गीता सभी ग्रंथों का सार व अमृत सत्व है – स्वामी ज्ञानानंद
सत्यखबर सफीदों (महाबीर मित्तल) – राष्ट्रीय कीर्ति आह्वान समिति एवं श्री कृष्ण कृपा परिवार के संयुक्त तत्वावधान में नगर की पुरानी अनाज मंडी में आयोजित दिव्य गीता सत्संग महोत्सव को संबोधित करते हुए गीता मनीषी महामंडलेश्वर स्वामी ज्ञानानंद महाराज ने कहा कि जहां प्रेम होगा वहां सुख और शांति होगी और जहां पक्षपात होगा वहीं महाभारत होगी। इस मौके पर हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग के सदस्य एडवोकेट विजयपाल सिंह व हरियाणा गौसेवा आयोग के सदस्य श्रवण कुमार गर्ग ने गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानंद महाराज का अभिनंदन करके आशीर्वाद ग्रहण किया।
इस अवसर पर उत्तराखंड से आए संत हरिदास का भी सानिध्य प्राप्त हुआ। अपने संबोधन में स्वामी ज्ञानानंद महाराज ने कहा कि वर्तमान में कई रूपों में महाभारत चल रही है। रामायण में दो भाईयों राम और भरत के बीच में भी सिंहासन था और महाभारत में कौरवों और पांडवों के मध्य भी सिंहासन था लेकिन रामायण में त्याग भावना के कारण प्रेम भाव और शांति थी। वहीं महाभारत में पक्षपात के कारण महाभारत हुई। उन्होंने कहा कि गीता मोह को प्रेम में बदलने का एक ग्रंथ है। जितनी सुख सुविधाएं बढ़ रही हैं, उतनी ही समस्याएं, तनाव व अवसाद भी बढ़ रहे हैं। इन सभी को गीता ज्ञान से ही दूर किया जा सकता है।
गीता सभी ग्रंथों का सार व अमृत सत्व है। गीता में संकीर्णता की बात नहीं की गई, जीवन जीने का ढंग बताया गया है। यह केवल भगवान कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया उपदेश नहीं है अपितु यह उपदेश पूरी मानव जाति के लिए है। अगर हम पशु, पक्षियों व अन्य जीवों की तुलना में मनुष्य जीवन को देखें तो तो पता चलता है कि मनुष्य पर परमात्मा की विशेष कृपा है। प्रत्येक जीव में चेतना है, इसलिए किसी भी जीव को दुख देने से पहले यह सोच लेना चाहिए कि चेतन जीव को कुछ कष्ट तो नहीं हो रहा। मनुष्य जीवन कुछ अच्छा करने, कुछ बनने व आगे बढऩे के लिए मिला है। जीवन व मृत्यु में अंतर केवल चेतना व आत्मा का है। शरीर तो नश्वर है। जब शरीर से आत्मा एंव चेतना निकला जाती है तो मनुष्य मृतक कहलाने लगता है।