Punjab news: अनिल जोशी का शिरोमणि अकाली दल से इस्तीफा, पंजाब की राजनीति में एक और बड़ा उलटफेर
Punjab news: पंजाब के राजनीतिक क्षेत्र में एक और बड़ा उलटफेर हुआ है, जब वरिष्ठ नेता और पूर्व विधायक अनिल जोशी ने शिरोमणि अकाली दल (SAD) से इस्तीफा दे दिया। अनिल जोशी ने यह इस्तीफा पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष बलविंदर सिंह भुंदर को सौंपा। उन्होंने अपनी असहमति व्यक्त करते हुए कहा कि पार्टी अब केवल पंथिक राजनीति में उलझ गई है और इसने जनकल्याण और सामुदायिक सौहार्द के मुद्दों को नजरअंदाज कर दिया है।
अकाली दल के भविष्य को लेकर अनिल जोशी का बयान
अपने इस्तीफे के बाद अनिल जोशी ने कहा कि जिस दृष्टिकोण के साथ प्रकाश सिंह बादल ने अकाली दल की नींव रखी थी, वह अब पूरी तरह से खत्म हो चुका है। उन्होंने यह भी कहा कि पार्टी के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल अब इस दिशा में ध्यान नहीं दे रहे हैं और ना ही कोई प्रयास किए जा रहे हैं जो पंजाब में सामुदायिक सौहार्द को बढ़ावा दे सकें। जोशी ने यह भी टिप्पणी की कि अकाली दल अब केवल पंथिक राजनीति तक सीमित हो गया है और राजनीतिक दृष्टिकोण में पूरी तरह से भ्रमित नजर आ रहा है।
बीजेपी में रहते हुए मंत्री पद पर कार्यरत थे
अनिल जोशी का राजनीतिक सफर काफी लंबा और विविध रहा है। वह बीजेपी सरकार के दौरान (2012-2017) स्थानीय निकाय मंत्री थे। हालांकि, 2021 में वह पार्टी से निष्कासित कर दिए गए जब उन्होंने कृषि कानूनों को लेकर भाजपा के खिलाफ अपनी आवाज उठाई। अपनी पार्टी से निष्कासन के बाद, अनिल जोशी ने कहा था कि अब वह किसी भी राजनीतिक दल से संबंधित नहीं हैं, और अगर उन्हें अनुमति मिले, तो वह दिल्ली की सीमाओं पर जाकर किसानों की संघर्ष भावना को सलाम करेंगे। हालांकि कुछ ही दिनों बाद, जोशी ने शिरोमणि अकाली दल का दामन थाम लिया था।
पार्टी में खुद को असंगत महसूस करने के बाद इस्तीफा
अपने इस्तीफे में अनिल जोशी ने लिखा कि वह पार्टी में अब खुद को असंगत महसूस करने लगे थे। उन्होंने कहा कि वह शिरोमणि अकाली दल में शामिल हुए थे क्योंकि यह पार्टी पंजाब के लोगों और किसानों के कल्याण के लिए काम करती थी, लेकिन अब ऐसा कुछ नहीं दिखाई दे रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि अब वह पार्टी में अपने लिए कोई स्थान नहीं देख रहे हैं। उनका मुख्य उद्देश्य पंजाब के लोगों का विकास था, लेकिन वर्तमान परिस्थितियों में उन्हें यह महसूस हुआ कि इस पार्टी में रहना अब उनके लिए असंभव हो गया है। जोशी ने यह भी कहा कि पार्टी के असली मुद्दों पर चर्चा नहीं हो रही है, और अब यह केवल धार्मिक और संप्रदायिक एजेंडे में उलझी हुई है।
अमृतसर नॉर्थ से रहे हैं विधायक
अनिल जोशी पंजाब विधानसभा के अमृतसर नॉर्थ क्षेत्र से विधायक रह चुके हैं। उन्होंने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत भारतीय जनता पार्टी से की थी और जब कृषि कानूनों के मुद्दे पर भाजपा के खिलाफ खड़े हुए, तो उन्होंने पार्टी से अलग रास्ता चुना। उन्होंने किसान आंदोलन के समर्थन में खुलकर अपनी आवाज उठाई और इस दौरान वह पार्टी से बाहर हो गए।
राजनीतिक गलियारों में हलचल
अनिल जोशी के इस्तीफे ने पंजाब की राजनीति में हलचल मचा दी है। उनकी यह कदम अकाली दल के भीतर बढ़ते आंतरिक असंतोष को दर्शाता है, जो पार्टी के नेताओं के बीच विचारधारा और प्राथमिकताओं के विवाद के कारण सामने आ रहा है। जहां एक ओर अकाली दल का ध्यान धार्मिक और पंथिक राजनीति पर केंद्रित हो गया है, वहीं दूसरी ओर इस पार्टी के पुराने और सशक्त नेता अब इसका विरोध करने लगे हैं।
क्या है अकाली दल का भविष्य?
अनिल जोशी के इस्तीफे के बाद सवाल उठता है कि शिरोमणि अकाली दल का भविष्य क्या होगा? पार्टी में एक समय था जब यह पंजाब के सबसे प्रभावशाली राजनीतिक दलों में से एक हुआ करता था, लेकिन अब यह पार्टी अपनी दिशा और विचारधारा को लेकर असमंजस की स्थिति में है। जोशी जैसे पुराने और अनुभवी नेता के पार्टी से बाहर जाने के बाद यह साफ है कि अकाली दल को अपनी विचारधारा और कार्यशैली में बदलाव की जरूरत है, ताकि वह अपने राजनीतिक अस्तित्व को बनाए रख सके।
भविष्य के चुनावों में क्या होगा असर?
अकाली दल के भीतर आ रहे बदलाव और अनिल जोशी के इस्तीफे के बाद पार्टी के चुनावी प्रदर्शन पर सवाल खड़ा हो सकता है। 2022 में हुए विधानसभा चुनावों के बाद अकाली दल को बड़ा झटका लगा था, और अब जोशी जैसे नेता के पार्टी छोड़ने से पार्टी के भविष्य पर और भी सवाल खड़े हो रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि अगर अकाली दल अपनी कार्यशैली और नीति में जल्द बदलाव नहीं लाता, तो उसे आने वाले चुनावों में कठिनाई का सामना करना पड़ सकता है।
अनिल जोशी के इस्तीफे से यह साबित हो गया है कि पंजाब की राजनीति में पंथिक एजेंडे से कहीं अधिक आवश्यक है सामाजिक और सांप्रदायिक सौहार्द। अगर शिरोमणि अकाली दल को अपना खोया हुआ जनाधार वापस पाना है, तो उसे अपने पुराने दृष्टिकोण को अपनाते हुए राज्य के असली मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना होगा। अब यह देखना होगा कि पार्टी इस संकट से उबरने के लिए क्या कदम उठाती है और क्या वह अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं को एकजुट रखने में सफल हो पाती है।