गरीबी देखी है, इसलिए गरीबी की दिक्कतें समझता हुं: ईश्वर सिंह
सत्यखबर, सफीदों: महाबीर मित्तल
कोरोना महामारी के कारण देशभर में लगाए गए लॉकडाउन के बीच अनेक सामाजिक संस्थाएं जरूरतमंद लोगों को राहत व सहायता पहुंचाने का कार्य कर रहे हैं लेकिन उन सब से इतर सफीदों के बी.डी.पी.ओ. कार्यालय के ग्राम सचिव ईश्वर सिंह हाल के दिनों में एक चलती फिरती संस्था बने हुए है और उसके सराहनीय कार्यों की प्रशंसा सफीदों ही नहीं बल्कि पूरे हरियाणा भर में हो रही है। ईश्वर सिंह जरूरतमंद लोगों को सहायता पहुंचाने के कार्य में लॉकडाउन के पहले दिन से ही लगे हुए हैं। बिना किसी अन्य की सहायता के स्वयं ही अपनी गाड़ी में रोजाना जरूरत का सामान जैसे आटा, दाल, चावल, आलू, प्याज, हरी मिर्च, मसाले, नमक, पानी की बोतल, केले व दवाईयां भरकर सुबह ही निकल पड़ते हैं और हर उस जरूरतमंद तक पहुंचते है जहां से उनके पास सहायता के लिए फोन आया होता है। ईश्वर सिंह के लिए सहायता देने की कोई सीमा नहीं है। वे पूरे हरियाणा में कहीं से भी फोन आ जाए उसे सहायता पहुंचाने का भरकम प्रयास कर रहे हैं। ईश्वर सिंह अभी तक जींद, पानीपत, करनाल, कुरुक्षेत्र, कैथल, अंबाला व फतेहाबाद समेत अनेक जिलों में करीब 2000 लोगों तक सहायताएं पहुंचा चुके हैं। ईश्वर सिंह का कहना है कि जीवन में मैंने गरीबी देखी है व मजदूरी की है, इसलिए वे एक गरीब की मजबूरी व दिक्कतें भली भांति समझ सकते हैं। गौरतलब है कि महामारी के दौरान सभी कामकाज व उधोग-धंधे बंद पड़े है व लोगों के पास रोजगार नहीं है, ऐसे में लोगों के सामने पेट भरने तक की समस्याएं आन खड़ी हुईं हैं। जरूरतमंद की सहायता के लिए बहुत सी सामाजिक संस्थाए आगे भी आई लेकिन कुछ ऐसे परिवार भी रह गए जिन तक ना तो कोई सामाजिक संस्था पहुंच पाई और ना ही कोई सरकारी सुविधा। ऐसे परिवारों के लिए ग्राम सख्चिव एक योद्धा के रूप में उभरकर सामने आए हैं और पूरे हरियाणा में मानवता की एक मिशाल बन चुके हैं। ग्राम सचिव ईश्वर सिंह ने बताया कि नौकरी से पहले उनका परिवार आर्थिक परेशानियों से गुजर चुका है और उन्हे पता है कि तंग हालातों में जीवन कैसे कटता है। ईश्वर सिंह आर्मी से रिटायर्ड हैं और देशभक्ति का जज़्बा उनमे कूट-कूटकर भरा हुआ है। इसके साथ-साथ ईश्वर सिंह ने 11 हजार रुपए व अपने वेतन का 25 प्रतिशत हिस्सा पी.एम. राहतकोष में दे चुके है। ईश्वर सिंह ने बताया कि वह 1995 में आर्मी में तैनात थे लेकिन चोट लगने के कारण से उन्हें समय से पहले पेंशन लेनी पड़ी। इसके बाद उन्हें बी.डी.पी.ओ. कार्यालय में ग्राम सचिव के पद पर नियुक्ति मिल गई। उन्होंने बताया कि आर्मी में जवान को देशप्रेम, निर्बल की सहायता करना व संकट की घड़ी में देशसेवा करने के लिए आगे आने की शिक्षा दी जाती है और उसी प्रेरणास्वरूप वे यह कार्य कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि सेना की पैंशन व ग्राम सचिव की नौकरी के कारण आज वे यह सबकुछ करने में सक्षम है और वे कुछ नहीं है, भगवान ने ही उन्हे यह कार्य करने के लिए योग्य बनाया है। जब तक लॉकडाउन रहेगा तब तक वे इस सेवा कार्य में निरंतर संलग्र रहेंगे। ईश्वर सिंह ने बताया कि सहायता देने से पूर्व वे यह जरूर जांचते हैं कि उसको वास्तव में उसको सहायता की आवश्यकता भी है या नहीं। इसके लिए वे मौके पर पहुंचकर आसपास के मौजिज लोगों से उस व्यक्ति या परिवार के बारे में तहकीकात करते है। पुष्टि होने के उपरांत सरकारी गाईडलाईन व सोशल डिस्टेंसिंग का पूर्ण रूप से पालन करते हुए उस व्यक्ति या परिवार को सहायता प्रदान करते हैं।
कभी ईश्वर सिंह ने बेची है रेहड़ी लगाकर सब्जियाँ
ईश्वर सिंह बेहद गरीबी से निकलकर आए हैं और इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि ईश्वर सिंह ने कभी रेहड़ी लगाकर सबजी भी बेख्ची है। उन्होंने बताया कि उनके पिता बेलदार के पद पर थे और किन्ही कारण उनकी नौकरी छुट। परिवार में पहले ही गरीबी थी और पिता की नौकरी जाने के बाद घर में ओर अधिक तंगी आ गई। बड़े होने के बाद उन्होंने सफीदों की सबजी मंडी में रेहड़ी भी लगाई है और गांव-दर-गांव जाकर सबजी भ्भी बेचख्ी है। इसी दौरान वे निरंतर रोजगार के लिए फार्म भरते रहे और उनकी सेना में नियुक्ति हो गई। वहां पर चोट लगने की वजह से पहले पैंशन पर आना पड़ा। सेना से आकर फिर रोजगार की तलाश हुई और फार्म भरते रहे तो पहले उनकी नगरपालिका में कलर्क और उसके बाद बी.डी.पी.ओ. कार्यालय में ग्राम सचिव के पद पर भर्ती हो गए। ईश्वर सिंह ने बताया कि उन्होंने सपनों में भी नहीं सोचा था कि एक सबजी बेचने वाले दिनों से निकलकर यहां तक पहुंचेंगे। वे सबकुछ भगवान का प्रसाद मानकर इस महामारी में लोगों को बांट रहें हैं।
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