सत्यखबर, सफीदों: महाबीर मित्तल
उपमंडल के गांव सरनाखेड़ी स्थित भक्ति योग आश्रम एवं प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र में जहां आमतौर पर श्रद्धालुओं और रोगियों की भ्भीड़ देखी जाती थी लेकिन लॉकडाउन के दौरान अब वहां विरानी और सन्नाटा है। अगर अब वहां कोई है तो वे हैं इस आश्रम के संचालक डा. शंकरानंद सरस्वती, महात्मागण एवं सेवकगण। इस लॉकडाउन में स्वामी शंकरानंद सरस्वती कैसा फील कर रहे है और कैसे अपना समय व्यतीत कर रहे हैं, इसको लेकर हमारे संवाददाता ने उनसे खास बातचीत की। बातचीत में डा. शंकरानंद सरस्वती ने बताया कि अब यहां लोगों का आना-जाना तो है नहीं फिर भी वे समय को बेहद सुंदर तरीके से व्यतीत कर रहे हैं। वे सुबह उठकर योगा करते है और स्नान आदि करके पूजा-अर्चना करते हैं। उसके उपरांत धार्मिक ग्रंथों का स्वाध्याय करते हैं। दोपहर के भोजन के उपरांत कुछ सुस्ताकर काफी समय मेडीटेशन करते हैं। उन्होंने कहा कि इस लॉकडाउन को हमें एक बोझ की तरह से नहीं बल्कि एक उपहार के रूप में स्वीकार करना चाहिए। भागमभाग और तनावग्रस्त जीवन के चलते लोग अनेकों बीमारियों का शिकार हो रहे हैं। सही मायने में तो अगर लॉकडाउन को देखा जाए तो यह अपने लिए समय निकालने का स्वर्णिम अवसर है। हमें इसका सदुपयोग करते हुए अपनी दिनचर्या को अपने व अपने परिवार के लिए प्रयोग करना चाहिए। अब तो सभी रात को जल्दी सो सकते हैं और सुबह जल्द ब्रह्ममुहुर्त में उठा जा सकता है। नित्यक्रिया से निवृत होकर थोड़ा समय योग व आध्यात्म को भी देना चाहिए। इस दौरान हलके-हलके योगासन कर सकते हैं। योगासन करने से इंद्रियां मन व प्राण नियंत्रित होते हैं। मन व प्राण नियंत्रित होने से तन प्रफुल्लित होता है। इस कठिन समय में कुछ देर स्वाध्याय भी करें। धार्मिक व ऐतिहासिक ग्रंथों के साथ-साथ हमारे पूर्वजों व महापुरुषों के जीवन चरित्र के बारे में भी पढ़े। उन्होंने लोगों से आह्वान किया कि लॉकडाउन में लोग अपने आप को कैद ना समझे क्योंकि इस महामारी से बचने का एकमात्र उपाय है सोशल डिस्टेंस ही है। सोशल डिस्टेंसिंग करके हम स्वयं, परिवार, समाज व देश को सुरक्षित रख सकते हैं। हमें नकारात्मकता को त्यागकर सकारात्मक सोच के साथ लॉकडाउन के नियमों का पालन करना चाहिए। उन्होंने सन्यास आश्रम के बारे में बताया कि सन्यास में व्यक्ति दीन दुनिया सबकुछ त्यागकर स्वयं को परमात्मा के चरणों में समर्पित करता है। एक सन्यासी वह होते हैं जो जन्म जन्मांतर से ही सन्यासी है। उनके मन में बचपन से ही इस तरह के विचार रहते हैं। दूसरे वह होते हैं जो आश्रम व्यवस्था में है जिसमें ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ से गुजरने के बाद सन्यास आश्रम में आते हैं। इसके अलावा एक और व्यवस्था भी कुछ वर्षों से चली आ रही है कि कुछ लोग अपने जीवनकाल से निराश होकर सन्यास की ओर भी चले जाते हैं।
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