साईबर सिटी में देवउठनी एकादशी पर सैकड़ों स्थानों पर बजेगी शहनाईयां, हर तरफ शादियों की धूम रहेगी।
सत्य ख़बर, गुरुग्राम, सतीश भारद्वाज:
भारत देश में करवा चौथ, अहोई माता, धनतेरस,दीपावली, गोवर्धन पूजा और भाई दूज आदि त्यौहारों के समापन होने के बाद चातुर्मास पूरा हो जाता है। वहीं 12 नवम्बर यानि मंगलवार को देवउठनी एकादशी है, जिससे सभी मांगलिक कार्य शुरु हो जाएंगे। जिससे बैंड बाजे, होटल रथबुगी, हलवाई,मेरिज गार्डन सहित इससे जुड़े व्यापारियों के चेहरे खिल उठे हैं, क्योंकि बरसात के बाद ही चार महीनों तक यह व्यवसाय ठंडा पड़ जाता है। वहीं शास्त्रों के अनुसार बताया गया है कि कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी या प्रबोधिनी एकादशी कहा जाता है। मान्यता है कि देवउठनी या देवोत्थान एकादशी के दिन ही भगवान विष्णु चार माह बाद निंद्रा से जागते हैं और शुभ व मांगलिक कार्यों की शुरुआत हो जाती हैं। शास्त्रों में देवउठनी एकादशी का विशेष महत्व बताया गया है। बताया जाता है कि आषाढ़ शुक्ल पक्ष की देवशयनी एकादशी को भगवान श्री हरि विष्णु 4 माह के लिए क्षीरसागर में शयन के लिए चले जाते हैं। ज्योतिषाचार्य पंडित रामौतार शर्मा का कहना है कि प्रबोधिनी एकादशी या देवउठनी या देवोत्थानी एकादशी के दिन भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा होती है। भगवान विष्णु से निन्दा से जागने का आह्वान किया जाता है। इस दिन प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण कर भगवान विष्णु का ध्यान कर व्रत का संकल्प लेना चाहिए। आंगन में भगवान विष्णु के चरणों की आकृति बनाएं, लेकिन धूप में चरणों को ढक दें। इसके बाद एक ओखली में गेरू से चित्र बनाकर फल, मिठाई, मौसमी फल और गन्ना रखकर डलिया से ढक दें। रात्रि में घरों के बाहर और पूजा स्थल पर दीये जलाए जाने चाहिए और पूरे परिवार के साथ रात्रि में भगवान विष्णु और अन्य देवी-देवताओं की पूजा करनी चाहिए। शाम की पूजा में भगवत कथा और पुराणादि का श्रवण व भजन आदि किया जाना चाहिए। इसके बाद भगवान को शंख, घंटा घडियाल आदि बजाकर विधि विधान से उठाया जाना चाहिए। उनका कहना है कि इस दिन व्रत रखने से बड़े से बड़ा पाप भी व्रतियों का नष्ट हो जाता है। पंडित जी का कहना है कि एक बार लक्ष्मी ने भगवान विष्णु से कहा कि हे, नाथ आप दिन-रात जागते हैं और फिर लाखों-करोड़ों वर्षों तक सो जाते हैं।