सत्य खबर, नई दिल्ली ।
Debauchery became the reason for the death of dreaded dacoit Nirbhay Gurjar, know how
यह कहानी उस खौफनाक डकैत की है, जिससे पूरा चम्बल थर्राता था. उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान तक की पुलिस भी सामना करने से बचती थी. उसके गैंग में सधे हुए पांच दर्जन कुख्यात थे, जो एक इशारे पर किसी को उठा लेते, गोलियों से भून देते. जरूरतें पूरी करने को छोटी-छोटी चोरियों से शुरू हुआ उसका सफर बड़ी डकैतियों से होता हुआ अपहरण पर जाकर रुका. बाद के दिनों में अपहरण ही उसका स्थायी धंधा बन गया था. 18 साल पहले आज ही के दिन यानी 7 नवंबर 2005 को यह खबर सामने आई कि वो मुठभेड़ में मारा गया.
उस डकैत का नाम था निर्भय सिंह गुर्जर, जिसकी अनेक कहानियां आज भी चम्बल में गूंजती हैं. जितने मुंह उतनी कहानियां. जानिए कैसे हुआ निर्भय सिंह गुर्जर का अंत.
मामा के साथ खड़ा हुआ और अपराध का सिलसिला शुरू हुआ
उसके बारे में जो सबसे मशहूर है, वह यह कि जिस गांव पहुंच जाता, डकैती तो डालता ही था, किसी न किसी के साथ बलात्कार जरूर करता था. इसी अय्याशी के चक्कर में पुलिस के हाथों ढेर भी हुआ. औरैया जिले के पचदौरा गांव में उसका जन्म हुआ था साल 1961 में. मां-पिता के अलावा पांच बहनें और एक भाई भी था. इस तरह निर्भय कुल सात भाई-बहन थे. जमीन न के बराबर थी. जो थी वह किसी काम की नहीं थी क्योंकि सिंचाई के साधन नहीं थे.
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निर्भय के मामा से यह सब देखा न गया तो वे इस पूरे परिवार को अपने गांव गंगदासपुर ले गए. वहां परिवार सेटल हो ही रहा था कि गांव वालों ने विरोध करना शुरू कर दिया. निर्भय के मामा की जमीन पर उनकी नजर थी. यहीं से बगावती तेवर दिखने शुरू हो गए. निर्भय मामा के साथ खड़ा हुआ और छोटे-मोटे अपराध भी करने लगा. उरई जिले में एक डकैती में वह पकड़ लिया गया. निर्भय जेल चला गया. वहां अपराधियों के साथ रहकर वह और मनबढ़ हो गया.
जेल से छूटने के बाद डकैत लालाराम की शरण में पहुंचा
जेल से छूटने के बाद निर्भय घर न जाकर सीधे चम्बल के बड़े डकैत लालाराम की शरण में पहुंच गया. बहुत जल्दी वो लालाराम का भरोसेमंद भी हो गया. उस गैंग में सीमा परिहार भी प्रमुख सदस्य थी. जब लालाराम पुलिस मुठभेड़ में मारा गया तब गैंग पर कब्जे को लेकर सीमा-निर्भय आमने सामने हो गए. कालांतर में सीमा ने निर्भय को गैंग से बाहर कर दिया.
अपहरण को पकड़ कहा जाता था
कहानी यह भी प्रचलित है कि निर्भय की शादी सीमा से लालाराम ने खुद करवा दी थी. कन्यादान खुद किया था. सीमा को निर्भय का अय्याशी वाला स्वभाव पसंद नहीं था. खैर, गैंग से बाहर होने के बाद निर्भय ने खुद को चम्बल में खड़ा करने का फैसला किया. देखते ही देखते उसका गिरोह स्थापित हो गया. करीब पांच दर्जन डकैत उसके पास थे. अपहरण उसका प्रमुख अपराध बन गया. इटावा, औरैया, फिरोजाबाद, भिंड, मुरैना और आसपास के जिलों में उसका नेटवर्क कुछ ऐसा बन गया कि छोटे-मोटे अपराधी अपहरण करते तो उसके गैंग तक पहुंचा देते. ऐसे अपहरण को पकड़ कहा जाता था.
पैसा, हथियार और अय्याशी
उसके पास रोज ही पकड़ पहुंचने लगी. जो पकड़ उसके पास पहुंची, उससे उसने खूब वसूली की. अब उसके पास पैसा भी था और हथियार भी. अय्याश पहले से ही था. तीन लड़कियां उसके गैंग में थीं. यह सब अपहरण करके लाई गई थीं. उसके खिलाफ मध्य प्रदेश एवं उत्तर प्रदेश पुलिस ने पांच लाख रुपए का इनाम घोषित कर रखा था. दो सौ से ज्यादा मुकदमों में वांछित निर्भय पुलिस के लिए चुनौती बना हुआ था.
बड़ी संख्या में ऐसी पकड़ हुईं जो पुलिस में दर्ज ही नहीं कराई गईं. उस समय पुलिस में जाने का मतलब होता था पकड़ की मौत और कोई ऐसा चाहता नहीं था. लोगों ने खेत बेंचकर अपने बच्चों को छुड़ाया लेकिन पुलिस को सूचना नहीं दी. इस दौरान उसने श्याम नाम के युवा को अपना दत्तक पुत्र बना लिया.
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…और ऐसे पुलिस ने जाल बिठाया
धीरे-धीरे श्याम गैंग पर मजबूत पकड़ बनाने लगा. कुछ समय बाद निर्भय ने श्याम की शादी सरला से करवा दी. सरला पहले से ही गैंग में थी और अपहरण कर लाई गई थी. निर्भय ने बेहद कम उम्र नीलम से भी शादी कर ली थी पर, एक दिन श्याम ने निर्भय को अपने पत्नी सरला के साथ आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया. फिर वह बगावत पर उतर आया. किसी तरह निर्भय ने मामले को दबाने की कोशिश की.
कुछ दिन मामला ऐसा लगा कि ठंडा हो गया है लेकिन ऐसा था नहीं. बदले की आग अंदर ही अंदर जल रही थी. श्याम ने निर्भय की पत्नी नीलम पर डोरे डाले. दोनों की उम्र एक थी जबकि निर्भय काफी बड़ा था.
दोनों सहमत हुए और श्याम एक दिन नीलम को लेकर नई दुनिया बसाने का ख्याल लेकर चम्बल से भाग चला और पुलिस से मिल गया. उसकी मुखबिरी के आधार पर पुलिस ने जाल बिछाया और औरैया जिले के अजीतमल इलाके में सात नवंबर 2005 को निर्भय मारा गया.
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