पुलिस प्रताड़ना से परेशान पीड़ित हरियाणा वासी कहा जाएं,जब HHRC के चेयरमैन का पद 19 महीने से रिक्त हैं?
सत्य ख़बर,चंडीगढ़, सतीश भारद्वाज:
हरियाणा मानवाधिकार आयोग केवल पिछले 19 महीनों से चेयरमैन (अध्यक्ष) पर खाली है, वहीं पिछले करीब 14 माह से इसमें कोई सदस्य भी कार्य नही कर रहे हैं। बहरहाल, पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट में इस मामले में दायर एक जनहित याचिका के पश्चात कोर्ट द्वारा प्रदेश सरकार को दिए गए सख्त निर्देश के बाद गत सप्ताह आयोग के अध्यक्ष पद और दोनों सदस्यों के पदों को भरने के लिए संभावित अभ्यर्थियों के नामों पर चर्चा और उक्त तीनो पदों के लिए फाइनल नाम चयनित करने के लिए मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी और हरियाणा विधानसभा स्पीकर हरविंद्र कल्याण द्वारा इस विषय पर बैठक की गई, परन्तु उसमें विधानसभा सदन में नेता प्रतिपक्ष शामिल नहीं हो सके हालांकि वह भी इस कमेटी के सदस्य होते हैं। सनद रहे कि मौजूदा 15वीं हरियाणा विधानसभा के गठन को डेढ़ माह बीत जाने के बाद आज तक सदन में सबसे बड़े 37 सदस्ययी कांग्रेस विधायक दल द्वारा अपना नेता नहीं चुना गया है, जिस कारण विधानसभा स्पीकर द्वारा उस चुने जाने वाले नेता को सदन के नेता प्रतिपक्ष का दर्जा दिया जाना भी आधार में लटका हुआ है।
इसी मामले को लेकर पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के वकील हेमंत कुमार ने एक रोचक परन्तु महत्वपूर्ण जानकारी देते हुए बताया कि भारतीय संसद द्वारा अधिनियमित मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 जिसके अंतर्गत ही राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और सभी प्रदेशो में राज्य मानवाधिकार आयोग का गठन किया जाता है की धारा 22(1) के अनुसार हालांकि राज्य मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति प्रदेश के राज्यपाल द्वारा एक चार सदस्यीय कमेटी की सिफारिशें प्राप्त होने के बाद की जाती है । जिस कमेटी में प्रदेश के मुख्यमंत्री अध्यक्ष होते हैं जबकि कमेटी के अन्य तीन सदस्यों में राज्य विधानसभा के स्पीकर, प्रदेश के गृह मंत्री एवं विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष शामिल होते हैं. अब चूँकि हरियाणा की मौजूदा नायब सैनी सरकार में प्रदेश का गृह विभाग भी मुख्यमंत्री के पास ही है, अत: हरियाणा में उक्त कमेटी तीन सदस्यीय हो जाती है. वहीं जहाँ आज तक नेता प्रतिपक्ष के न होने अर्थात कमेटी में उनकी अनुपस्थिति का विषय है, तो हेमंत ने बताया कि धारा 22(2) के स्पष्ट उल्लेख है कि राज्य मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति केवल इस कारण से अविधिमान्य (गैर-कानूनी) नहीं होगी क्योंकि उपरोक्त कमेटी में कोई रिक्ति है.
गौरतलब है कि हरियाणा मानवाधिकार आयोग के पूर्व अध्यक्ष जस्टिस एस.के. मित्तल (सेवानिवृत्त) का पांच साल का कार्यकाल 19 महीने पहले 22 अप्रैल 2023 को पूर्ण हो गया है। हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस के पद से सेवानिवृत्त हुए मित्तल को अप्रैल, 2018 में आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था. उनके साथ आयोग में एक (न्यायिक) सदस्य के तौर पर नियुक्त जस्टिस के.सी. पुरी (सेवानिवृत्त) का पांच साल का कार्यकाल भी अप्रैल, 2023 में समाप्त हो गया था. हालांकि आयोग में एक अन्य गैर-न्यायिक पृष्ठभूमि के सदस्य नामत: दीप भाटिया को 20 सितंबर 2018 को पांच वर्ष के कार्यकाल के लिए नियुक्त किया गया था, जो 11 मई 2023 तक पांच साल की अवधि के लिए इस पद पर बने रहे और तत्पश्चात 12 मई 2023 से 19 सितंबर 2023 तक भाटिया ने आयोग के कार्यवाहक अध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया।
जहां तक राज्य मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति सम्बन्धी ताज़ा कानूनी प्रावधानों का विषय है, तो हेमंत ने बताया कि पांच वर्ष पूर्व मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 में देश की संसद द्वारा कुछ संशोधन किये गए था एवं वह सभी संशोधित प्रावधान 2 अगस्त 2019 से प्रभावी हो गए थे एवं संशोधित धारा 24 अनुसार राज्य मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों का कार्यकाल, जो पहले पांच वर्ष हुआ करता था उसे घटाकर तीन वर्ष अथवा अध्यक्ष/सदस्यों की 70 वर्ष की आयु पूरी होने करने तक, जो भी पहले हो, तक कर दिया गया. हालांकि राज्य मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्य 70 वर्ष की आयु सीमा से पहले तक पुनर्नियुक्ति के लिए भी पात्र हैं परन्तु कार्यकाल समाप्त होने के पश्चात वे राज्य सरकार अथवा भारत सरकार के अधीन किसी अन्य नियोजन (नियुक्ति) के लिए पात्र नहीं होंगे। वहीं अतिरिक्त 2019 कानूनी संशोधन द्वारा मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 की धारा 21(2) में हुए संशोधन के बाद अब यह प्रावधान है कि राज्य मानवाधिकार आयोग का अध्यक्ष कोई रिटायर्ड हाईकोर्ट का न्यायाधीश भी हो सकता है।
बता दें कि केंद्र सरकार ने कुछ ही साल पहले प्रत्येक राज्य में मानव अधिकार आयोग का गठन किया था, जिसमें अधिकतर पुलिस से प्रताड़ित नागरिकों को न्याय दिलाना था, जहां पहले पुलिस से परेशान देशवासी राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग नई दिल्ली में गुहार लगाते थे, जिससे लोगों को न्याय पाने के लिए काफी समय लग जाता था। इसी पर संज्ञान लेते हुए हर राज्य में मानव का अधिकार आयोग का गठन किया गया था। जहां पर पुलिस द्वारा लोगों पर दर्ज किए फर्जी मामले, कस्टडी में मृत्यु , रिश्वत लेकर दोषियों पर कार्रवाई ने करने सहित काफी तरह के मामले आयोग में जाते थे। जिस पर आयोग नोटिस देकर अधिकारी को तलब कर कार्रवाई करने के आदेश देते थे। जिसे गरीब जनता को काफी हद तक न्याय मिलता था। इसमें अधिकतर गरीब लोगों को ही न्याय मिलता था, जबकि राजनेता धनराज लोग तो कोर्ट कचहरी में पैसे खर्च करके अपने मामले को निपटा लेते थे। लेकिन हरियाणा में मौलिक अधिकार आयोग के अध्यक्ष की नियुक्ति न होने से पुलिस विभाग से परेशान नागरिक जो कोर्ट कचहरी का खर्चा नहीं उठा सकते वह जाए तो कहां जाए। इस बात की चर्चाएं प्रदेश में काफी समय से चल रही है। हालांकि अब मामला पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट के संज्ञान में आने के बाद प्रदेश सरकार में सुगबुगाहट शुरू हो गई है। अब देखना यह होगा कि हरियाणा मानव अधिकार आयोग अध्यक्ष की नियुक्ति सरकार कब तक करा पाती है। लोगों में इस बात की भी चर्चाएं है कि इसमें यह भी सवाल खड़ा होता है कि सरकार ने जनता के हितेषी आयोग के अध्यक्ष का पद इतने सालों तक खाली क्यों रखा है।