सत्य खबर, चण्डीगढ़, सतीश भारद्वाज :
Punjab and Haryana High Court suspended the ACJM of Faridabad district on the basis of vigilance investigation report.
पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने एक आदेश में फरीदाबाद के अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट-सह-न्यायाधीश (सीनियर डिवीजन) हरीश गोयल की सेवाओं को निलंबित कर दिया है। न्यायिक अधिकारी पर कथित तौर पर एक पुलिस अधिकारी के साथ टेलीफोन पर संपर्क में होने का आरोप है, जिसने हरियाणा में किसानों के विरोध प्रदर्शन के दौरान कथित तौर पर उनका पुतला जलाए जाने के बाद करीब 37 नागरिकों के खिलाफ मानहानि की शिकायत दर्ज की गयी थी।
न्यायालय सुत्रो व मिडिया रिपोर्ट से प्राप्त जानकारी के अनुसार ऐसा बताया जा रहा है कि करनाल में तैनात रहे न्यायिक अधिकारी ने शिकायत दर्ज होने के एक दिन बाद प्रारंभिक साक्ष्य दर्ज करने के बाद लगभग एक सप्ताह में करीब 37 लोगों को बुलाया था। इस मामले में न्यायिक अधिकारी के खिलाफ कुरुक्षेत्र जिले के हसनपुर गांव के गुरमीत सिंह और चार अन्य निवासियों द्वारा शिकायत की गई थी।
उच्च न्यायालय द्वारा इस मामले की सतर्कता जांच से यह बात सामने आया था कि यह मामला वर्षों से सम्मन-पूर्व चरण में लंबित लगभग 50 अन्य मामलों से यह मामला एकदम से भिन्न था। इसमें अन्य जांच पड़ताल की अन्य बातों बयान के अलावा, पूछताछ के दौरान अधिकारीयो के मोबाइल की कॉल डिटेल को भी ध्यान में रख कर जांच में शामिल किया गया था, जोकि इस मामले में सबूत बने हैं। इस मामले पर माननीय उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों ने भी गहनता मंथन किया था।
बताया जा रहा है कि गत 30 सितंबर को भी इस मामले को लेकर एक बैठक हुई थी। जिसमें पंजाब एंड हरियाणा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश रवि शंकर झा और अन्य उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों वाले पूर्ण न्यायालय के समक्ष निष्कर्ष रखे गए थे।
यह आदेश संविधान के अनुच्छेद 235 और हरियाणा सिविल सेवा (दंड और अपील) के प्रावधानों के तहत अनुशासनात्मक क्षेत्राधिकार का प्रयोग करते हुए, पूर्ण न्यायालय ने गोयल की सेवाओं को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया। निलंबन अवधि के दौरान उनका मुख्यालय पलवल रहेगा। उन्हें इस अवधि के दौरान पलवल जिला एवं सत्र न्यायाधीश की पूर्व अनुमति के बिना मुख्यालय नहीं छोड़ने को कहा गया है।
मुख्य न्यायाधीश झा के कार्यकाल के दौरान पूर्ण न्यायालय ने अब तक 20 से अधिक न्यायिक अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही शुरू की है। अन्य बातों के अलावा, इसने 2020 में दो अतिरिक्त जिला और सत्र न्यायाधीशों को अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त कर दिया था, जिससे अधीनस्थ न्यायपालिका में अनुशासनहीनता, शालीनता या अन्य कारकों के खिलाफ शून्य सहिष्णुता का एक मजबूत संदेश दिखाईं देता है।