सत्य खबर, चण्डीगढ़
सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने कहा कि MSP पर कमेटी न बनाकर सरकार ने किसानों के साथ विश्वासघात किया है। भाजपा सरकार का ध्येय चंद बड़े औद्योगिक घरानों का पोषण और किसान-मजदूर का शोषण बन गया है। उन्होंने 50 साल बाद देश में आये अनाज संकट के लिये भाजपा सरकार को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि आज देश में एमएसपी व्यवस्था और पीडीएस प्रणाली में जो चुनौतीपूर्ण स्थितियां बनी हैं वो भाजपा सरकार के इसी ध्येय का नतीजा है। BJP सरकार की नीतियों से राष्ट्र-सुरक्षा, खाद्य सुरक्षा, किसान की आय सुरक्षा खतरे में दिख रही है। इस सरकार ने अग्निपथ योजना लाकर राष्ट्र-सुरक्षा से, निजी निर्यातकों को गेहूं निर्यात की छूट दे खाद्य सुरक्षा से और MSP में छेड़छाड़ कर किसान की आय सुरक्षा से भी खिलवाड़ किया है। दीपेंद्र हुड्डा ने कहा कि सरकार ने किसान आंदोलन और देश के किसान के साथ बहुत बड़ा धोखा किया है। 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने और एमएसपी कमेटी गठित करने, संयुक्त किसान मोर्चा से समझौते के मामले में तो सरकार ने धोखा दिया ही, किसान से विश्वासघात में जो थोड़ी बहुत कसर बाकी रह गयी थी वो नीति आयोग के सदस्य द्वारा दिये बयान ने पूरी कर दी। इस बयान ने किसान की पीठ पर पड़े घाव पर नमक फेंकने का काम किया है। देश का किसान सरकार के इस विश्वासघात से कराह रहा है। दीपेंद्र हुड्डा ने सरकार से मांग करी कि किसान आंदोलन के दौरान किसानों के साथ हुए समझौते के मुताबिक तुरंत एमएसपी कमेटी का गठन हो और सरकार मौजूदा अनाज संकट के संबंध में खरीद, पीडीएस, गेंहू निर्यात पर श्वेत-पत्र जारी कर बताए कि किस-किस को मुनाफा पहुंचा। 10 मिलियन टन से ज्यादा गेहूं देश के बाहर क्यों गया? जब तक ये नहीं होगा हम किसानों के साथ हैं। संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा 18 जुलाई से 31 जुलाई तक पूरे देश में विश्वासघात सेमिनार किया जा रहा है। कांग्रेस पार्टी का पूर्ण नैतिक समर्थन विश्वासघात सेमिनार के साथ ही किसान और किसान आंदोलन को रहेगा।
सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने नीति आयोग के सदस्य द्वारा एमएसपी की कानूनी गारंटी देने पर बाजार बर्बाद होने से संबंधित बयान की निंदा करते हुए कहा कि इस बयान से स्पष्ट है कि सरकार एमएसपी व्यवस्था से पीछे हटने और निजी खरीद की तरफ आगे बढ़ने की ओर कदम बढ़ा रही है। जिससे देश के किसान और देश के गरीब आदमी का भविष्य निजी हाथों में चला जाये। किसान, किसानी और कृषि क्षेत्र को लेकर सरकार की क्या नीतियां आने जा रही हैं इसकी एक झलक नीति आयोग के बयान से ही स्पष्ट हो जाती है। सरकार उसी रास्ते पर चलना चाहती है जिस रास्ते से एमएसपी प्रणाली को तहस-नहस करने के लिये सरकार तीन कृषि कानून लेकर आयी थी।
उन्होंने कहा कि आज देश में गेहूं के लाले पड़ गये हैं और सरकार को पीडीएस में दिये जाने वाले अनाज के लिये अपना अनुपात प्रतिशत बदलना पड़ रहा है। इस साल 10 प्रदेशों के गेहूं आवंटन में भारी कटौती की गयी है। सरकार कह रही है कि सेंट्रल पूल में गेहूं का स्टॉक 2008 के स्तर से भी नीचे चला गया है। यानी गेहूं का स्टॉक 15 साल में सबसे कम है लेकिन आबादी के अनुपात में देखें तो ये 50 साल के निचले स्तर पर पहुंच गया है। पिछले साल 43.34 मिलियन टन गेहूं खरीद हुई थी। इस साल गेहूं खरीद के सरकारी लक्ष्य 50 मिलियन टन के मुकाबले सिर्फ 18.73 मिलियन टन हुई, जो 56 प्रतिशत कम है। यही कारण है कि प्रदेशों को गेहूं नहीं दिया जा रहा है। बल्कि सरकार पीडीएस के लिये अपना अनुपात प्रतिशत बदलकर गेंहू की बजाय चावल देने की बात कह रही है और गेहूं आवंटन न करने के पीछे पर्याप्त खरीद न होना बताकर इसका दोष मौसम पर थोप रही है। जबकि इसका मुख्य कारण सरकार की निर्यात नीति है। सरकार ने कुछ बड़े औद्योगिक घरानों को फायदा पहुंचाने के लिये किसान और गरीब आदमी को सरकार ने चोट पहुंचायी है।
इस संबंध में विस्तार से बताते हुए उन्होंने कहा कि यूक्रेन युद्ध के कारण अंतर्राष्ट्रीय बाजार में गेहूं की कीमत करीब 3500 रुपये प्रति कुंतल तक पहुंच गयी, जबकि देश में एमएसपी करीब 2000 प्रति कुंतल तक ही थी। इसका फायदा ट्रेडर्स ने उठाया और किसान से लेकर गेहूं स्टॉक किया और 10 मिलियन टन से ज्यादा गेहूं विदेशों में निर्यात कर दिया। सरकार बताए ट्रेडर्स को गेहूं का निर्यात क्यों करने दिया? इसका फायदा किसकी जेब में गया? दीपेंद्र हुड्डा ने यह भी कहा कि वो लगातार मांग करते रहे कि सरकार किसानों को गेहूं पर बोनस दे ताकि किसानों की जेब में पैसा जाए। लेकिन सरकार ने कोई बोनस नहीं दिया। उन्होंने यह भी जोड़ा कि यदि सरकार किसानों को बोनस देकर खरीद करती और पर्याप्त स्टॉक सेंट्रल पूल में पहुंचाती तो गरीब को भी अनाज मिलता और किसानों को भी कुछ लाभ होता। लेकिन सरकार ने अंतर्राष्ट्रीय बाजार में गेहूं के बढ़े भाव से मुनाफाखोरी करने के लिये एक्सपोर्टर्स को निर्यात की खुली छूट दे दी।
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दीपेंद्र हुड्डा ने कहा कि संयुक्त किसान मोर्चा के साथ समझौते की बात हो या 2022 में किसान की आमदनी दोगुनी होने की बात हो। सरकार उन सारे वायदों को न सिर्फ भूल गयी है बल्कि ऐसा लगता है कि इन सारे वायदों को सरकार ने उन्हीं जुमलों की लिस्ट में डाल दिया है जिसमें हर साल 2 करोड़ रोजगार और विदेशों से काला धन लाकर लोगों के खाते में 15-15 लाख देने का जुमला था। सांसद दीपेंद्र ने भाजपा को 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने के वादे की याद दिलाते हुए कहा कि 6 महीने पहले तक भाजपा किसान की आमदनी दोगुनी करने की बात उठाती रही, लेकिन 2022 शुरु हुए 6 महीने बीत गये और सातवां महीना चल रहा है। भाजपा के नेताओं ने दोगुनी आमदनी की बात करना ही छोड़ दिया। सरकार बताए कि किसान के लिये 2022 कब आयेगा ? उन्होंने आगे कहा 2016 से 2022 में किसान की आमदनी तो दोगुनी हुई नहीं, खर्चा जरूर दोगुना हो गया। डीजल, खाद के भाव करीब दोगुने हो गये। सरकार किसान के खर्चे आधे करे तभी तो उसकी आमदनी दोगुनी होगी। उन्होंने बताया कि हरियाणा में कांग्रेस सरकार के समय धान 5000-6000 रुपया कुंतल बिका, उसका दोगुना 10000-12000 रुपया होता है; गेहूं 1600 रुपये कुंतल बिका, जिसका दोगुना 3200 रुपये कुंतल होता है; हमने जब सरकार छोड़ी तब गन्ना 311 रुपया कुंतल था, इसका दोगुना 622 रुपया कुंतल होता है। किसानों को दोगुना भाव मिलेगा तभी उनकी आमदनी दोगुनी होगी।
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