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Sukhbir Badal का इस्तीफा, 16 साल बाद अकाली दल की अध्यक्षता छोड़ी, नया अध्यक्ष कौन होगा, पार्टी के पतन के बड़े कारण

अकाली दल (SAD) के अध्यक्ष Sukhbir Badal ने आखिरकार 16 साल बाद पार्टी की अध्यक्षता से इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने अपना इस्तीफा पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष बलविंदर सिंह भुंडर को सौंपा। सुखबीर बादल 2008 से लगातार अकाली दल के अध्यक्ष रहे हैं, और उनका अचानक इस्तीफा अकाली दल में हलचल का कारण बन गया है। उनके इस कदम ने राजनीतिक गलियारों में एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है कि अब पार्टी का नेतृत्व कौन करेगा और क्या इसके परिणामस्वरूप अकाली दल के भविष्य पर असर पड़ेगा?

सुखबीर बादल का इस्तीफा: एक अप्रत्याशित कदम

सुखबीर सिंह बादल के इस्तीफे ने सभी को चौंका दिया। उनका यह कदम पार्टी में उनके नेतृत्व पर बढ़ते सवालों और पार्टी में विद्रोह के बाद आया है। उन्होंने इस्तीफा देते समय पार्टी के सभी नेताओं और कार्यकर्ताओं का धन्यवाद किया और कहा कि वह हमेशा उनके समर्थन के आभारी रहेंगे, जिन्होंने उनके कार्यकाल के दौरान उन्हें पूरी तरह से समर्थन दिया।

पार्टी की कार्यकारिणी समिति ने 18 नवंबर को चंडीगढ़ स्थित पार्टी कार्यालय में एक बैठक बुलाई है, जिसमें बादल के इस्तीफे पर आगे की कार्रवाई पर चर्चा की जाएगी। इस बैठक में पार्टी अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया की शुरुआत और पार्टी के नए अध्यक्ष का चुनाव किए जाने की संभावना है।

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पार्टी में विद्रोह और दबाव

सुखबीर बादल का इस्तीफा एक ओर पार्टी के भीतर उठ रहे विद्रोह का परिणाम है। अकाली दल के वरिष्ठ नेता डॉ. दलजीत सिंह चीमा ने कहा कि 14 दिसंबर 2019 को पार्टी अध्यक्ष और संगठनात्मक ढांचे के चुनाव हुए थे। अब आगामी चुनाव के मद्देनजर, सुखबीर बादल ने इस्तीफा दिया है ताकि चुनाव प्रक्रिया में कोई अड़चन न आए। पार्टी में सदस्यता अभियान से लेकर जिला और राज्य प्रतिनिधियों का चुनाव किया जाएगा, और इसके बाद पार्टी का नया अध्यक्ष और कार्यकारिणी समिति का गठन होगा।

पार्टी के भीतर बढ़ते असंतोष के कारण भी यह इस्तीफा हुआ है। खासकर, जब से प्रकाश सिंह बादल का निधन हुआ है, तब से पार्टी में वरिष्ठ नेताओं की आवाजें मुखर हो गई हैं। सिखों के पवित्र ग्रंथ श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी की घटनाओं के बाद अकाली दल का जनाधार घटने लगा। इस मुद्दे को लेकर पार्टी के भीतर विरोध की आवाजें उठने लगीं, जिससे पार्टी के नेतृत्व पर दबाव बढ़ा। कई वरिष्ठ नेताओं ने पार्टी अध्यक्ष सुखबीर बादल से इस्तीफा देने की मांग की। जब सुखबीर बादल ने यह मांग ठुकरा दी, तो कई नेता पार्टी छोड़कर अलग पार्टी बनाने की ओर बढ़ गए।

बेअदबी की घटनाएं: पार्टी के पतन की बड़ी वजह

2015 में श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी की घटनाएं अकाली दल के पतन की प्रमुख वजह मानी जाती हैं। जून 2015 में फरिदकोट के बुर्ज जवाहर सिंह वाला गुरुद्वारे से श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बीर चोरी हो गई थी। इसके बाद अक्टूबर 2015 में फरिदकोट के ही बरगाड़ी गुरुद्वारे से 110 भागों में श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी की घटना हुई। उस समय सुखबीर बादल पंजाब के उपमुख्यमंत्री थे और गृह विभाग भी उनके पास था। इस घटना ने न केवल अकाली दल को राजनीतिक रूप से कमजोर किया, बल्कि पार्टी की छवि भी खराब कर दी।

इन घटनाओं के बाद 2015 में कोटकपूरा  कलां में फायरिंग की घटनाएं हुईं, जिनमें पुलिस द्वारा प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चलाई गई थीं। इसके परिणामस्वरूप अकाली दल को 2017 और 2022 के विधानसभा और लोकसभा चुनावों में बड़ी हार का सामना करना पड़ा। पार्टी के शीर्ष नेता सुखबीर बादल ने अपनी राजनीतिक जमीन खो दी। अब इस समय ऐसा लग रहा है कि अकाली दल ने इस बार उपचुनाव में भी भाग लेने से मना कर दिया है।

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अब अकाली दल का भविष्य क्या होगा?

सुखबीर बादल के इस्तीफे के बाद, अकाली दल के लिए आगे का रास्ता क्या होगा, यह बड़ा सवाल बना हुआ है। पार्टी के भीतर नेतृत्व का संकट गहरा सकता है, क्योंकि अब पार्टी में नए नेतृत्व के लिए चर्चा शुरू हो गई है। सुखबीर बादल के इस्तीफे के बाद पार्टी के कार्यकर्ता और नेता इस बात को लेकर उत्सुक हैं कि नया नेतृत्व किस दिशा में पार्टी को ले जाएगा।

कुछ वरिष्ठ नेता पहले ही पार्टी छोड़ चुके हैं और अब नए नेतृत्व की तलाश में हैं। क्या पार्टी पुराने रास्तों पर चलेगी या फिर नए नेतृत्व के साथ बदलाव का रास्ता अपनाएगी, यह आने वाला समय बताएगा।

सुखबीर बादल का इस्तीफा अकाली दल के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है। इसके साथ ही, पार्टी के भीतर विद्रोह, वरिष्ठ नेताओं का दबाव और बेअदबी की घटनाओं के कारण पार्टी की राजनीति में एक नया दौर शुरू हो सकता है। यह बदलाव पार्टी के भविष्य पर गहरा असर डाल सकता है, और पार्टी को पुनः संगठित करने की चुनौती सामने आएगी। आने वाले दिनों में अकाली दल के नए नेतृत्व का चयन और पार्टी की दिशा तय करेगा कि यह पार्टी पंजाब की राजनीति में फिर से अपनी स्थिति मजबूत कर पाएगी या नहीं।

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