सत्य खबर, लखनऊ
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार को आदेश दिया है कि वह 2019 में नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के ख़िलाफ़ हुए विरोध प्रदर्शनों के दौरान सरकारी संपत्तियों को नुक़सान पहुंचाने के एवज़ में प्रदर्शनकारियों से वसूली गई करोड़ों रुपये की रकम को वापस करे. अंग्रेज़ी अख़बार द टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने इस ख़बर को प्रमुखता से लिया है. सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी अधिकारियों द्वारा वसूली गई राशि को अन्यायपूर्ण करार दिया है. कोर्ट का कहना है कि ये साल 2009 और 2018 में शीर्ष न्यायालय के दिए दो फ़ैसलों के ख़िलाफ़ है. पहले के आदेशों में कहा गया था कि इस तरह की कोई भी वसूली संबंधित राज्य के उच्च न्यायालय की निगरानी में न्यायिक न्यायाधिकरण ही शुरू कर सकते हैं. जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस सूर्य कांत की बेंच ने ये भी स्पष्ट किया कि उत्तर प्रदेश सरकार नए क़ानून यूपी रिकवरी ऑफ डैमेज टू प्रॉपर्टी एंड प्राइवेट प्रॉपर्टी ऐक्ट, 2020 के तहत बनाए गए न्यायिक न्यायाधिकरण के ज़रिए नए सिरे से वसूली की प्रक्रिया को शुरू कर सकती है. सुप्रीम कोर्ट की ओर से नाराज़गी जताए जाने के बाद उत्तर प्रदेश सरार ने बेंच को बताया कि 14 और 15 फ़रवरी को दो आदेश जारी किए गए थे, जिसके तहत 274 प्रदर्शनकारियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई को वापस ले लिया गया है.. सुप्रीम कोर्ट की ओर से नाराज़गी जताए जाने के बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने बेंच को बताया कि 14 और 15 फ़रवरी को दो आदेश जारी किए गए थे, जिसके तहत 274 प्रदर्शनकारियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई को वापस ले लिया गया है. राज्य सरकार की कार्रवाई को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता निलोफ़र ख़ान ने अदालत को बताया कि राज्य सरकार ने रिक्शाचालकों, छोटी-मोटी दुकान चलाकर गुज़ारा करने वाले ग़रीब लोगों के ख़िलाफ़ भी कार्रवाई की है. उन्होंने बताया कि इन लोगों की संपत्तियां ज़ब्त की गईं और कई लोगों को अपनी संपत्ति बेचकर प्रदर्शन के दौरान हुए नुक़सान की भरपाई करने को मजबूर किया गया. उन्होंने कोर्ट से अपील की कि वह राज्य सरकार को प्रदर्शनकारियों से “वसूले गए” पैसे लौटाने का आदेश दे.
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हालांकि, राज्य सरकार ने इस दलील का विरोध किया और शीर्ष न्यायालय से कहा कि विधानसभा चुनाव की वजह से राज्य में आचार संहिता लगी हुई है और कोर्ट वसूली की रकम वापस करने जैसा कोई निर्णय न देकर यथास्थिति बनाए रखे. हालांकि, राज्य सरकार ने इस दलील का विरोध किया और शीर्ष न्यायालय से कहा कि विधानसभा चुनाव की वजह से राज्य में आचार संहिता लगी हुई है और कोर्ट वसूली की रकम वापस करने जैसा कोई निर्णय न देकर यथास्थिति बनाए रखे. हालांकि, शीर्ष न्यायालय ने राज्य सरकार से असहमति जताते हुए कहा कि अगर सरकार प्रदर्शनकारियों के ख़िलाफ़ जारी कारण बताओ नोटिस के साथ ही उनपर कार्रवाई को भी वापस ले चुकी है, तो राज्य अब उनसे वसूली गई राशि को लौटाने के लिए बाध्य है. कोर्ट ने राज्य सरकार को ये भी स्पष्ट कर दिया कि आचार संहिता किसी भी सरकार को क़ानून लागू करने या फिर अदालत के आदेश का पालन करने से नहीं रोकती है.
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