सफीदों, (महाबीर मित्तल)
कृष्ण कृपा परिवार के तत्वावधान में नगर की महाराजा शूरसैनी धर्मशाला में आयोजित दिव्य गीता सत्संग समारोह में श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए गीता मनीषी स्वामी महामंडलेश्वर स्वामी ज्ञानानंद महाराज ने कहा कि गीता के पठन-पाठन से सब प्रकार के दुखों का विनाश होता है और मानसिक, आत्मिक व आंतरिक शांति प्राप्त होती है। वर्तमान परिवेश में बेवजह की आशंकाओं के कारण मनुष्य परेशानियों में घिरा हुआ है। उन आशंकाओं व परेशानियों का प्रमुख कारण मनुष्य का स्वभाव तथा विचार वाणी है। अगर मनुष्य को परेशानियों से मुक्त रहना है तो उसे अपने स्वभाव में बदलाव लाना होगा और अपने आप को सेवा, सम्त्संग व सुमिरन को समर्पित करना होगा। उन्होंने कहा कि नित्य गीता पाठ करने से विकृत बुद्धि भी ठीक हो जाती है।
अगर बुद्धि स्थिर होगी तो मनुष्य को सही निर्णय लेने की क्षमता बढ़ेगी। सही निर्णय लेने की क्षमता से ही ज्यादातर विकारों का अपने आप विनाश हो जाएगा। गीता जी का हर शब्द जीवन को अच्छा बनाने का अवसर प्रदान करता है। भगवान के लिए सभी जीव बराबर हैं। जाति, धर्म, रंग व रूप का भेद इंसान ने धरती पर खुद ही बनाया है। भगवान श्रीकृष्ण के द्वारा कही वाणी में सभी इंसान एक समान है। जीवन में दो मार्ग अच्छाई और बुराई वाले हैं। इंसान को अपना मार्ग खुद चुनना पड़ता है। भगवत गीता में अर्जुन और दुर्योधन दो अलग-अलग नीतियों के मानने वाले हैं। अर्जुन भगवान श्री कृष्ण में अपार श्रद्धा रखते हैं। उसकी अटूट विश्वास में उन्होंने अपना सबकुछ भगवान पर छोड़ रखा है। उन्होंने कहा कि गीता शांति और सद्भाव की प्रेरणा देने वाला धर्म और कर्म ग्रंथ है। अहं और महत्वाकांक्षा के त्याग में शांति व सद्भाव है। गीता केवल हिंदुओं का पवित्र ग्रंथ ही नहीं है बल्कि यह विश्व के सभी धर्म संप्रदाय के लोगों के लिए है। गीता जीवन शास्त्र को समझने वाला ग्रंथ है। कर्तव्य पथ से कोई विचलित न हो यह संदेश भागवत गीता से मिलता
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