history of jwala devi mandir in himachal
सत्य खबर, शिमला । न घी, न तेल, न बाती, न आग, न धुंआ, न ताप, फिर भी सदियों से धधक रही ज्वाला। सैकड़ों वर्षों से उबल रहा पानी। खास बात यह कि यहां मां की कोई प्रतिमा भी नहीं, अब यह श्रद्धा है या चमत्कार, आस्था है या अंधविश्वास, रहस्य आज तक अनसुलझा है। देवभूमि हिमाचल प्रदेश में कांगड़ा जिला स्थित विख्यात शक्तिपीठ ज्वालामुखी करोड़ों हिंदुओं की आस्था का केंद्र है। नवरात्रि के दिनों में रोजाना यहां सैकड़ों लोग शीश नवाने पहुंचते हैं।
ज्वालामुखी की ‘ज्योति’ चमत्कार है या रहस्य। इसका पता न अंग्रेज लगा पाए और न ही वैज्ञानिक। आजादी से पहले अंग्रेजों ने कई बार ज्वालामुखी की पहाड़ियों में ज्योति के रहस्य को जानने का प्रयास किया। ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉर्पोरेशन लिमिटेड (ONGC) के वैज्ञानिकों ने यहां 6 दशक से अभी अधिक समय तक डेरा डाले रखा, लेकिन कामयाबी नहीं मिली। आज तक कोई ज्योति के रहस्य को नहीं तलाश पाया कि यह जल कैसे रही है?
ज्योति बुझाने को अकबर ने खोदी थी नहर
कहा जाता है कि बादशाह अकबर ने ज्वाला देवी में धधक रही ज्योतियों को बुझाने के लिए अपने सैनिकों से नहर तक खुदवा दी थी, लेकिन यह नहीं बुझी। आखिरकार अकबर को इन ज्योतियों के सामने झुकना पड़ा और मंदिर में उसने सवा मन सोने का छत्र चढ़ाया। छत्र चढ़ाने के बाद अकबर को अहंकार हुआ। इस अहंकार की वजह से सोना ऐसी धातु में तब्दील हो गया, जिसका आज तक पता नहीं लग पाया है।history of jwala devi mandir in himachal
ONGC ने 1959 में पहली बार कुंआ खोदा
देश आजाद होने के बाद ONGC के वैज्ञानिकों ने 6 दशक से ज्यादा समय तक ज्वालाजी की पहाड़ियों में गैस या तेल होने के प्रमाण खोजने की जदोजहद की। ONGC ने पहली बार 1959 में ज्वालामुखी व आसपास के क्षेत्रों में कुएं खोदकर यह पता लगाने का प्रयास किया कि आखिर बिना तेल, बाती, घी के ज्योति कैसे जल रही है।
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टेढ़ा मंदिर में पहली बार खोदा गया कुंआ
ज्वालामुखी के टेढ़ा मंदिर में पहली बार कुआं खोदा गया। उसके बाद 1965 में सुराणी में, बग्गी, बंडोल, घीणा, लंज, सुराणी व कालीधार के जंगलों में खुदाई की गई थी, लेकिन कुछ हाथ नहीं लग पाया। थके-हारे वैज्ञानिकों ने अब अनुसंधान बंद कर दिया है।
सदियों से जल रही ज्वाला की 9 ज्योतियां: कपिल
मंदिर के मुख्य पुजारी कपिल शर्मा ने बताया कि ज्वालामुखी में सदियों से मां ज्वाला की 9 ज्योतियां जल रही हैं। इन ज्योतियों को महाकाली, अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विंध्यवासिनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अंबिका, अंजीदेवी के नाम से जाना जाता है। जब कोई आपदा आती है तो यह ज्योतियां पहले ही अलग-अलग रंग में प्रज्ज्वलित होकर संकेत दे देती हैं। यहां किसी मूर्ति की नहीं, बल्कि 9 ज्योतियों की पूजा होती है। इन ज्योतियों के ऊपर मंदिर बना है।history of jwala devi mandir in himachal
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ज्योतियों को आजमाने के अनेकों प्रयास हुए: कपिल
पुजारी कपिल शर्मा ने बताया कि अनेकों बार इन ज्योतियों को वैज्ञानिकों ने आजमाने का प्रयास किया। हर बार नाकामी हाथ लगी। गैस या तेल का अंदेशा होने पर ONGC ने दशकों तक क्षेत्र के भूगर्भ में ड्रिलिंग करके खुदाई की। वैज्ञानिकों ने पहाड़ी पर चप्पा-चप्पा छान मारा, लेकिन गैस और तेल होने के अंश तक नहीं मिले।
ज्वालामुखी को जोता वाली मंदिर भी कहा जाता है
कपिल शर्मा ने बताया कि इस मंदिर को खोजने का श्रेय पांडवों को जाता है। मंदिर के निर्माण कार्य की शुरुआत राजा भूमि चंद ने की। बाद में इसे पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह और राजा संसारचंद ने 1835 में पूरस किया।
ज्वालाजी की पहाड़ियों पर गिरी थी जीभ
कहा जाता है कि सती के रूप में जानी जाने वाली आदिशक्ति, प्रथम शक्ति भगवान शिव की पत्नी बनी। एक बार सती के पिता ने भगवान शिव का अपमान किया, सती को यह स्वीकार नही हुआ तो उसने खुद को हवन कुंड मे भस्म कर डाला। भगवान शिव ने जब अपनी पत्नी की मृत्यु के बारे में सुना तो उनके गुस्से कोप दुनिया का सहना पड़ा। उन्होंने सती के पार्थिव शरीर को उठाकर तीनों लोकों में भ्रमण करना शुरू किया।
देवता शिव के क्रोध से कांप उठे और भगवान विष्णु से मदद मांगी। भगवान विष्णु ने सती के शरीर को चक्र के वार से खंडित कर दिया। जिन स्थानों पर टुकड़े गिरे, उन स्थानों पर 52 पवित्र ‘शक्तिपीठ’ अस्तित्व में आए। ज्वालामुखी में सती की जीभा गिरी थी और देवी छोटी लपटों के रूप में प्रकट हुई। कहा जाता है कि सदियों पहले, एक चरवाहे ने देखा कि अमुक पर्वत से ज्वाला निकल रही है। ज्वालाजी को जोता वाली मंदिर भी कहा जाता है।
शक्तिपीठ ज्वालाजी कैसे पहुंचे
वायु मार्ग: ज्वालाजी मंदिर जाने के लिए नजदीकी हवाई अड्डा गगल में है, जो ज्वालाजी से 46 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां से मंदिर तक जाने के लिए कार व बस सुविधा उपलब्ध है।
रेल मार्ग: रेल मार्ग से जाने वाले यात्री पठानकोट से चलने वाली स्पेशल ट्रेन की सहायता से मारंडा होते हुए पालमपुर आ सकते हैं। पालमपुर से मंदिर तक जाने के लिए बस व कार सुविधा उपलब्ध है।
सड़क मार्ग: पठानकोट, दिल्ली, शिमला आदि प्रमुख शहरों से ज्वालामुखी मंदिर तक जाने के लिए बस व कार सुविधा उपलब्ध है। इसके अलावा यात्री अपने निजी वाहनों व हिमाचल प्रदेश टूरिज्म विभाग की बस के द्वारा भी वहां तक पहुंच सकते हैं।
अभी तक के अनुसंधान में नहीं मिले गैस व तैल होने के प्रमाण: ठाकुर
ज्वालामुखी मंदिर ट्रस्ट के अधिकारी बचित्र सिंह ठाकुर ने बताया कि लंबे समय तक यहां ONGC ने अनुसंधान किया, लेकिन वैज्ञानिक तौर पर कोई पुख्ता प्रमाण नहीं मिले हैं। लंबे समय से यहां किसी भी तरह का अनुसंधान नहीं चल रहा और न ही अभी ऐसा कोई प्रस्ताव है। वहीं ONGC अधिकारी बताते हैं कि धार्मिक दृष्टि से देखें तो यह चमत्कार है। इससे लोगों की धार्मिक भावनाएं जुड़ी हुई हैं।
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