सफीदों, (महाबीर मित्तल)
साहिबजादों की याद में गांव रामपुरा की साध संगत द्वारा नगर के रामपुरा रोड़ पर अटूट लंगर लगाया गया। लंगर में सैकड़ों लोगों ने प्रसाद ग्रहण किया। इस मौके पर प्रमुख रूप से अंग्रेज सिंह, सतनाम, मंजीत, निशान सिंह, कुलदीप, अमृतपाल सिंह, इंद्रजीत सिंह, कुलविंद्र, बलजिंद्र व भगवंत सिंह मौजूद थे। आयोजक संस्था के प्रतिनिधियों ने बताया कि सरसा नदी पर बिछुड़े माता गुजर कौर जी व छोटे साहिबजादे बाबा जोरावर सिंह व साहबजादा बाबा फतेह सिंह अल्पायु में गिरफ्तार कर लिए गए। उन्हें सरहिंद के नवाब वजीर खां के सामने पेश कर माता जी के साथ ठंडे बुर्ज में कैद कर दिया गया। फिर कई दिन तक नवाब और काजी उन्हें दरबार में बुलाकर धर्म परिवर्तन के लिए कई प्रकार के लालच एवं धमकियां देते रहे।
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दोनों साहिबजादे गरजकर जवाब देते कि हम अकाल पुरख (परमात्मा) और अपने गुरु पिता के आगे ही सिर झुकाते हैं, किसी ओर को सलाम नहीं करते। हमारी लड़ाई अन्याय, अधर्म एवं जुल्म के खिलाफ है। हम तुम्हारे इस जुल्म के खिलाफ प्राण दे देंगे, लेकिन झुकेंगे नहीं। अंत में वजीर खां ने उन्हें जिंदा दीवारों में चिनवा दिया। साहिबजादों की शहीदी के पश्चात बड़े धैर्य के साथ ईश्वर का शुक्रिया अदा करते हुए माता गुजर कौर ने अरदास की एवं अपने प्राण त्याग दिए। ऐसे विरले महापुरूष व बच्चे इस धरती पर कभी-कभी ही पैदा होते हैं।
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