The prices of edible oils have come down
सत्य खबर, नई दिल्ली। मलेशिया एक्सचेंज में गिरावट के बीच दिल्ली तेल तिलहन बाजार में गुरुवार को मूंगफली तेल तिलहन को छोड़कर बाकी लगभग सभी खाद्य तेल तिलहनों में गिरावट आई. मलेशिया एक्सचेंज में फिलहाल लगभग दो प्रतिशत की गिरावट है जबकि शिकॉगो एक्सचेंज कल रात बगैर घट बढ़ के साथ बंद हुआ था और फिलहाल यहां यही रुख बरकरार है.
बाजार के जानकार सूत्रों ने बताया कि शिकॉगो एक्सचेंज में 0.1 प्रतिशत की मामूली तेजी होने के बावजूद थोक बाजार में भाव चार रुपये किलो घट गये. यानी पहले जो 10-12 रुपये किलो अधिक प्रीमियम के साथ कमाई की जा रही थी वह अब घटकर 6-8 रुपये किलो रह गया है. मगर खुदरा बाजार में दाम अब भी मनमाने ढंग से बढ़ाया हुआ है. कमाई के इस मार्जिन में गिरावट का असर बाकी अन्य तेल तिलहनों पर दिखा और उनके दाम में कमी आई है.The prices of edible oils have come down
इस उत्पादन रह सकता है बंपर
सूत्रों ने कहा कि अगले महीने तक मंडियों में सरसों की फसल आने की संभावना है और इस बार उत्पादन बंपर रहने की उम्मीद है. सरसों के इस बंपर उत्पादन की उम्मीद से इसकी कीमतों पर दबाव को देखते हुए किसान अपने बचे खुचे स्टॉक को भी बाजार में ला रहे हैं. सस्ते आयातित तेलों की देश में भरमार के बीच असली दिक्कत सरसों को खपने को लेकर है जिसकी वजह से सरसों तेल तिलहन के दाम में गिरावट है.
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किसान नहीं बेचना चाहते सस्ते में तिलहन
सूत्रों ने कहा कि सस्ते आयातित तेलों ने देशी तेल तिलहनों पर दबाव बनाया हुआ है और देशी तेल मिलों को पेराई के बाद अपना तेल बाजार में सस्ता बेचने की मजबूरी को देखते हुए वे किसानों से सस्ते में तिलहन खरीद करना चाहते हैं. लेकिन किसान जो कभी ऊंची कीमत प्राप्त कर चुके हैं, वे सस्ते में अपनी फसल नहीं बेचना चाहते हैं. सोयाबीन और बिनौला के किसान सस्ते में अपनी उपज नहीं बेच रहे. सूत्रों ने कहा कि डीआयल्ड केक (डीओसी) की मांग होने के बीच सोयाबीन तिलहन के भाव पूर्ववत हैं. दूसरी ओर लाभ का मार्जिन कम किये जाने से सोयाबीन तेल कीमतों में गिरावट आई.
मलेशिया एक्सचेंज में गिरावट की वजह से कच्चा पामतेल (सीपीओ) और पामोलीन तेल कीमतों में भी गिरावट देखने को मिली. विदेशी तेलों की नरमी का असर बिनौला तेल कीमतों पर भी हुआ और इनके दाम घट गये. निर्यात मांग और खाने के लिए स्थानीय जाड़े की मांग होने के बीच आयातित सस्ते तेलों की उपस्थिति में मूंगफली तेल तिलहन के दाम अपरिवर्तित रहे. The prices of edible oils have come down
सूत्रों ने कहा कि कोटा प्रणाली के तहत आयातित तेल सस्ते के बजाय महंगे में बिक रहा है और ऐसे मौके पर सभी ने चुप्पी साध रखी है. सरकार बार बार कहती है कि उसकी मंशा देश में तिलहन उत्पादन बढ़ाकर विदेशी मुद्रा के खर्च को कम करना है लेकिन जब शुल्कमुक्त आयातित तेल प्रीमियम दाम के साथ महंगा बिक रहा है तो उसे रोकने के कदम उठाने होंगे. मुद्रास्फीति पर खाद्य तेल से कहीं ज्यादा असर दूध एवं दुग्ध उत्पादों, अंडे और मक्खन जैसी वस्तुओं का होता है. खाद्य तेलों के महंगा होने पर पामोलीन जैसे सस्ते तेल के आयात से तेल की कमी को दूर की जा सकती है पर दूध का तो कोई विकल्प नहीं है जिनके दाम अलग अलग किस्तों में पिछले साल के अंतिम कुछ महीनों के मुकाबले लगभग 8 10 रुपये लीटर बढ़े हैं. सरकार को कोटा प्रणाली को भी खत्म करके हल्के तेलों के आयात का समुचित प्रबंधन करना होगा जिससे देशी तेल तिलहन उत्पादकों के हितों को संरक्षित किया जा सके.
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