कहा: समयबद्ध जारी हो शिक्षकों की स्थानांतरण व स्थाईकरण सूची
सत्य खबर सफीदों, महाबीर मित्तल: हरियाणा शिक्षा विभाग में दिन-प्रतिदिन नए-नए प्रयोग किए जा रहे है जिसका खामियाजा सरकारी स्कूल के विद्यार्थियों को भुगतना पड़ रहा है। स्कूल कैडर लैक्चरर एसोसिएशन हरियाणा (सलाह) के राज्य वरिष्ठ उपप्रधान अशोक शर्मा ने बताया कि प्रदेश में सिटीजन चार्टर सख्ती से लागू होना चाहिए। हरियाणा में अंग्रेजी माध्यम से शुरू किए गए मॉडल संस्कृति स्कूल शुरुआत में ही दम तोड़ते नजर आ रहे है। नए शैक्षणिक सत्र को शुरू हुए 5 महीनें बीत चुके है परन्तु इन विद्यालयों में शिक्षा विभाग शिक्षकों की नियुक्ति नहीं कर पाया है। बिना शिक्षकों के विद्यार्थियों की नैया कैसे पार होगी, यह एक बड़ा प्रश्र बन चुका है। दूसरा सरकार ने अपने राज्य के शिक्षा बोर्ड की अनदेखी करते हुए इन विद्यालयों को सीबीएसई बोर्ड से संबंधित कर दिया जोकि एक राज्य के सरकारी विद्यालयों में भेदभाव की नीति शुरू कर दी। शैक्षणिक सत्र 2021-22 के लिए हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड भिवानी व एससीईआरटी के पाठ्यक्रम में समानता नही है।
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12 सितम्बर तक एससीईआरटी सितम्बर माह का सभी विषयों का पाठ्यक्रम भी जारी नहीं कर पाया है। शिक्षा विभाग के आदेशों के बाद भी एससीईआरटी के द्वारा 30 प्रतिशत पाठ्यक्रम कम नही किया गया है। हरियाणा सरकार के द्वारा विद्यार्थियों को ऑनलाइन एजुकेशन के लिए न तो टेबलेट वितरित किए गए और न ही पाठ्यपुस्तक। सलाह संगठन के राज्य मिडिया राज्य आईटी सैल प्रभारी अनिल सैनी ने बताया कि हजारों कर्मचारियों की अभी तक ब्लॉक वर्ष 2016-19 की एलटीसी पेंडिंग पड़ी हुई है। स्कूल शिक्षा विभाग में पिछले 10 वर्षों से प्रवक्ता पद के लिए फाइनल वरिष्ठता सूची व स्थाईकरण सूची भी जारी नहीं हो पाई है। प्रदेश में ऑनलाइन स्थानान्तरण पालिसी भी दम तोड़ती नजर आ रही है। 975 विद्यालयों में प्राचार्य के पद व हजारों की संख्या में प्रवक्ता के पद रिक्त पड़े हुए है। प्राचार्य पद व मुख्याध्यापक पद पर पदोन्नति सूचि जारी होने के बाद भी उनको समय से स्टेशन नहीं दिए गए। बड़े स्तर पर कर्मचारियों के एसीपी मामले पेंडिंग पड़े हुए है। सलाह संगठन के राज्य सचिव भूपेंद्र ने बताया कि जब विद्यार्थियों के लिए स्कूल खोल दिए गए है तो ऑनलाइन वर्क भी तुरंत प्रभाव से बंद होना चाहिए। शिक्षकों का काफी समये एप्प पर विद्यार्थियों की उपस्थिति व तापमान भरने में खर्च हो जाता है। बार-बार शिक्षको और अभिभावकों से ऑनलाइन सर्वे भरवाने का कार्य करवाया जा रहा है जो समय की बर्बादी है। ऑनलाइन शिक्षा के कारण विद्यार्थियों के मानसिक, नैतिक व शारीरिक स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है।
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