सत्यखबर,चंडीगढ़
हरियाणा में एक नई परिपाटी की शुरुआत होने जा रही है। इसे नौकरशाहों द्वारा जनप्रतिनिधियों के सम्मान से जोड़कर देखा जा सकता है और उनकी सरकारी मजबूरी भी मानी जा सकती है। अधिकारियों द्वारा अक्सर विधायकों के फोन नहीं सुनने की शिकायतें आम हैं। प्रदेश सरकार द्वारा इस संबंध में अधिकारियों को चेतावनी जारी की जा चुकी, लेकिन अभी तक विधायकों की अनदेखी का सिलसिला कम नहीं हुआ है। अब व्यवस्था की जा रही है कि यदि कोई अधिकारी किसी विधायक का पूरे दिन में तीन बार फोन नहीं उठाता अथवा उसका जवाब नहीं देता तो ऐसे अधिकारियों की शिकायत विधानसभा अध्यक्ष के पास की जा सकती है।
विधायकों को रखना होगा तीन काल का रिकार्ड
विधानसभा अध्यक्ष ज्ञानचंद गुप्ता ने विधायकों को यह छूट दी है कि यदि वे चाहें तो अधिकारियों द्वारा फोन नहीं उठाने की शिकायत विधानसभा की विशेषाधिकार हनन कमेटी के सामने भी कर सकते हैं। हिसार के भाजपा विधायक डा. कमल गुप्ता विशेषाधिकार हनन कमेटी के अध्यक्ष हैं।
स्पीकर और विशेषाधिकार हनन कमेटी विधायक की शिकायत पर संबंधित अधिकारी को उसका स्पष्टीकरण मांगने के लिए तलब कर सकते हैं। दस सदस्यीय इस कमेटी के सदस्य यदि अधिकारी के जवाब से संतुष्ट नहीं होते तो उन्हेंं यह अधिकार है कि वह संबंधित अधिकारी के खिलाफ एक से छह माह की सजा की संस्तुति कर सकते हैं। पूर्व में लोकसभा की विशेषाधिकार हनन कमेटी की सिफारिश पर हाउस ऐसा पूर्व में एक बार कर चुका है। विधानसभा स्पीकर ज्ञानचंद गुप्ता के अनुसार विशेषाधिकार हनन कमेटी काफी पावरफुल होती है। अधिकारियों की जवाबतलबी का फैसला इसलिए लिया गया, क्योंकि अक्सर अधिकारियों द्वारा विधायकों के फोन नहीं उठाने अथवा काल बैक (वापस काल नहीं) करने की शिकायतें लगातार मिल रही हैं। सभी विधायकों से कहा गया कि वह अधिकारियों को किए जाने वाले फोन का रिकार्ड बनाकर रखें। उन्होंने कहा कि एक दिन में यदि कोई अधिकारी तीन बार फोन करने पर भी जवाब नहीं देता तो उसकी लिखित शिकायत विधानसभा अध्यक्ष के पास या विशेषाधिकार हनन कमेटी के पास की जा सकेगी। लोकसभा की विशेषाधिकार हनन कमेटी की तरह विधानसभा की विशेषाधिकार हनन कमेटी को भी यह अधिकार है कि वह विधायक की शिकायत पर सुनवाई के दौरान अधिकारियों को दोषी पाए जाने की स्थिति में हाउस के सामने अपनी सिफारिश कर सकती है।
दरअसल, कोरोना महामारी के दौर में विधानसभा स्पीकर ज्ञानचंद गुप्ता ने वीडियो कान्फ्रेंसिंग के जरिये सभी विधायकों से मानसून सत्र बुलाने समेत विधानसभा की कमेटियां गठित करने को लेकर रायशुमारी की। तब अधिकतर विधायकों ने स्पीकर से कहा कि अधिकारी उनकी सुनवाई नहीं करते। कई ऐसे मौके आ चुके, जब विधायक जनता के बीच में बैठकर किसी अधिकारी को फोन करते हैं, लेकिन अधिकारी फोन नहीं उठाते और न ही वापस काल करते हैं। इससे हलके की जनता में अच्छा संदेश नहीं जाता। विधायकों की इस पीड़ा को स्पीकर ने मुख्यमंत्री मनोहर लाल के सामने रखा। मुख्यमंत्री ने मुख्य सचिव केशनी आनंद अरोड़ा के माध्यम से सभी अधिकारियों के विधायकों, सांसदों, मंत्रियों, पूर्व मंत्रियों और पूर्व विधायकों का यथोचित सम्मान करने तथा उनकी हर तरह से सुनवाई करने के आदेश जारी करवाए।
विधायकों के सम्मान के लिए क्या है प्रोटोकाल
– हरियाणा सरकार के प्रोटोकाल के मुताबिक विधायक और सांसद का दर्जा मुख्य सचिव के बराबर है।
– सरकारी कार्यालयों और सार्वजनिक कार्यकमों में अफसर न केवल कुर्सी छोड़कर उनका अभिवादन करेंगे, बल्कि वापसी में उन्हेंं पूरे सम्मान के साथ गाड़ी तक छोड़कर आएंगे।
– सांसदों और विधायकों के उचित सुझावों पर अफसरों को अमल करना होगा। खड़े होकर उनका स्वागत करेंगे।
– अधिकारी यदि किसी जनप्रतिनिधि का फोन नहीं उठा पाते तो एसएमएस से उन्हेंं इसका कारण बताते हुए जवाब देना होगा।
– अगर किसी सांसद का निर्वाचन क्षेत्र दो जिले में पड़ता है तो अधिकारी दोनों जिलों में सांसद को कार्यक्रम में बुलाएंगे।
खुद विधायक-सांसद भी तो जिम्मेदार नहीं
बड़ा सवाल यह उठता है कि आखिर प्रदेश सरकार को यह जरूरत क्यों पड़ी की उसे अधिकारियों से अपने राज्य के विधायकों और सांसदों का सम्मान कराने के लिए लिखित में आदेश जारी करने पड़ रहे। इसकी बड़ी वजह यह बताई जा रही है कि जिस तरह एक मछली सारे तालाब को गंदा करती है, उसी तरह एक जनप्रतिनिधि अपने क्रियाकलापों अथवा गलत कार्यों के लिए अधिकारियों पर दबाव बनाकर अपनी गरिमा खुद खो बैठता है। ऐसा किसी सूरत में संभव नहीं है कि देश की इकलौती लाल बहादुर शास्त्री नेशनल अकेडमी ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन मसूरी में आइएएस को यह ट्रेनिंग न दी जाए कि उन्हेंं जनप्रतिनिधियों का सम्मान कैसे करना है। ऐसे में काफी हद तक जिम्मेदारी खुद विधायकों या सांसदों की भी बनती है।
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