गुरुग्राम की पटौदी विधानसभा सीट से विकास की भूमिका निभाने MLA बनने को 14 ने भरा पर्चा, समीक्षा
सत्य ख़बर, गुरुग्राम, सतीश भारद्वाज :
हरियाणा में विधानसभा चुनाव सर पर है,जिसके लिए आगामी 05 अक्तूबर को मतदान होना है, चुनाव लोकतंत्र का सबसे अहम पर्व है जिसे मतदाता एवं प्रत्याशी मिलकर मनाते हैं। यह एक संवैधानिक प्रक्रिया है जिससे जनता के बीच से जनता के लिए जनता के द्वारा किसी जनहितैषी जन सेवक को जन सेवार्थ, स्वेच्छा से निष्पक्ष मतदान करके जनप्रतिनिधि चुना जाता है। इसमें 18 वर्ष व उससे अधिक सभी आयु वर्ग के नागरिक मतदाता के रूप में लोकतंत्र की बहाली, खुशहाली, संपन्नता उन्नति और अन्य जनहित के आयाम पाने के लिए उम्मीद करते हैं। इसी क्रम में चुनाव मैदान में अनेकों लोग महिला-पुरुष अथवा किन्नर चुनावी क्षेत्र में अपनी अपनी जन सेवा के लिए समर्पित रहकर पहचान व लोकप्रियता सिद्ध करते हैं। जिसकी जितनी अधिक पहचान व लोकप्रियता होती है मतदाता रूपी क्षेत्रवासी अपने वोट के द्वारा इसे तय करते हैं। होना तो यही चाहिए परंतु आज के समय में हो क्या रहा है? चुनाव को कोई लड़ाई मान कर लड़ा जाने लगा है और इसका नतीजा यह होता है कि संकीर्ण एवं दूषित किस्म की मानसिकता वाले कुछ लोग पवित्र चुनाव को बहुत ही बेईमानी, छल कपट और धनबल बाहुबल तथा झूठ के इस्तेमाल से सत्ता हासिल करने के लिए चुनाव जीतने की मंशा से आ रहे हैं। यह एक चिंता एवं भावी खतरे आदि का विषय है। आज नेताओं के नाम पर बड़े बड़े माफिया, बिल्डर, भ्रष्टाचारी, बदमाश, ठग- बेईमान और स्वार्थी लोग चुनाव लड़ते देखे जा सकते हैं जो काम, दाम, दण्ड,भेद के फार्मुले को अपनाते हुए चुनाव जीतने के बाद अपना दायित्व व वादा भूल जाते हैं। हमारे देश में विभिन्न राजनीतिक दल हैं जो सभी के अपने अपने लक्ष्य-उद्देश्य और एजेंडे को लागू कराने के लिए अलग-अलग पार्टी की विचारधारा का प्रचार प्रसार करके मतदाताओं को मतदान करने के लिए प्रेरित करते हैं। जनता द्वारा जिसे भी अपना हितैषी माना जाएगा उसे ही अमूल्य वोट दे देती है, राजनैतिक दलों के लिए उनकी पार्टी के कार्यकर्ता क्षेत्र में वोटर को पार्टी व प्रत्याशी की विचारधारा, भावी योजनाएं और चाल चरित्र चेहरा के साथ साथ जनसेवा के दम पर चुनाव लड़ने के लिए योग्यता की परख करके टिकट देने पर विचार करते हैं। पार्टी में शामिल कार्यकर्ताओं में से किसी को उम्मीदवार चुना जाता है जिसे मतदाताओं से मिले वोट के आधार पर सबसे ज्यादा वोट पाने वाला विजयी माना जाता है। कई पार्टियां जन सेवक चुनने के नाम पर करोड़ो रुपए लेकर जनता के साथ विश्वास घात करते हैं और लोकतंत्र के पवित्र पर्व चुनाव को बेकार सिद्ध करते हैं। इसमें गुड़गांव की पटौदी विधानसभा सीट पटौदी में जो हुआ। उसके अंश वरिष्ट लेखक विमल वर्मा के अनुसार प्रस्तुत हैं :- पार्टियों में कांग्रेस पार्टी व भाजपा के टिकटार्थीगण टिकट पाने के लिए पुरजोर ताकत से टिकट की दावेदारी पेश कर रहे थे। टिकट मिलनी है एक को लेकिन कांग्रेस से आवेदन कर बैठे 42 लोग। कई दिनों के प्रचार प्रसार व शक्ति प्रदर्शन के उपरांत जब टिकट मिलने के आसार सुनीता वर्मा, सुधीर चौधरी व अन्य के नाम की सुगबुगाहट हुई तो टिकट मिलने से छूटने वाले उम्मीदवारों का विरोध होना कुछ कुछ स्वाभाविक ही था। कई लोग अन्य दलों को छोड़कर आए तो कुछ लोग नौकरी से वीआरएस लेकर आए तो कुछ सेवा निवृत्त थे जो चुनाव लड़ने के प्रबल इच्छुक थे। सभी दावेदारों को उम्मीद थी कि उन्हें ही टिकट मिलेगी लेकिन टिकट सुधीर चौधरी और सुनीता वर्मा और पर्ल चौधरी के नाम पर चर्चा का केन्द्र बन गई थी। कईयों का आपस में भारी विरोध था जिसके चलते खूब विरोध प्रदर्शन अपने अपने ढंग से किए गए। पर्ल चौधरी सहित कई टिकटार्थियों ने दो बार हारे कांग्रेस के पूर्व प्रत्यासी सुधीर चौधरी का पुरजोर विरोध किया जिस पर आला कमान ने वितरण प्रणाली पर उठ रहे सवालों को ध्यान में रखते हुए टिकट वितरण में पुनर्विचार करते हुए देर रात्रि को अचानक से पर्ल चौधरी के नाम पर मोहर लगा दी। जबकि सुधीर चौधरी को भरोसा था उसे ही टिकट मिल चुकी है और उसके समर्थक जश्न मनाने लगे थे। नामांकन के अंतिम दिन पर्ल चौधरी ने पटौदी में नामांकन दाखिल किया। गौरतलब हो कि कल तक सुधीर चौधरी के समर्थक सुधीर को टिकट मिलने की खुशी में जश्न मना रहे थे उनमें खासा गुस्सा देखने को मिला। कांग्रेस की ओर से टिकट मांगने वाले कई टिकटार्थी पार्टी छोड़कर अन्य दलों से टिकट का जुगाड़ करके नोमिनेशन भर चुके हैं। इसी कड़ी में कांग्रेस से बाधी होने वालों में सुधीर चौधरी ने भी कांग्रेस को टाटा करते हुए निर्दलीय भरा पर्चा भर दिया है। आज पटौदी विधान सभा से 14 प्रत्याशियों ने अपना नामांकन दाखिल किया है। देखना होगा कि 16 तारीख को नाम वापिस लेने के मौके पर कौन कौन अपना पर्चा वापिस खींचता है? जन चर्चा की बात करें तो जीत का दावा करने वालों में सुधीर चौधरी का नाम सबसे अधिक केन्द्र बिंदू बना हुआ है। प्रदीप जाटौली ने कांग्रेस छोड़ आम आदमी पार्टी से टिकट ले ली तो पवन भौड़ा ने भी कांग्रेस छोड़ निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में पर्चा भरा है। चर्चा है कि इनैलो से समर्थन लेकर पवन जीत का दावा कर रहे हैं। जनता ने देखा कि किस तरह से टिकट पर घमासान व नाटक हो रहा है, कि कोई किसी पार्टी को छोड़कर आया टिकट न मिली फिर पार्टी छोड़ दूसरी में जा पहुंचा और चुनाव लड़ने की ईच्छा तो पूरी कर ली लेकिन जीतने के लिए सिर्फ टिकट मिलना या सिर्फ इच्छा पाल लेना ही काफी नही है। लोगों की माने तो कुछ प्रत्यासी तो दूसरे प्रत्यासियों से पैसा कमाने के चक्कर में नोमिनेशन भरें हैं। वहीं कुछ लोगों ने बदले की नियत से टिकट मिलने वाले को हराने की खातिर पर्चा दाखिल किया है। ऐसे में टिकट के लिए संघर्ष की जंग जीते हुए प्रत्यासी सकते में आ गए हैं कि अब वो अपनी प्रतिद्वंदी पार्टी से लड़े या साथ में अपने विरोधी साथी से भी लड़े क्योंकि इस तरह किसी को भी जीत के लिए राह आसान नहीं लग रही है।अपनी यही स्थिति कांग्रेस के अलावा भाजपा की भी है और ऐसे मौके का सीधा लाभ निर्दलीय व अन्य दल उठा सकते हैं। संभवतः कई लोग पार्टी से बगावत का ख्याल समझाने बुझाने व प्रचार खर्च मिल जाने के बाद 16 तारीख को बगावत का ख्याल त्याग कर अपना नाम वापिस ले कर पश्चाताप भी कर सकते हैं। खैर! क्षेत्र के मतदाता इस बार किसी सच्चे अच्छे व विकास कराने को निष्पक्ष विधायक को चुनने के मूढ़ में हैं अब वो चाहें किसी पार्टी से हों या फिर निर्दलीय। पर्ल के लिए शीर्ष नेतृत्व की इज्जत व उम्मीद पर खरा उतरना जरूरी होगा और यह पर्ल के लिए बेहद चुनौती पूर्ण होगा।