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Punjab: पाकिस्तान सरकार ने शेर-ए-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह की हवेली के पुनर्निर्माण का लिया निर्णय, 244वीं जयंती पर ऐतिहासिक फैसला

Punjab: पाकिस्तान सरकार ने ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए शेर-ए-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह की पैतृक हवेली के पुनर्निर्माण का काम शुरू करने का निर्णय लिया है। यह हवेली, जो 13 नवंबर 1780 को जन्मे शेर-ए-पंजाब शेर-ए-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह का जन्मस्थान है, जल्द ही नवीनीकरण से गुजरने वाली है। इस हवेली के पुनर्निर्माण कार्य का शुभारंभ 14 नवंबर को किया जाएगा, जब आधारशिला रखी जाएगी। पाकिस्तान सरकार ने इस परियोजना की जिम्मेदारी ऑकाफ बोर्ड को दी है, और अनुमान है कि इस कार्य पर लगभग एक अरब रुपये खर्च होंगे।

हवेली की स्थिति: खंडहर में तब्दील

शेर-ए-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह की हवेली आज खंडहर में तब्दील हो चुकी है। हवेली की छतें ढह चुकी हैं, और उसकी संरचना भी पूरी तरह से बिगड़ चुकी है। पाकिस्तान सिख गुरुद्वारा प्रबंधन समिति (PSGPC) के अध्यक्ष और पंजाब प्रांत के अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री रमेश सिंह अरोड़ा ने बताया कि इस हवेली पर कई सालों से अवैध कब्जे हो चुके थे, जिन्हें पिछले दस महीने में हटाया गया था। अब, पुरातत्व विभाग ने इस हवेली को फिर से एक संरक्षित धरोहर के रूप में घोषित किया है।

Punjab: पाकिस्तान सरकार ने शेर-ए-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह की हवेली के पुनर्निर्माण का लिया निर्णय, 244वीं जयंती पर ऐतिहासिक फैसला

अरोड़ा ने दैनिक जागरण से बातचीत में कहा कि हवेली की पुनर्निर्माण योजना तैयार कर ली गई है और इस हवेली को नए रूप में पुनर्जीवित करने के लिए उसका एक नगर योजना (मैप) भी तैयार किया गया है। इस हवेली को 29 जून 2025 को देशवासियों और सिख समुदाय को समर्पित किया जाएगा। यह परियोजना सिखों के लिए एक ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व रखती है, क्योंकि यह उस स्थान पर आधारित है, जहां शेर-ए-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह का जन्म हुआ था।

पाकिस्तान में मकानों की अवैध बस्तियां और हवेली का पतन

शेर-ए-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह की हवेली के आसपास के क्षेत्र में 1947 के बाद से काफी बदलाव आया। जब भारत और पाकिस्तान का विभाजन हुआ, तो बड़ी संख्या में मुसलमान पाकिस्तान में बस गए, और वे गुज्जरांवाला में बसे। इसके बाद हवेली का क्षेत्र धीरे-धीरे अवैध बस्तियों से भर गया, और यहां तक कि मछली बाजार भी लगने लगा। इन अवैध कब्जों ने हवेली की ऐतिहासिक स्थिति को गंभीर रूप से प्रभावित किया। 1970 में ऑकाफ बोर्ड के गठन के बाद इस भवन को धरोहर के रूप में घोषित किया गया और इसके संरक्षण की जिम्मेदारी पुरातत्व विभाग को सौंप दी गई।

पुरातत्व विभाग और ऑकाफ बोर्ड ने इस हवेली के संरक्षण के लिए कई प्रयास किए, लेकिन बस्तियों के बढ़ने और अवैध कब्जों के कारण इन प्रयासों में निरंतर विफलता होती रही। इन कब्जों के कारण हवेली का संरचनात्मक रूप बिगड़ता गया और यह खंडहर में तब्दील हो गई।

पुनर्निर्माण के लिए कोई कमी नहीं, पर्याप्त बजट उपलब्ध

पाकिस्तान के अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री रमेश सिंह अरोड़ा ने बताया कि चूंकि देश भर में प्रमुख निर्माण कार्यों की जिम्मेदारी ऑकाफ बोर्ड के पास है, ऐसे में इस हवेली के पुनर्निर्माण के लिए बजट में कोई कमी नहीं होगी। पाकिस्तान सरकार का यह बोर्ड हर साल के बजट का 20 प्रतिशत हिस्सा प्राप्त करता है, जिससे इसे इस परियोजना के लिए पर्याप्त वित्तीय सहायता प्राप्त होगी। मंत्री ने यह भी कहा कि यह परियोजना भारतीय उपमहाद्वीप के ऐतिहासिक महत्व को उजागर करेगी और सिख समुदाय के लिए एक श्रद्धेय स्थल के रूप में स्थापित होगी।

नानकशाही ईंटों से पुनर्निर्माण, नया मकबरा भी होगा

शेर-ए-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह की हवेली का पुनर्निर्माण नानकशाही ईंटों से किया जाएगा। यह वही ईंटें हैं, जो ऐतिहासिक इमारतों की नींव में प्रयोग की जाती हैं। हवेली के वर्तमान ईंटों को बदला नहीं जाएगा, बल्कि उनका संरक्षण किया जाएगा। इसके साथ ही, हवेली में एक नया गुरुद्वारा भी बनाया जाएगा, जिसमें श्री गुरु ग्रंथ साहिब का प्रकाश होगा।

शेर-ए-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह का पुराना मकबरा अब तक नष्ट हो चुका है, और वहां सिर्फ नानकशाही ईंटों से बनी बुनियादी दीवारें और फर्श मौजूद हैं। पुनर्निर्माण के दौरान महाराजा के नए मकबरे का निर्माण किया जाएगा। इसके अलावा, हवेली में एक बड़ा सराय, यानी यात्री निवास, भी बनाया जाएगा, जिसमें 200 से अधिक कमरे होंगे।

नानकशाही ईंटों का महत्व

नानकशाही ईंटें विशेष प्रकार की ईंट होती हैं, जो आजकल पतली ईंटों के रूप में जानी जाती हैं और इन्हें टाइल्स भी कहा जाता है। इन ईंटों का इस्तेमाल भारतीय उपमहाद्वीप की ऐतिहासिक इमारतों की निर्माण में किया गया है, जिनमें बदशाही ईंट, अकबरी ईंट, ककैया ईंट और लखौरी ईंट भी शामिल हैं। इन ईंटों का निर्माण और उपयोग ऐतिहासिक इमारतों की स्थायित्व और सौंदर्य के लिए महत्वपूर्ण था।

शेर-ए-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह की हवेली का पुनर्निर्माण पाकिस्तान और सिख समुदाय के लिए एक ऐतिहासिक और धार्मिक अवसर है। यह न केवल सिखों की धार्मिक धरोहर को संरक्षित करने का प्रयास है, बल्कि यह पाकिस्तान की सांस्कृतिक धरोहर को भी सहेजने का एक महत्वपूर्ण कदम है। पुनर्निर्माण कार्य के पूरा होने के बाद, यह हवेली न केवल सिख समुदाय के लिए एक श्रद्धेय स्थल बनेगी, बल्कि एक ऐतिहासिक धरोहर के रूप में भारतीय उपमहाद्वीप की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक बन जाएगी।

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