हरियाणा

श्रीमद् भागवत कथा में आईजी सीआईडी आलोक मित्तल ने पहुंचकर लिया संतों से आशीर्वाद

 

सत्य खबर सफीदों, (महाबीर मित्तल):

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नगर के गीता कालोनी स्थित मंदिर में चल रही श्रीमद् भागवत कथा अमृत महोत्सव में हरियाणा के आईजी सीआईडी आलोक मित्तल ने शिरकत करके स्वामी परम मुक्तानंद महाराज भिक्षु: व कथा व्यास स्वामी विनोद कृष्ण महाराज से आशीर्वाद ग्रहण किया। इस अवसर पर आलोक मित्तल ने दोनों संतों का मालार्पण करके अभिनंदन किया तथा श्रीमद् भागवत की पूजा-अर्चना की। कथा के संयोजक सतनारायण मित्तल ने अंगवस्त्र भेंट करके आईजी आलोक मित्तल का स्वागत किया। आलोक मित्तल ने पांडाल में बैठकर पूरे श्रद्धाभाव से श्रीमद् भागवत कथा का श्रवण किया। कथा व्यास स्वामी विनोद कृष्ण महाराज ने भगवान श्रभ्ीकृष्ण के 16108 विवाहों का प्रसंग सुनाते हुए कहा कि भगवान श्रीकृष्ण की रुक्मिणी, जाम्बवंती, सत्यभामा, कालिंदी, मित्रबिंदा, सत्या, भद्रा, लक्ष्मणा 8 पटरानियां थीं। भगवान कृष्ण की हर पत्नी से 10-10 पुत्र हुए थे। इन सभी पुत्रों में भगवान कृष्ण के समान ही गुण और प्रताप था। रुक्मिणी को देवी लक्ष्मी का अवतार माना जाता है। रुक्मिणी, कृष्ण से बहुत प्रेम करती थीं और मन ही मन उन्हें अपना पति मान लिया था। भगवान श्रीकृष्ण ने एक बार 16,000 कन्याओं से विवाह किया था। ऐसा इसलिए किया था क्योंकि ये कन्याएं एक राक्षस के कैद में थीं और उस राक्षस ने इनके साथ बहुत अत्याचार किया था। नरकासुर नाम का यह राक्षस अमरत्व पाने के लिए इन कन्याओं की बलि देना चाहता था। भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध किया और उन सभी कन्याओं को कैद से मुक्त कराया। जब कन्याओं को हर किसी ने कैद में रहने के कारण अपनाने से मना कर दिया तो इन्होंने भगवान श्रीकृष्ण से कहा कि वे आपको ही अपना पति मान चुकी हैं और वे अब कहीं नहीं जाएंगी। तब भगवान कृष्ण ने उन पर प्रसन्न होकर 16,000 रूपों में प्रकट होकर एक साथ उनसे विवाह रचाया। भगवान श्री कृष्ण ने धर्म की स्थापना के लिए कुल 16108 विवाह किए। उन्होंने कहा कि श्रीमद् भागवत कथा सुनने से मनुष्य का आध्यात्मिक विकास और भगवान के प्रति उसकी भक्ति गहरी होती है। श्रीमद् भागवत कथा स्वयं की प्रकृति और परम वास्तविकता के बारे में सिखाती है। भागवत कथा, भक्त और भगवान दोनों की कथा है और इसका मूल भाव है सत्यम परम धीमहि। जो व्यक्ति घर में भागवत कथा कराता है या भागवत पुराण रखता है उनके पितरों को ईश्वर की कृपा प्राप्त होती है। श्रीमद्भागवत कथा कल्पवृक्ष के समान है। भागवत कथा ही साक्षात कृष्ण हैं और जो कृष्ण है, वही साक्षात भागवत है।

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