क्रिस्चियन सांसदों ने मुस्लिमों का साथ दिया, Waqf Board पर उठाया मुद्दा

हाल ही में देश के क्रिस्चियन सांसदों ने एक बड़ा बयान दिया है, जिसमें उन्होंने मुस्लिमों के साथ Waqf Board के मुद्दे पर समर्थन का ऐलान किया। यह निर्णय उस समय लिया गया जब 3 दिसंबर 2024 को भारत के कैथोलिक बिशप्स कॉन्फ्रेंस (CBCI) द्वारा आयोजित एक बैठक में लगभग 20 सांसदों ने हिस्सा लिया। इस बैठक में प्रमुख रूप से विपक्षी दलों के सांसदों ने अपनी आवाज उठाई। इस बैठक का मुख्य उद्देश्य क्रिस्चियन समुदाय के अधिकारों की रक्षा और वक्फ बिल पर अपने रुख को स्पष्ट करना था।
वक्फ बिल पर सांसदों का रुख
क्रिस्चियन सांसदों का कहना है कि वक्फ बिल, जो मुस्लिमों की धार्मिक और सांस्कृतिक संपत्तियों से जुड़ा है, सीधे तौर पर संविधान में निहित अल्पसंख्यकों के अधिकारों को प्रभावित करता है। इस मुद्दे पर विचार करते हुए, उन्होंने यह सुझाव दिया कि क्रिस्चियन समुदाय को इस बिल के खिलाफ खुलकर अपनी आवाज उठानी चाहिए। उनका मानना है कि यह बिल न केवल मुस्लिम समुदाय के अधिकारों को प्रभावित करता है, बल्कि यह उन सभी अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकारों पर भी असर डाल सकता है जो धार्मिक स्वतंत्रता और संपत्ति के अधिकारों का पालन करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
CBCI की बैठक का उद्देश्य
कैथोलिक बिशप्स कॉन्फ्रेंस ऑफ इंडिया (CBCI) की अध्यक्षता में आयोजित इस बैठक में केवल वक्फ बिल पर चर्चा नहीं हुई, बल्कि इस बैठक का मुख्य एजेंडा समुदाय के अधिकारों की सुरक्षा, अल्पसंख्यकों पर बढ़ते हमलों, और एफसीआरए (FCRA) का गलत इस्तेमाल भी था। इस बैठक में लगभग 20 सांसदों ने भाग लिया, जिनमें प्रमुख नाम तृणमूल कांग्रेस के सांसद डेरेक ओ’ब्रायन, कांग्रेस के एचिबी ए़डन, डीन कुरियाकोस, आंटो एंटनी और CPI(M) के सांसद जॉन ब्रिटास शामिल थे। इसके अलावा, बाद में केंद्रीय मंत्री जॉर्ज कुरियन ने भी बैठक में शामिल होकर अपना समर्थन व्यक्त किया।
बैठक में मुख्य रूप से उन मुद्दों पर चर्चा की गई, जो क्रिस्चियन समुदाय के लिए संवेदनशील हैं। विशेष रूप से, अल्पसंख्यकों पर बढ़ते हमलों और उनके खिलाफ हो रहे भेदभाव पर गहरी चिंता व्यक्त की गई। इसके अलावा, एफसीआरए के तहत क्रिस्चियन संस्थाओं पर हो रहे हमलों और उनके कार्यों को निशाना बनाने का मुद्दा भी उठाया गया। सांसदों ने इस पर जोर दिया कि सरकार को इस दिशा में सख्त कदम उठाने चाहिए ताकि अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा की जा सके।
क्रिस्चियन समुदाय की सकारात्मक छवि
बैठक में एक वरिष्ठ विपक्षी सांसद ने यह सुझाव भी दिया कि समुदाय के नेतृत्व को केवल नकारात्मक समाचारों पर प्रतिक्रिया देने के बजाय अपने समुदाय के सकारात्मक पहलुओं को भी उजागर करना चाहिए। उनका कहना था कि क्रिस्चियन संस्थान बहुत से छात्रों को शिक्षा प्रदान करते हैं, जिनमें से तीन में से चार छात्र विभिन्न समुदायों से होते हैं। यह एक महत्वपूर्ण बिंदु था जिसे सांसदों ने सरकार और जनता के सामने रखने की योजना बनाई।
अल्पसंख्यकों पर हमले और भेदभाव
बैठक के दौरान यह भी बताया गया कि हाल के समय में क्रिस्चियन समुदाय के खिलाफ कई हमले हुए हैं। इन हमलों में चर्चों पर हमले, क्रिस्चियन धार्मिक नेताओं के खिलाफ हिंसा और उनके सामाजिक कार्यों को बाधित करने की घटनाएं शामिल हैं। ऐसे हमले केवल क्रिस्चियन समुदाय तक सीमित नहीं हैं, बल्कि यह पूरे अल्पसंख्यक समुदायों के लिए एक चिंता का विषय बन गए हैं। सांसदों ने इस पर गंभीर चिंता व्यक्त की और कहा कि इस तरह के हमलों का उद्देश्य केवल धार्मिक स्वतंत्रता को बाधित करना है।
उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि सरकार को इस मुद्दे पर कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए ताकि अल्पसंख्यकों के खिलाफ बढ़ती नफरत और हिंसा को रोका जा सके। इसके लिए सांसदों ने विभिन्न कानूनों को लागू करने की आवश्यकता पर बल दिया, जो अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित कर सकें।
एफसीआरए का गलत इस्तेमाल
बैठक में एफसीआरए (FCRA) का गलत इस्तेमाल करने का मुद्दा भी सामने आया। सांसदों का कहना था कि एफसीआरए का उद्देश्य विदेशी सहायता प्राप्त करने वाली संस्थाओं की निगरानी करना है, लेकिन कुछ सरकारें इसका इस्तेमाल क्रिस्चियन संस्थाओं के खिलाफ कर रही हैं। उनका आरोप था कि इस कानून का गलत उपयोग करके क्रिस्चियन संस्थाओं को परेशान किया जा रहा है और उनके कामकाजी मामलों में हस्तक्षेप किया जा रहा है।
सांसदों ने यह मांग की कि एफसीआरए को इस तरह से लागू किया जाना चाहिए जिससे किसी भी समुदाय को निशाना नहीं बनाया जा सके और उन संस्थाओं को काम करने की स्वतंत्रता दी जाए जो समाज के लिए समर्पित हैं।
आगामी कदम और योजना
बैठक में कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए और समुदाय के भविष्य के लिए रणनीति तैयार की गई। सांसदों ने यह तय किया कि वे सरकार के सामने क्रिस्चियन समुदाय के मुद्दों को मजबूती से उठाएंगे और खासकर वक्फ बिल के खिलाफ खुलकर आवाज उठाएंगे। इसके अलावा, अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा के लिए सख्त कानूनी उपायों की मांग भी की गई।
सांसदों का कहना था कि सरकार को यह समझना चाहिए कि भारत का संविधान सभी धार्मिक समुदायों को समान अधिकार देता है और इस बात का पालन करना जरूरी है। उन्होंने सरकार से अपील की कि वह अपनी नीतियों में सुधार करें ताकि सभी अल्पसंख्यक समुदायों को उनके अधिकार मिल सकें और वे बिना किसी भेदभाव के अपना जीवन जी सकें।
क्रिस्चियन सांसदों का यह कदम यह साबित करता है कि वे केवल अपने समुदाय की रक्षा नहीं कर रहे हैं, बल्कि वे समूचे अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकारों की भी रक्षा कर रहे हैं। वक्फ बिल पर उनकी स्थिति यह दर्शाती है कि संविधान में दिए गए समानता और धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकारों की रक्षा के लिए हर किसी को एकजुट होकर काम करना चाहिए। आने वाले दिनों में यह देखना होगा कि सरकार इन मुद्दों पर क्या कदम उठाती है और क्या समुदाय को उनकी सुरक्षा और अधिकारों के लिए न्याय मिल पाता है।