सत्यखबर, चंडीगढ़: हरियाणा सरकार के दस्तावेज, आंकड़ों के साथ साथ मुख्यमंत्री व अधिकारियों के बयान मिलकर साफ-साफ सरसों उत्पादक किसानों के साथ बड़े सरकारी धोखे की कहानी कहते हैं। स्वराज इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष योगेन्द्र यादव ने जारी किए गए बयान में यह कहा। उन्होंने कहा कि 15 से 18 अप्रैल तक तीन दिन में सरकारी वेबसाइट के अनुसार सिर्फ 5 लाख 75 हजार 670 क्विंटल सरसों मंडी में आई है। इस हिसाब से बाकी दो दिन में 5 लाख सरसों और भी आई तब भी कुल उत्पादन का करीब 8 फीसदी सरसों ही बिक पाएगी। जो हैफेड द्वारा जारी पत्र में बताई गई 30 लाख क्विंटल का भी एक तिहाई ही होगा। सरकार बड़ी योजना के तहत सरसों खरीद को 20 अप्रैल से रोकेगी । और गेहूं खरीद के बाद सरसों खरीद फिर से शुरू करेगी तो आर्थिक तंगी से झुझता किसान प्राइवेट लोगों को 1000 रुपये प्रति क्विंटल के नुकसान पर बेचने का बाध्य होकर बेच चुका होगा। दुबारा खरीद के समय किसान के पास सरसों थोड़ी बहुत होगी। फिर वह भी मिलकर करीब 15-20 फीसदी खरीद की जाएगी। फिर दावा होगा कि किसान जितनी सरसों मंडी में लाया वह खरीद ली गई। योगेन्द्र यादव ने मांग की कि सरकार सरसों खरीद 20 अप्रैल से रोके नहीं बल्कि इसे जारी रखा जाये। इस बाबत सरकार लिखित आदेश/सर्कुलर तुरन्त जारी करे। स्वराज इंडिया, हरियाणा के अध्यक्ष राजीव गोदारा ने आंकड़े रखते हुए कहा कि हरियाणा के मुख्यमंत्री ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि 15 से 19 अप्रैल तक किसानों की सारी सरसों फसल खरीदी जाएगी। अगर बच गई तो गेहूं की खरीद पूरी होने के बाद खरीद लेंगें। जबकि हैफेड का पत्र कहता है कि खरीद 16 अप्रैल से 30 जून तक जारी रहेगी। राजीव गोदारा ने कहा कि हरियाणा सरकार की वेबसाइट ekharid.in पर सरकार रजिस्टर्ड सरसों उत्पादकों, उत्पादन, जारी होने वाले गेट पास, खरीदी गई सरसों, पेंडिंग खरीद आदि का ब्यौरा अपडेट कर रही है। इस वेबसाइट को देखा जाए तो स्पष्ट है कि सरकारी बयान जारी गेट पास के आधार पर खरीद का दावा कर देती है। जबकि वेबसाइट ही बताती है कि कल देर रात के आंकड़ों अनुसार बताई गई 5 लाख 75 हजार क्विंटल सरसों में से 2 लाख 48 हजार क्विटल पेंडेंसी में दिखा रही है। यानी जारी किये गए गेट पास में से 43 फीसदी पेंडेंसी में है। स्वराज इंडिया, हरियाणा के महासचिव दीपक लाम्बा ने कहा कि सरसों खरीद में किसानों को लगातार मुश्किल आ रही है। कहीं नमी के नाम पर किसान को लौटाया जा रहा है, कहीं पोर्टल में दर्ज गलत आंकड़े तो कहीं पोर्टल के आंकड़ों की अनदेखी मुसीबत बन रही है। खरीद केंद्रों में व्यवस्था ठीक नहीं है तो किन किसानों को फसल लेकर आना है यह रहस्य ही बना हुआ है।
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