गुरुग्राम में वर्ल्ड स्ट्रोक डे पर मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल्स ने लोगों को जागरूक कर पैरालिसिस से मुक्ति के बताए टिप्स।
सत्य ख़बर,गुरुग्राम, सतीश भारद्वाज:
स्ट्रोक के मरीजों को समय पर इलाज मिलना बेहद जरूरी है, इसी के मद्देनजर वर्ल्ड स्ट्रोक डे मनाते हुए मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल्स ने अवेयरनेस सेशन आयोजित किया। मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल्स गुरुग्राम में न्यूरोसाइंसेज के क्लिनिकल डायरेक्टर डॉक्टर कपिल अग्रवाल ने इस सत्र का नेतृत्व किया. डॉक्टर कपिल के साथ इस दौरान 33 वर्षीय मरीज क्रिस्टीना जोसेफ भी रहीं, जिनका स्ट्रोक के बाद इलाज किया गया और लेफ्ट साइड बॉडी को पैरालिसिस से बचाया गया।
वहीं कई मरीजों को स्ट्रोक के शुरुआती संकेतों का अनुभव तो होता है लेकिन वे इसे गंभीरता से नहीं लेते हैं, स्ट्रोक के दो मुख्य प्रकार होते हैं. एक होता है इस्केमिक स्ट्रोक जिसमें ब्लड क्लॉट बन जाता है या थ्रोम्बस हो जाता है, और आर्टरी ब्लॉक हो जाती है,दूसरा स्ट्रोक हेमोरैगिक स्ट्रोक होता है जिसमें ब्रेन के अंदर ब्लड वेसल से ब्लीडिंग होती है,स्ट्रोक की समस्या अब युवा एडल्ट्स में भी बढ़ रही है. 18-44 वर्ष की आयु के लोगों में स्ट्रोक की समस्या 14.6% तक बढ़ी है, जबकि 45-64 आयु वर्ग के लोगों में 15.7% की वृद्धि हुई है. प्रीमैच्योर एथेरोस्क्लेरोसिस के मामले भी काफी बढ़े हैं जिसमें ब्लड वेसल्स सख्त हो जाती हैं, और ब्लॉक हो जाती हैं, खासकर युवा एडल्ट्स में इसके कारण इस आयु वर्ग में स्ट्रोक को जन्म देने वाले वैस्कुलर रिस्क फैक्टर बढ़ जाते हैं।
मामले की गंभीरता को समझाते हुए कि डॉक्टर कपिल ने बताया कि कैसे शुरुआती इंटरवेंशन के कारण महिला मरीज को पैरालिसिस से बचाया गया। उन्होंने कहा, ”क्रिस्टीना जोसेफ दो की मां हैं और एक कामकाजी महिला हैं। महिला को अपने शरीर के बाईं ओर अचानक कमजोरी और पैरालिसिस जैसा अनुभव हुआ, जिसके दो घंटे के अंदर ही वो हमारे पास पहुंच गईं. महिला ने समझ लिया कि ये एक्यूट ब्रेन स्ट्रोक के लक्षण हैं और वो सक्रियता दिखाते हुए गोल्डन विंडो के अंदर ही अस्पताल पहुंच गईं। तुरंत एमआरआई कराया गया, जिसमें ब्रेन के दाईं ओर ब्लड सप्लाई में ब्लॉकेज पाया गया. समय पर रोग पता चलने का फायदा ये हुआ कि महिला मरीज को क्लॉट हटाने वाली दवा दी गई जो स्ट्रोक के मामले में सबसे बेहतर इलाज माना जाता है, अगर मरीज चार घंटे के भीतर इलाज के लिए पहुंच जाए तो, इस दवा से ब्लॉक आर्टरी खुल गईं और ब्रेन को होने वाला डैमेज रुक गया। इस केस में सबसे महत्वपूर्ण ये था कि महिला को टाइम पर इलाज मिल पाया, जिससे नतीजे बदल गए. ये एक ऐसा उदाहरण है कि कैसे स्ट्रोक के मामले में जहां हर मिनट कीमती होती है, वहां शुरुआती इलाज कैसे नतीजे पलट सकता है.”
हालांकि, क्रिस्टीन जोसेफ को स्ट्रोक के बाद कुछ दिनों तक शरीर के पूरे बाएं हिस्से में कमजोरी महसूस हुई और इलाज के साथ-साथ उनकी स्थिति में सुधार आता गया. रिहैबिलिटेशन और दवाओं की मदद से उनके शरीर के बाएं हिस्से के पैरालिसिस को पूरी तरह से ठीक कर लिया गया। आज क्रिस्टीना स्वतंत्र रूप से अपने सब काम कर रही हैं और अपने रूटीन में वापस लौट आई हैं।
अपनी भावनात्मक स्टोरी को साझा करते हुए क्रिस्टीना जोसेफ ने बताया, ”मैं डॉक्टरों का जितना शुक्रिया अदा करूं, उतना कम है. मेरी हालत ऐसी हो गई थी कि मैं अपनी बॉडी के लेफ्ट साइड को हिला ही नहीं पा रही थीं. लेकिन मैं समय पर अस्पताल पहुंची और मैं किस्मत वाली हूं जो यहां बेहतर इलाज मिला. अब मैं फिर से चल पाती हूं, काम कर पाती हूं और एक मां के रूप में अपने बच्चों की जरूरतों को पूरा कर पाती हूं.”
डॉक्टर अग्रवाल ने कहा कि क्रिस्टीना जोसेफ जैसे स्ट्रोक मरीज जो समय पर अस्पताल का रुख कर लेते हैं उनकी रिकवरी के चांस काफी ज्यादा होते हैं. डॉक्टर अग्रवाल ने स्ट्रोक के लक्षणों के बारे में बताया कि अगर किसी को अचानक कमजोरी या पैरालिसिस जैसी स्थित हो जाए तो वो तुरंत अस्पताल पहुंचें ताकि उनके जीवन को बचाया जा सके और लंबे समय तक होने वाली पैरालिसिस जैसी समस्या से बचाव किया जा सके. डॉक्टर ने लोगों को चेताते हुए अपील की है कि ऐसे लक्षणों या संकेतों को कभी इग्नोर न करें।
स्ट्रोक के इलाज के लिए लेटेस्ट टेक्नोलॉजी वेगस नर्व स्टिमुलेशन है जो पोस्ट-स्ट्रोक रिकवरी में मोटर स्किल्स को बेहतर बनाती है. ये एक नया इलाज जिसने मरीजों को काफी उम्मीद दी है, इससे मोटर स्कोर्स और अपर एक्सट्रीमिटी स्ट्रेन्थ में बढ़ोतरी हो सकती है।
मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल्स गुरुग्राम के वाइस प्रेसिडेंट व फैसिलिटी डायरेक्टर डॉक्टर सौरभ लाल ने कहा, ”स्ट्रोक दिवस के मद्देनजर ये समझना जरूरी है कि ऐसे मामलों में लक्षणों की शुरुआती पहचान और समय पर इलाज बेहद महत्वपूर्ण है. हर मिनट जीवन बचाने और स्ट्रोक के प्रभाव को कम करने में मायने रखता है, मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल्स में हम अपने मरीजों के लिए अच्छे रिजल्ट लाने के लिए तेजी से व्यापक केयर देने के लिए प्रतिबद्ध हैं,हमारा मकसद लोगों को इस बात के लिए जागरूक करना है कि उन्होंने वार्निंग साइन समझ आएं, ताकि स्ट्रोक को रोकने और समाज को स्वस्थ बनाने में मदद मिल सके.”
भारत में स्ट्रोक का बोझ बढ़ रहा है. देश में स्ट्रोक अब मौत का चौथा प्रमुख कारण है और ये दिव्यांगता का पांचवां प्रमुख कारण है. पिछली रिसर्च से पता चलता है कि भारत में हर साल 1 लाख लोगों पर 105 से 152 तक स्ट्रोक की घटनाएं होती हैं. लगभग 8 लाख लोगों को हर साल स्ट्रोक होता है, 1 लाख 40 हजार से अधिक लोगों की मौत हो जाती है और जो लोग बच जाते हैं उनमें कई को दिव्यांगता का सामना करना पड़ता है. ये आंकड़े परेशान करने वाले हैं क्योंकि स्ट्रोक के लगभग 80% मामले रोके जा सकते हैं. हाल के वर्षों में स्ट्रोक के इलाज में काफी विकास हुआ है लेकिन इलाज कितना असरदार होगा, ये इस बात पर बहुत अधिक निर्भर करता है कि मरीज स्ट्रोक के बाद कितनी जल्दी अस्पताल पहुंचता है!