सत्य खबर,पंजाब
केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने गुरुवार को मोदी कैबिनेट से कृषि संबंधी विधेयकों का विरोध करते हुए इस्तीफा दे दिया।हरसिमरत ने ऐसे ही मोदी कैबिनेट की कुर्सी नहीं छोड़ी है बल्कि डेढ़ साल बाद पंजाब में होने वाले चुनाव के समीकरण को साधने का दांव चला है।शिरोमणि अकाली दल ने केंद्रीय मंत्री पद त्यागकर गुरुवार को पंजाब के किसानों के बीच अपनी खिसकती जमीन तलाशने की कोशिश की है। अकाली दल प्रमुख सुखबीर सिंह बादल ने हरसिमरत कौर के इस्तीफे को पार्टी द्वारा किसानों के लिए एक बड़े बलिदान के रूप में पेश किया है।
अकाली दल की तरफ से मोदी सरकार में हरसिमरत कौर बादल ही एकमात्र कैबिनेट मंत्री थीं। पंजाब की यह पार्टी बीजेपी का सबसे पुराना सहयोगी दल है।पंजाब में अकाली दल का राजनीतिक प्रभाव बीजेपी से ज्यादा है और यहां की राजनीति किसानों के इर्द-गिर्द सिमटी रहती है। यही वजह है कि कृषि विधेयकों को लेकर लोकसभा में सुखबीर बादल ने कहा कि मोदी सरकार से उनकी पार्टी की एकमात्र मंत्री इस्तीफा दे देंगी।
पंजाब में कांग्रेस इस मुद्दे पर किसानों और किसान संगठनों का सहयोग हासिल करने के मामले में अकाली दल को काफी पीछे छोड़ चुकी है।पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने कृषि से जुड़े अध्यादेशों के खिलाफ 28 अगस्त को विधानसभा से प्रस्ताव पारित कर खुद को किसानों का हमदर्द बताने की कवायद पहले ही कर चुकी है।
पंजाब विधानसभा चुनाव में महज डेढ़ साल का ही समय बचा है। कृषि विधेयक के खिलाफ पंजाब के किसान सड़क पर हैं।पंजाब में किसान इतने आंदोलित हैं कि उन्होंने चेतावनी दी गई है कि जो भी सांसद इन बिलों के साथ होगा, उसे राज्य में घुसने नहीं दिया जाएगा।ऐसे में पंजाब की राजनीति करने वाली अकाली दल के लिए किसानों के उग्र तेवरों को देखते हुए सरकार के साथ खड़ा होना मुश्किल बनता जा रहा था।राजनीतिक समीकरण को देखते हुए किसानों की नाराजगी को अकाली दल अपने सिर नहीं लेना चाहती है। यही वजह है कि अकाली दल ने किसानों के सुर में सुर मिलाते हुए विधेयक के विरोध करने का रास्ता चुना। कांग्रेस हरसिमरत कौर के इस्तीफे को अकाली का नाटक बता रही है.
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