सत्य खबर
राजनीति और रजनीकांत का संगम एक बार फिर होते-होते रह गया। तीन साल पहले उन्होंने राजनीति में उतरने का एलान किया था। हाल में विधिवत पार्टी बनाने की पहल भी की थी, लेकिन सियासी जमीन पर पदार्पण करने से ठीक पहले उन्होंने कदम पीछे खींच लिए। इसके पीछे कारण तो खराब सेहत को बताया जा रहा है, लेकिन जानकार इसकी तमाम वजहें और तमिलनाडु की राजनीति पर पड़ने वाले उसके संभावित असर की पड़ताल करने में जुटे हैं।
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इस देश में सियासत सबको अपनी ओर खींचती है, लेकिन रजनीकांत का मामला उलटा दिखता है। पिछली सदी के आखिरी दशक से ही उनके प्रशंसक उन पर राजनीति में आने का दबाव बना रहे हैं कि वह सियासी परिदृश्य पर भी रुपहले पर्दे वाला चमत्कार दोहराकर दिखाएं। पिछले कुछ वर्षो से उनकी फिल्में भी राजनीतिक संदेश और प्रतीकों वाली रही हैं। वैसे तो भारत नायक पूजा वाला देश है, लेकिन समकालीन दौर में जो रुतबा रजनीकांत को मिला वह शायद ही किसी अन्य सेलेब्रिटी को नसीब हुआ हो। इंटरनेट मीडिया पर उनके ‘कल्ट’ को लेकर अतिशयोक्तियों का अंबार लगा हुआ है। मिसाल के तौर पर जैसे उनका जन्मदिन 12 दिसंबर को पड़ता है तो लोग यही शिगूफा छेड़ते हैं कि चूंकि रजनीकांत इस महीने पैदा हुए तो कैलेंडर में कोई अगला महीना ही नहीं हुआ। ऐसी ‘लार्जर दैन लाइफ’ छवि के पीछे उनका सिनेमाई आकर्षण तो है ही, उससे कहीं अधिक निजी जीवन में उनकी सादगी, विनम्रता और सेवाभाव का बड़ा योगदान है। ‘रील’ और ‘रियल’ लाइफ के इस कॉकटेल से जो शख्सियत आकार लेती है उसी का नाम है-रजनीकांत। अन्यथा ऐसी मिसालें कम ही देखने को मिलती हैं कि भाषाई एवं सांस्कृतिक आधार पर दक्षिण के विभाजित राज्यों में कोई कन्नडिगा अपने कृतित्व-व्यक्तित्व से इस कदर तमिल दिलों की धड़कन बन जाए।
सेहत की चिंता
राजनीति में प्रवेश को लेकर पड़ रहे दबाव का प्रतिकार करते-करते आखिरकार रजनीकांत ने तीन साल पहले हथियार डाल ही दिए। उनके सियासी अवतार के साकार होने की खबर से उनके समर्थकों की मुंहमांगी मुराद पूरी हुई। उनके इस एलान की धमक चेन्नई से लेकर नई दिल्ली तक सुनी गई। यही माना गया कि उनमें राजनीति को वैसे ही प्रभावित करने की क्षमता है जैसे एक दौर में सिनेमा से सियासत में कदम रखने वाले एमजी रामचंन, एनटी रामाराव और जे. जयललिता ने किया था। तबसे यही प्रतीक्षा हो रही थी कि वह औपचारिक रूप से कब अपनी राजनीतिक पारी का आगाज करेंगे। कुछ महीने पहले उन्होंने इसके स्पष्ट संकेत भी दिए थे, लेकिन 29 दिसंबर को उन्होंने तीन पन्नों का एक बयान पढ़कर अपने समर्थकों की परवान चढ़ती उम्मीदों पर पानी फेर दिया। उन्होंने कहा, ‘अस्पताल में भर्ती होना मेरे लिए ईश्वर की चेतावनी है और इस महामारी के दौर में चुनावी कवायद मेरे स्वास्थ्य पर विपरीत असर डाल सकती है, लेकिन मैं राजनीति में आए बिना ही लोगों की सेवा करता रहूंगा।’ असल में 70 वर्षीय रजनीकांत की किडनी ट्रांसप्लांट हुई है और रक्तचाप में उतार-चढ़ाव उनकी मुश्किलें बढ़ा सकता है। ऐसे में वह शायद कोई जोखिम नहीं लेना चाहते। उनके इस कदम से उनके समर्थकों और उनसे उम्मीदें लगाए दलों को मायूसी जरूर हुई है, लेकिन उन्हें उम्मीद है कि राजनीतिक रण में मौजूद रहे बिना भी रजनी अपना ‘असर’ दिखा सकते हैं।
भाजपा को झटका
रजनीकांत के इस दांव से जहां राज्य के प्रमुख दलों सत्तारूढ़ अन्नाद्रमुक और विपक्षी द्रमुक ने राहत की सांस ली है, वहीं केंद्र में सत्तासीन भाजपा का खेल खराब होता दिख रहा है। दरअसल देश के लगभग सभी इलाकों में अपनी पैठ बनाने में सफल रही भाजपा के लिए तमिलनाडु का तिलिस्म तोड़ना दूर की कौड़ी रहा है। राज्य की द्रविड़ आधारित राजनीतिक व्यूह रचना का भाजपा के पास कोई तोड़ नहीं और वह परोक्ष रूप से रजनीकांत के भरोसे ही बैठी थी। इसके संकेत तब स्पष्ट भी दिखे जब कुछ महीने पहले केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के दो दिवसीय चेन्नई दौरे के बाद रजनीकांत खेमे की राजनीतिक सक्रियता में यकायक तेजी आई थी। शाह के दौरे के कुछ दिन बाद ही तमिलनाडु भाजपा बौद्धिक प्रकोष्ठ के प्रमुख अजरुन रेड्डी रजनीकांत के अजन्मे राजनीतिक दल के समन्वयक तक बन गए। कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने इसे लेकर रजनीकांत पर कटाक्ष भी किया था कि वह भाजपा के हाथों की कठपुतली हैं और द्रमुक के वोट काटकर भाजपाई गठजोड़ को लाभ पहुंचाना चाहते हैं।
हालांकि रजनीकांत ने कभी मुखर होकर अपने राजनीतिक विचार व्यक्त नहीं किए, लेकिन उनकी आध्यात्मिक प्रवृत्ति और राष्ट्रवादी विचारों के कारण उन्हें भगवा खेमे के नजदीक माना जाता है। वह वर्ष 2014 के आम चुनाव में नरेंद्र मोदी के लिए सांकेतिक अपील करने के साथ ही नागरिकता संशोधन कानून जैसे मसले पर भी मोदी सरकार का समर्थन कर चुके हैं। इतना ही नहीं वह तुगलक पत्रिका के संपादक और मोदी समर्थक चो रामास्वामी के काफी करीबी रहे हैं। भाजपा लंबे अरसे से उनके माध्यम से द्रविड़ राजनीति का पाया हिलाकर तमिलनाडु में प्रवेश की उम्मीदें पाले रही, लेकिन लगता है फिलहाल उसे और प्रतीक्षा करनी होगी।
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