सत्य खबर, लखनऊ
आजादी के 75 साल बीत गए हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश के दो जिले ऐसे हैं, जहां के 19 गांवों के लोगों का दर्द सुनकर आप भी परेशान हो उठेंगे। जी हां, यहां के लोग मौलिक अधिकारों से ही वंचित हैं। रहने और खाने की समस्या इतनी ज्यादा है कि इनकी आंखों के सामने हमेशा जीने-मरने का संकट रहता है। करीब 1.20 लाख की आबादी के साथ ऐसा संकट है। गांव से बाहर निकलने और गांव में आने के लिए इन्हें बिहार और नेपाल से होकर आना पड़ता है। सरकारें बदलती गईं लेकिन इनकी समस्याएं कम नहीं हुई। अब आलम यह है कि यहां के लोग खुद को नेपाल में शामिल करने की मांग करने लगे हैं।
राम नरेश बताते हैं कि चुनाव में लोग वादा करते हैं, लेकिन खत्म होने के बाद वादा गायब हो जाता है, जबकि नरसिंह कुशवाहा और राकेश कुमार का कहना है कि नेता भी बिहार से होकर यहां पर वोट मांगने आते हैं। हां, चुनाव खत्म होने के बाद कोई नहीं आता।
इन 19 गांवों के 76 हजार लोग ऐसे हैं, जो वोट डालते हैं। दिक्कत की बात यह है कि 19 हजार लोग दूसरे राज्यों में नौकरी करते हैं, इसके अलावा दूसरे जिलों में रहकर नौकरी करने वालों की संख्या भी अच्छी खासी है। यह लोग अपने गांवों तक पहुंचने के लिए नेपाल और बिहार का रास्ता पकड़ते हैं।
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नेपाल से निकली नारायणी नदी यूपी के दो जिलों से होते हुए बिहार जाती है।
यूपी के ये दो जिले महराजगंज और कुशीनगर हैं। इन दोनों जिलों के के 19 गांव नदी से प्रभावित हैं।
इन 19 गांवों की सीमाएं नेपाल और बिहार से लगती हैं। यहां करीब 1.20 लाख आबादी रहती है।
नारायणी नदी पर पुल नेपाल और बिहार की ओर है, यूपी की ओर नहीं।
मजबूरी में सभी लोगों को गांव में प्रवेश करने के लिए बिहार और नेपाल का रास्ता चुनना पड़ता है।
ये 19 गांव 12 महीने में से 5 महीने बाढ़ से संकटग्रस्त रहते हैं।
बाकी समय जंगली जानवर गांव में घुस आते हैं।
दरअसल, नदी के अलावा महराजगंज और नेपाल-बिहार के जंगल आपस में जुड़े हैं।
19 गांवों में आने-जाने के लिए रास्ता नहीं…
परेशानी से जूझ रहे राकेश कुमार बताते हैं कि महराजगंज और कुशीनगर के 19 गांवों में आवाजाही के लिए मार्ग नहीं है। एक अदद पुल के लिए लोग 40 वर्षों से सांसद, विधायक, अधिकारियों के सामने हाथ जोड़कर गिड़गिड़ा रहे हैं। लेकिन, न तो उत्तर प्रदेश सरकार का उसपर ध्यान है और न ही बिहार सरकार का। ऐसे में यहां रहने वाले लोग गांवों को नेपाल में शामिल करने की मांग कर रहे हैं। जबकि, अधिकारियों ने गांव की भौगोलिक स्थिति को देखते हुए बिहार में शामिल करने के लिए सरकार को पत्र लिखा है।
कुशीनगर से 70 और नेपाल में 52 किलोमीटर का सफर
कुशीनगर के महादेवा, मरिचहवा, शिवपुर, नरसिंहपुर, नारायनपुर, बसंतपुर, बालगोविंद छपरा, हरिहरपुर और महराजगंज के सुस्ता, शिकारपुर, सोहगीबार, बकुलहिया, वनस्तियां, फुटहवा, नरसिंहपुर, खपरधिक्का सहित 19 गांवों में प्रवेश के लिए पहले लोग नेपाल और बिहार में प्रवेश करते हैं। जहां पर नेपाल में 52 और बिहार में 70 किलोमीटर लंबी दूरी तय करके कुशीनगर और महाराजगंज के इन गांवों में प्रवेश करते हैं। यहां रहने वाले 19 गांवों के सवा लाख लोगों की परेशानी इससे समझी जा सकती है।
बाढ़ से बर्बाद हो जाती हैं फसलें
सबसे बड़ी दिक्कत 2000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में बोई जाने वाली फसलों की है। बाढ़ में जलमग्न होने से फसल बर्बाद, तो ठंड, गर्मी में जंगली जानवर और नेपाल, बिहार के लोगों द्वारा जबरन कब्जे से लोग परेशान रहते हैं। ऐसे में इन गांवों में रहने वाले लोगों को रिपोर्ट दर्ज कराने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती है।
जमीन को बिहार में शामिल करने के लिए DM ने सरकार को लिखा पत्र
कुशीनगर के और महाराजगंज के इन दुर्गम गांवों की भौगिलिक स्थिति को देखते हुए दोनों जिले के DM ने सरकर को पत्र लिख कर इन क्षेत्रों को बिहार में शामिल करने की मांग की है। कुशीनगर के तत्कालीन DM आंद्रा वामसी और महाराजगंज के DM सतेंद्र कुमार ने CM को पत्र लिख करके स्वास्थ्य, शिक्षा के साथ ही गांव तक पहुंचने में होने वाली दिक्कतों का जिक्र किया है। हालांकि, वहां पर रहने वाले लोग बिहार में शामिल होने की जगह नारायणी नदी पर भैंसहा घाट पर पुल निर्माण की मांग कर रहे हैं। जिससे नेपाल और बिहार से एंट्री से छुटकारा मिलने की जगह 60 किलोमीटर की दूरी में कमी होगी। लोगों का कहना है कि 6 बार सांसद और इस बार केंद्र में मंत्री होने के बाद भी पुल का निर्माण नहीं हो सका।
पहले डकैत, अब जंगली जानवरों का डर
कुशीनगर, महराजगंज के 19 गांवों में पहले डकैतों का खौफ था। बिहार के बगहा जिले से सटे होने के साथ ही नारायणी और गंडक नदी के आसपास के क्षेत्र होने से हर दिन जानमाल का नुकसान होता था। उत्तर प्रदेश और बिहार सरकार ने डकैतों के आंतक को समाप्त कर दिया। वाल्मिकी रिजर्व के पास होने से जंगली जानवरों का भय बना रहता है। सोहगीबरवा और बाल्मिकी राष्ट्रीय उद्यान से यहां पर अक्सर शेर-चीते का आंतक रहता है। रात के वक्त किसी भी स्थिति में लोग नहीं निकलते हैं। इसके साथ नेपाल, बिहार और उत्तर प्रदेश की सीमा पर बसे उत्तर प्रदेश के 19, बिहार के 10 और नेपाल के 7 गांव तस्करों के लिए स्वर्ग है। नकली नोट, हथियार, नशीले पदार्थों के साथ हर दिन हजारों लीटर पेट्रोल-डीजल, केरोसिन के साथ ही हर दिन खाने-पीने के सामानों की तस्करी होती है, जिससे राजस्व का नुकसान है।
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