी तो आंदोलन स्थल पर सेल्फी लेने आ रहा है।’ किसान सुखबीर सिंह ने कहा कि सरकार गाजीपुर बॉर्डर को आंदोलन की सबसे कमजोर कड़ी समझ रही थी, लेकिन राकेश टिकैत के आंसुओं ने उसे अब आंदोलन की सबसे मजबूत कड़ी बना दिया है।
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