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सत्यखबर, नई दिल्ली।
हैप्पी न्यू ईयर…2023 के वेलकम के साथ ही न्यू ईयर रेजोल्यूशन का सिलसिला भी शुरू हो गया है। किसी को वजन कम करना है तो किसी ने स्मोकिंग, पान मसाला या गुटखा छोड़ने की कसम खाई है। कोई रोज सुबह जल्दी उठकर वॉक करने का खुद से वादा कर बैठा है तो किसी ने फास्ट फूड से दूर रहने का इरादा पक्का कर लिया है। आखिर नया साल आते ही क्यों सुधरने का भूत सवार हो जाता है? क्या ये जोश पूरे साल इसी तरह बना रहा है? नहीं…। हफ्ते या महीने बीतने के बाद आमिर खान की फिल्म ‘गजनी’ की तरह खुद को सुधारने का जोश ठंडा होकर ‘शॉर्ट टर्म मेमोरी लॉस’ के हवाले हो जाता है।
1 जनवरी को 80% लोग खुद से वादा करते हैं, लेकिन 2 हफ्ते बीतने के बाद खुद से ही बेवफाई कर बैठते हैं। इसलिए 2023 का बेस्ट रेजोल्यूशन है कि हम खुद से कोई वादा ही न करें। लेकिन लोग रेजोल्यूशन बनाते क्यों हैं और अगर बनाते हैं तो फिर तोड़ते क्यों हैं? न्यू ईयर रेजोल्यूशन के साथ ऐसा होता क्यों हैं? कभी सोचा है? Have you also taken resolution on new year
डोपामाइन और सेरोटोनिन करवाता है वादा
जब भी कोई नई चीज शुरू होती है तो हम लोग जोश और उत्साह से भर जाते हैं। यह ऐसा वक्त होता है जब इंसान कुछ भी कर गुजरने की सोचता है। जब भी हम जोश, उमंग और खुशी महसूस करते हैं तो यह डोपामाइन हाॅर्मोन की वजह से होता है। यह हैप्पी हाॅर्मोन कहलाता है। जब यह एक्टिव होता है तो इंसान अपनी बॉडी को शेप में लाने के बारे में या वजन कम करने में सफलता हासिल करने के लिए एक्साइटेड रहता है।वहीं, सेरोटोनिन इंसान की उदासी और डिप्रेशन दूर कर देता है। यानी अगर आपने न्यू ईयर की पार्टी की धूम के बीच रेजोल्यूशन रखा था, तब आपका डोपामाइन और सेरोटोनिन एक्टिव था।
5 हजार साल पहले जिंदगी जीने के लिए किए जाते थे वादे रेजोल्यूशन का चलन 5000 साल पुराना है। इतिहास में इसके सबूत मेसोपोटामिया के बेबिलोनियाई सभ्यता में मिले। खेती-किसानी के नए साल के मौके पर वहां 12 दिन का त्योहार मनाया जाता था। यह ठीक बिल्कुल वैसा है जैसे भारत में फसल के हिसाब से लोहड़ी, होली या बैसाखी जैसे पर्व मनाया जाता है।इस मौके पर बेबीलोन शहर के लोग अपने राजा से समय पर कर्ज चुकाने, पड़ोसियों के साथ अच्छे रिश्ते बनाने और खेती से जुड़े औजारों को वापस करने का वादा करते थे।
वहीं, प्राचीन मिस्र में जब हर साल नील नदी में बाढ़ आती थी तो उसके बाद जमीन कृषि के लिए उपजाऊ बन जाती थी। इस साल को Wepet Renpet यानी नए साल की शुरुआत माना जाता। इस मौके पर जमकर जश्न होता। यह जश्न आज की न्यू ईयर की पार्टी की तरह होता था।प्राचीन रोम में भी लोग नए साल पर भगवान से प्रार्थना करके खुद की बेहतरीन जिंदगी के लिए रेजोल्यूशन बनाते थे। चीन में रेजोल्यूशन लेने को गुड लक समझा जाता था। यानी पुराने जमाने में लोग रेजोल्यूशन जीवित रहने के लिए लेते थे।Have you also taken resolution on new year
रेजोल्यूशन के बदले मायने यूरोप के मशहूर इतिहासकार और लेखक कालेब टेरी ने अपने लेख ‘द हिस्ट्री ऑफ न्यू ईयर रेजोल्यूशन एंड सेलिब्रेशंस’ में लिखा कि मॉडर्न रेजोल्यूशन समाज में आज के हिसाब से बनाए जाने लगे हैं। पुराने जमाने की तरह अब यह जरूरत के हिसाब से नहीं बल्कि पर्सनल मकसद के हिसाब से तय होते हैं।
शायद इसलिए अब लोगों के रेजोल्यूशन होते हैं- जिम जॉइन करके 5 किलो वजन कम करना, हफ्ते के 2 दिन कार्डियो एक्सरसाइज करना, स्मोकिंग, पान मसाला, गुटखा या शराब छोड़ना, रोज सुबह जल्दी उठना, खाने में जंक फूड और चीनी को बाहर करना और ना जाने क्या-क्या।यानी अधिकतर रेजोल्यूशन का मकसद अपने 5 साल पुराने ब्लाउज या जींस में फिट आना है। इसलिए लोग गोल सेट करते हैं ताकि उनका सेल्फ कॉन्फिडेंस बढ़े और सेल्फ इंप्रूवमेंट यानी खुद में सुधार लाएं।कुछ लोग इसे ड्रग की तरह मानते हैं जैसे गोली फांकते ही बीमारी सही हो जाती है। ठीक वैसे ही रेजोल्यूशन लेते ही पुरानी खराब आदतें छूमंतर हो जाती हैं। लेकिन, ऐसा होता नहीं है।
उम्मीद पर इंसान की पर्सनैलिटी हो जाती है हावी दिल्ली के सर गंगाराम हॉस्पिटल में मनोचिकित्सक डॉ. राजीव मेहता के अनुसार नई चीज जोश और उम्मीद से जुड़ी होती है। चाहे वह नया घर, नई जॉब, नई गाड़ी हो या फिर नया साल। वैसे भी दुनिया उम्मीद पर कायम है। यह उम्मीद हकीकत है या ख्याली, सच्ची है या झूठी, यह खुद उस इंसान को भी नहीं पता होता। नई चीज को देख इंसान रेजोल्यूशन बना बैठते हैं जबकि इंसान की पर्सनैलिटी वैसे ही रहती है। जो आलसी है वो आलसी रहेगा और जो मेहनती है, वह मेहनत करेगा। खुद से वादा कर अपने आप में बदलाव वही इंसान ला सकता है जिसकी पर्सनैलिटी बचपन से ही मेहनती हो और एक्टिव हो। एक दिन या अचानक से किसी की पर्सनैलिटी नहीं बदलती। पर्सनैलिटी ही उम्मीद और खुद से किए वादे पर हावी हो जाती है।
लुक्स और ब्यूटी के ही ज्यादातर क्यों लिए जाते हैं रेजोल्यूशन ज्यादातर न्यू ईयर वादे हेल्दी डाइट, एक्सरसाइज करना, वजन कम करना, खुद की पर्सनैलिटी को ग्रूम करने से जुड़े होते हैं। क्यों नया साल आते ही लोगों को खूबसूरत लुक्स और परफेक्ट बॉडी की चाहत होने लगती है? इस पर डॉ. राजीव कहते हैं कि आज जिस माहौल में हम जी रहे हैं, वहां दिखावा ज्यादा है। ब्यूटी और लुक्स से जुड़े रेजोल्यूशन इसलिए किए जाते हैं क्योंकि ये तारीफ से जुड़े हैं। जब कोई वेट लूज करता है तो लुक्स में बदलाव नजर आता है। इससे दूसरों से तारीफ मिलती है और अपनी तारीफ सबको अच्छी लगती है।Have you also taken resolution on new year
खुद से रोज करेंगे वादा तो होगा बदलाव साइकोलॉजिस्ट्स मानते हैं कि अगर कोई वाकई में खुद से वादा करके अपने आपको सुधारना चाहता है तो उसे नए साल की जरूरत नहीं है। हर दिन नया है। हर दिन खुद से वादा कर उसके लिए मेहनत करें।खुद को वही इंसान बदल सकता है जो उस बदलाव के काबिल है। रेजोल्यूशन को भी रीयल रखें। 1 महीने में आप 10-20 किलो वजन कम नहीं कर सकते।
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