ताजा समाचार

बिहार NDA में सीट बंटवारे का फॉर्मूला तय नहीं, दुविधा में फंसे सांसद

सत्य खबर/नई दिल्ली:

लोकसभा चुनाव करीब होने के बावजूद बिहार में एनडीए में शामिल दलों के बीच सीट बंटवारे का फॉर्मूला अब तक तय नहीं हो सका है. एनडीए में शामिल दलों के ज्यादातर सांसद इस बात को लेकर ज्यादा चिंतित हैं कि लोकसभा चुनाव में मतदाताओं का रुख क्या रहेगा और उनके टिकट का क्या होगा. एक तरफ बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व देश के कई राज्यों में अपने उम्मीदवारों की सूची जारी करने की कोशिश में जुटा है तो वहीं दूसरी तरफ बिहार में सीट बंटवारे का मामला अभी तक नहीं सुलझ पाया है.
बिहार में सीट शेयरिंग फॉर्मूले पर पहले भी चर्चा हो चुकी है लेकिन नीतीश कुमार के नेतृत्व में जेडीयू के एनडीए में शामिल होने के बाद सीट शेयरिंग की तस्वीर अभी तक साफ नहीं हो पाई है. टिकट को लेकर असमंजस में फंसे सांसद दिल्ली की दौड़ में लगे हैं लेकिन अब तक उनकी समस्या का कोई समाधान नहीं निकल पाया है.

2019 में मिली बड़ी सफलता

चुनाव आयोग से जुड़े सूत्रों का कहना है कि आयोग की ओर से अगले महीने के दूसरे हफ्ते में चुनाव की तारीखों का ऐलान किया जा सकता है. इससे सीट शेयरिंग को लेकर बिहार एनडीए में शामिल दलों के सांसदों की घबराहट और चिंताएं लगातार बढ़ती जा रही हैं.
2019 के लोकसभा चुनाव में एनडीए को बिहार में बड़ी सफलता मिली और एनडीए ने राज्य की 40 में से 39 सीटें जीतकर महागठबंधन को बड़ा झटका दिया. 2019 में महागठबंधन को सिर्फ एक सीट पर जीत मिली थी. किशनगंज सीट पर कांग्रेस के मोहम्मद जावेद ने जीत हासिल कर कुछ हद तक महागठबंधन की लाज बचा ली थी.

चिराग और पारस को लेकर दुविधा

चुनाव करीब होने के बावजूद बिहार में दिवंगत नेता राम विलास पासवान के बेटे चिराग पासवान और उनके चाचा पशुपति कुमार पारस को लेकर अभी भी दुविधा बनी हुई है. बिहार में लोक जनशक्ति पार्टी दो हिस्सों में बंट गई है. एक गुट में चिराग पासवान अकेले सांसद हैं तो दूसरी ओर आरएलजेपी के पास पशुपति कुमार पारस समेत पांच सांसद हैं. बीजेपी ने अभी तक यह साफ नहीं किया है कि पार्टी इन दोनों गुटों में से किस गुट को ज्यादा महत्व देगी और किस गुट को कितनी सीटें देगी.

पिछले लोकसभा चुनाव में पारस ने हाजीपुर लोकसभा सीट जीती थी, जो राम विलास पासवान का गढ़ माना जाता है, लेकिन इस बार इस सीट पर पारस के साथ-साथ चिराग पासवान की भी नजर है. हाजीपुर सीट को लेकर दोनों के बीच तीखी नोकझोंक हो गई है. पारस गुट के चार अन्य सांसद वीणा देवी, चंदन सिंह, प्रिंस राज और महबूब अली कैसर भी असमंजस में हैं. अगर चिराग की चली तो प्रिंस और चंदन सिंह को टिकट देने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे.

पिछली बार बीजेपी के सुशील कुमार पिंटू जेडीयू के टिकट पर सीतामढी से चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे थे, लेकिन इस बार उनका टिकट फंसता नजर आ रहा है. पिंटू के बयान से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार नाराज बताये जा रहे हैं. जदयू के देवेश चंद्र ठाकुर सीतामढी लोकसभा क्षेत्र में सक्रिय हैं और मतदाताओं तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं.

जेडीयू में भी तस्वीर साफ नहीं है

पिछले लोकसभा चुनाव में जेडीयू ने बीजेपी के साथ गठबंधन में 17 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जिसमें से पार्टी को 16 सीटों पर जीत मिली थी. इस बार सीट बंटवारे को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं होने के कारण जेडीयू के कई सांसद भी असमंजस की स्थिति में नजर आ रहे हैं.
मुख्यमंत्री पद के साथ-साथ नीतीश कुमार जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी बन गए हैं और पार्टी टिकटों पर अंतिम फैसला वही लेंगे. इसलिए माना जा रहा है कि जेडीयू के टिकटों का बंटवारा जीत की संभावना और नेतृत्व के प्रति वफादारी के आधार पर किया जाएगा. ऐसे में कई सांसद अपने टिकट को लेकर आश्वस्त नजर नहीं आ रहे हैं.

बीजेपी के बड़े नेता भी इस बात से सहमत नहीं हैं

टिकट को लेकर बिहार के बीजेपी नेताओं में असमंजस की स्थिति है. पार्टी में ऐसी चर्चाएं सुनने को मिल रही हैं कि इस बार पार्टी का शीर्ष नेतृत्व 72 साल की उम्र पार कर चुके नेताओं का टिकट काट सकता है. अगर यह फॉर्मूला पार्टी लागू करती है तो राधा मोहन सिंह, गिरिराज सिंह और रमा देवी जैसे नेताओं का टिकट कट

Back to top button