SC asks for record from RBI on demonetisation
सत्य खबर , नई दिल्ली। करीब 6 साल पहले 500 और 1,000 रुपये के नोटों को केंद्र सरकार ने अचानक से बंद करने का ऐलान कर दिया था. इस डिमॉनेटाइजेशन के बाद देश भर में काफी हल्ला हुआ था. उसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट तक में चला गया. जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और भारतीय रिजर्व बैंक को निर्देश दिया है कि वो 2016 के 1000 रुपये और 500 रुपये के करेंसी नोटों के डिमॉनेटाइजेशन के फैसले से संबंधित रिलेवेंट रिकॉर्ड पेश करे. सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्देश बुधवार को नोटबंदी को चुनौती देने वाली 58 याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान दिया गया है.SC asks for record from RBI on demonetisation
पीठ के सामने ये लोग हुए पेश
केंद्र के 2016 के फैसले को चुनौती देने वाली दलीलों के एक ग्रुप पर अपना फैसला सुरक्षित रखते हुए, न्यायमूर्ति एस ए नज़ीर की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने आरबीआई के वकील अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी और याचिकाकर्ताओं के वकीलों की दलीलें सुनीं, जिसमें वरिष्ठ अधिवक्ता पी चिदंबरम और श्याम दीवान शामिल थे.
पीठ ने दिया यह निर्देश
सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा कि फैसले को सुरक्षित कर लिया गया है. भारत सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक के विद्वान वकीलों को रिलेवेंट रिकॉर्ड पेश करने का निर्देश दिया जाता है. पीठ में जस्टिस बीआर गवई, ए?एस बोपन्ना, वी रामासुब्रमण्यन और बीवी नागरथना भी शामिल हैं. लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार बेंच ने पार्टियों को 10 दिसंबर तक लिखित सबमिशन देने की इजाजत दी. एजी ने पीठ के सामने कहा कि वह सीलबंद लिफाफे में रिलेवेंट रिकॉर्ड जमा करेंगे.
हाथ जोड़कर बैठ नहीं सकती न्यायपालिका
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि उसके पास नोटबंदी के फैसले के तरीके की जांच करने की शक्ति है और न्यायपालिका सिर्फ इसलिए हाथ जोड़कर बैठ नहीं सकती क्योंकि यह एक आर्थिक नीति का फैसला है. अदालत की टिप्पणी तब आई जब भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के वकील ने यह कहा कि न्यायिक समीक्षा आर्थिक नीति निर्णयों पर लागू नहीं हो सकती है. सुनवाई के दौरान, आरबीआई की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता जयदीप गुप्ता ने अदालत को काले धन और फेक करेंसी पर अंकुश लगाने के लिए डिमॉनेटाइजेशन पॉलिसी के उद्देश्य से अवगत कराया.SC asks for record from RBI on demonetisation
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कोर्ट फैसलों के प्रोसेस पर सकती है गौर
डिमॉनेटाइजेशन का बचाव करते हुए, अधिवक्ता गुप्ता ने प्रस्तुत किया कि न्यायिक समीक्षा को आर्थिक नीतिगत निर्णयों पर लागू नहीं किया जा सकता है. न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना ने स्पष्ट किया कि अदालत फैसले के गुण-दोष पर विचार नहीं करेगी, लेकिन वह इस बात की जांच कर सकती है कि किस तरह से फैसला लिया गया. न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना ने कहा, “सिर्फ इसलिए कि यह एक आर्थिक नीति का फैसला है, अदालत हाथ जोड़कर बैठ नहीं सकती है.” अदालत ने आगे टिप्पणी की कि सरकार के पास ज्ञान है और उसे पता होना चाहिए कि लोगों के लिए सबसे अच्छा क्या है. लेकिन, अदालत फैसलों से जुड़ी प्रक्रियाओं और पहलुओं पर गौर कर सकती है.
बैंकों के आगे लगी थी लंबी कतारें
लगभग पांच घंटे तक चली सुनवाई में, अदालत ने मजदूरों और घरेलू सहायकों को भी ध्यान में रखा, जिन्हें 500 रुपये और 1,000 रुपये के नोटों का भुगतान किया गया था और उन्हें बैंक में लंबी कतारों में खड़ा होना पड़ा था. आरबीआई के वकील ने अदालत को बताया कि लोगों को अपने नोट बदलने के पर्याप्त मौके दिए गए.
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