सत्यखबर, ऐलनाबाद
ऐलनाबाद उपचुनाव के नतीजे ठीक वैसे ही आए, जैसी उम्मीद थी। इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) के प्रधान महासचिव अभय सिंह चौटाला चुनाव तो जीत गए, लेकिन उपचुनाव के परिणामों ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि कृषि सुधार कानून विरोधी आंदोलन का एक वर्ग विशेष को छोड़ दें तो आम मतदाता पर कोई खास प्रभाव नहीं रहा। यह चुनाव नतीजे जहां कृषि सुधार कानूनों का विरोध करने वालों के लिए बड़ा सबक हैं, वहीं मुख्यमंत्री मनोहर लाल का राजनीतिक कद बढ़ाने वाले हैं। भाजपा-जजपा गठबंधन के उम्मीदवार की हार के बावजूद उनका जनाधार बढ़ा। गठबंंधन के उम्मीदवार ने चौटाला परिवार के गढ़ में अभय चौटाला को कड़ी टक्कर दी। इन चुनाव नतीजों में भले ही भाजपा-जजपा-हलोपा गठबंधन के उम्मीदवार गोबिंद कांडा मामूली मतों के अंतर से पराजित हो गए, लेकिन भविष्य में गठबंधन की पींग अधिक मजबूती के साथ बढ़ने की संभावनाएं बलवती हो गई हैं। उपचुनाव में जितनी मेहनत अभय सिंह चौटाला को जीतने के लिए करनी पड़ी, उससे कहीं अधिक मेहनत जजपा नेताओं ने गठबंधन को मुख्य लड़ाई में लाकर खड़ा करने में की है। सिरसा जिले की ऐलनाबाद विधानसभा सीट के चुनाव नतीजों पर पूरे प्रदेश की निगाह टिकी हुई थी। 2019 के विधानसभा चुनाव में जब कृषि कानून मुद्दा नहीं थे, तो अभय सिंह चौटाला करीब 12 हजार मतों के अंतर से चुनाव जीते थे। लेकिन, अब लगभग पौने सात हजार मतों के अंतर से चुनाव जीत पाने का मतलब है कि सब कुछ हरा-हरा नहीं कहा जा सकता। आंदोलन के सबसे चर्चित चेहरे राकेश टिकैत ने चुनाव प्रचार के दौरान इशारों ही इशारों में अभय सिंह चौटाला की खाली झोली सवाया कर भरकर लौटाने की बात कही थी।
मतलब साफ था कि अभय चौटाला को वोट दिया जाए, लेकिन उनकी अपील के बावजूद 6708 मतों के अंतर से जीत पर इनेलो व किसान संगठनों को आत्मचिंतन करने की जरूरत हो सकती है। राकेश टिकैत और नामधारी सिख बेल्ट ने अभय चौटाला की ऐलनाबाद में लाज बचाई है। ऐलनाबाद के उपचुनाव में स्पष्ट तौर पर जाट और गैर जाट का कार्ड खेला गया है। जाट समुदाय के मतदाताओं ने एकजुटता दिखाते हुए जहां कांग्रेस के पवन बैनीवाल की अनदेखी की, वहीं अभय सिंह चौटाला के लिए खुलकर खड़े हो गए और उन्हें जीत की दहलीज तक पहुंचा दिया। इसी तरह गैर जाट मतदाता भाजपा-जजपा-हलोपा गठबंधन के प्रत्याशी गोबिंद कांडा के समर्थन में ताल ठोंककर अड़ गए।
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भाजपा को जहां शहरी मतदाताओं ने दिल खोलकर वोट दिए हैं, वहीं अजय सिंह चौटाला, दुष्यंत चौटाला, दिग्विजय चौटाला और कैप्टन मीनू बैनीवाल की लाइजनिंग भी गठबंधन के लिए खासी काम आई है। हलोपा विधायक एवं पूर्व मंत्री गोपाल कांडा हर तरह से साधन संपन्न हैं। उनका सिरसा जिले में अच्छा रसूख है। इस उपचुनाव में गोपाल कांडा के रसूख की वजह से छोटे भाई गोबिंद कांडा की झोली में वोटों की संख्या बढ़ा दी है। भाजपा-जजपा गठबंधन भले ही यह चुनाव हार गया, लेकिन जिस मजबूती के साथ यह लड़ाई लड़ी गई है, उससे साफ नजर आ रहा है कि भविष्य में गठबंधन की नींव अधिक मजबूत होने वाली है। मुख्यमंत्री मनोहर लाल और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ की चुनावी रणनीति तथा गोबिंद कांडा के रूप में प्रत्याशी के चयन की मौलिकता ने गठबंधन का भविष्य सुरक्षित कर दिया है। ओमप्रकाश धनखड़ पूरे समय चुनाव प्रचार में डटे रहे। मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने दो से तीन दिन ऐलनाबाद में लगाए, लेकिन वह चंडीगढ़ बैठकर यहीं से फिरकी घुमाते रहे। इसका असर यह हुआ कि भाजपा व जजपा नेताओं को फील्ड में मेहनत का असर नजर आया।
ऐलनाबाद के साथ-साथ यदि बरौदा उपचुनाव की बात करें तो वहां पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के प्रत्याशी इंदुराज नरवाल ने जीत हासिल की थी। ऐलनाबाद में पवन बैनीवाल भले ही कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े, लेकिन वह कांग्रेस की बजाय कुमारी सैलजा के ज्यादा उम्मीदवार थे। सैलजा ने पवन बैनीवाल के लिए ऐलनाबाद में दिन-रात एक कर दिया, लेकिन हुड्डा का आशीर्वाद नहीं मिल पाने का नतीजा यह रहा कि अब पवन बैनीवाल की जमानत जब्त हो गई। पवन बैनीवाल पहले भाजपा के टिकट पर दो चुनाव हार चुके हैं, जबकि गोबिंद कांडा सिरसा जिले की ही रानियां विधानसभा से दो चुनाव खो चुके हैं। ऐलनाबाद में आकर लड़ने का फायदा गोबिंद कांडा को यह मिला कि अब भविष्य में वह कोई भी बड़े से बड़ा चुनावी रिस्क लेने की ताकत में आ गए हैं।
भाजपा के हक में गैर जाट मतदाता की लामबंदी
बरौदा उपचुनाव में कांग्रेस का नहीं बल्कि हुड्डा का प्रत्याशी जीता था। ऐलनाबाद में इनेलो की बजाय ओमप्रकाश चौटाला का प्रत्याशी जीता हुआ माना जाए तो बेहतर है है। ये दोनों सीटें ऐसी हैं जहां जाट मतदाता लगभग 47 से 50 प्रतिशत हैं। बरौदा सोनीपत में है। ऐलनाबाद सिरसा में। सोनीपत, रोहतक और झज्जर हुड्डा के प्रभाव क्षेत्र वाले जिले हैं तो सिरसा, फतेहाबाद, हिसार, जींद चौटाला के प्रभाव वाले जिले माने जाते हैं। बरौदा में भाजपा प्रत्याशी योगेश्वर दत्त ने हुड्डा के प्रत्याशी को तगड़ी टक्कर दी थी तो ऐलनाबाद में भाजपा-जजपा-हलोपा गठबंधन के प्रत्याशी गोबिंद कांडा ने कड़ी टक्कर दी है। इन जाट बहुल सीटों पर भाजपा प्रत्याशियों का दमदार प्रदर्शन इस बात का संकेत है कि गैर जाट मतदाता भाजपा के लिए लामबंद हो रहा है।
अभय चौटाला की जीत में हुड्डा का सहयोग
सिरसा जिले के ऐलनाबाद हलके में भले ही इनेलो का वोट प्रतिशत बढ़ा है, लेकिन अभय चौटाला के मुकाबले भाजपा का बढ़ा वोट बैंक और अभय की जीत का अंतर कम होना, भविष्य की राजनीति पर प्रभाव डालेगा। पंजाबी बेल्ट (नामधारी सिख बाहुल्य) में तो भाजपा-जजपा नेताओं का जमकर विरोध भी हुआ। कई गांवों में तो दोनों पार्टियों के नेता प्रवेश तक नहीं कर सके। कांग्रेस वर्चस्व वाली इस बेल्ट ने अभय चौटाला का पूरा साथ दिया। इसका यह भी बड़ा कारण माना जा सकता है कि सिख बेल्ट में किसान आंदोलन का सबसे अधिक असर भी था। लेकिन इस बात से भी इन्कार नहीं किया जा सकता कि कहीं न कहीं अभय की जीत में हुड्डा का भी योगदान रहा है। ओमप्रकाश चौटाला कई बार सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा को अपने बेटे की तरह कह चुके हैं, लेकिन जब हुड्डा को अपनी पसंद के भरत बैनीवाल को ऐलनाबाद से टिकट नहीं मिला तो वह साइलेंट होकर इशारों ही इशारों में अभय या गोबिंद दोनों में से किसी एक को चुनने का इशारा पहले ही कर चुके थे।
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