The story related to Tau Devilal’s life haryana
हरियाणा की सियासत के सबसे बड़े किरदार ताऊ देवीलाल और पंजाब के बाबा बोहड़ कहे जाने वाले सरदार प्रकाश सिंह बादल का दोस्ताना किसी से छिपा नहीं है। इस दोस्ताना के बीच एक रोचक किस्सा है। पहले दोनों दोस्त बने और फिर पगड़ी बदल भाई भी बन गए। दोस्ताने के किस्से के लिए हमें थोड़ा पीछे जाना होगा। यह साल 1974 की बात है। पंजाब में प्रकाश सिंह बादल राजनीति में वापसी को लेकर संघर्ष कर रहे थे। इधर, ताऊ देवीलाल 1972 में आदमपुर में चौधरी भजनलाल और तोशाम में चौधरी भजनलाल से चुनाव हारने के बाद राजनीति से सन्यासी से हो गए थे। केंद्र, पंजाब और हरियाणा में कांग्रेस की सरकारें थीं। विपक्ष संघर्ष कर रहा था। हरियाणा में ताऊ देवीलाल में विपक्ष को एक उम्मीद नजर आ रही थी। प्रकाश सिंह बादल और संघ के नेता डा. मंगलसेन देवीलाल को राजनीति में वापस लाने के लिए सिरसा के गांव चौटाला में आए। देवीलाल से मान-मनुहार किया। देवीलाल मान गए। तब मौका भी दुरुस्त था। सिरसा जिला की सीट रोड़ी पर 1975 के फरवरी में उपचुनाव होना था।The story related to Tau Devilal’s life haryana
उपचुनाव में बादल के कहने पर देवीलाल ने पर्चा भर दिया। देवीलाल सियासी संघर्ष के साथ उन दिनों आर्थिक रूप से भी कमजोर पड़ गए थे। चुनाव लडऩे के लिए तब प्रकाश सिंह बादल ने देवीलाल को खाली चैक बुक दे दी। नगद पैसे भी दिए। यहीं से ताऊ देवीलाल और बादल के दोस्ताने की शुरूआत हुई। रोड़ी का वह उपचुनाव वैसे भी खास बन गया। बंसीलाल को हरियाणा का सीएम बने हुए करीब सात वर्ष का वक्त हो गया था। ऐसे में बंसीलाल नहीं चाहते थे कि देवीलाल जैसा बड़ा सियासी चेहरा रोड़ी का उपचुनाव जीते। ऐसे में बंसीलाल ने अपने दूर के रिश्तेदार इंद्राज बैनीवाल को मैदान में उतारा। खुद बंसीलाल ने रोड़ी में डेरा डाल लिया। पूरी सरकार रोड़ी में थी। उधर, विपक्ष के बड़े नेता देवीलाल के पाले में आकर खड़े हो गए। लोकदल के चौधरी चरण सिंह रोड़ी में आए। पूरे चुनाव के दौरान बादल भी रोड़ी में डटे रहे।
इस पूरे किस्से, रोड़ी के उपचुनाव की कहानी और देवीलाल की सियासी वापसी की कहानी को जानने के लिए हमें थोड़ा और भी पीछे जाना होगा। दरअसल देवीलाल इससे पहले 1952 और 1959 में सिरसा, 1962 में फतेहाबाद से विधायक रहने के अलावा पंजाब प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष और संयुक्त पंजाब के समय प्रताप सिंह कैरो की सरकार में संसदीय सचिव रह चुके थे। चौधरी देवीलाल 1968 से लेकर 1970 तक खादी बोर्ड के चेयरमैन थे। उस समय चौधरी बंसीलाल हरियाणा के मुख्यमंत्री थे। 1968 में कांग्रेस को 48 सीटों पर जीत मिली थी। गुलजारी लाल नंदा के अलावा बंसीलाल को मुख्यमंत्री बनवाने में देवीलाल का भी योगदान था। खुद देवीलाल ने 1968 में विधानसभा के चुनाव से खुद को दूर रखा था। खैर बाद में उनकी बंसीलाल से अनबन हो गई और 1971 में चौधरी देवीलाल ने कांग्रेस को अलविदा कह दिया। देवीलाल चौधरी चरण सिंह के नेतृत्व वाली भारतीय क्रांति दल में आ गए। इसके साथ ही देवीलाल ने किसान संघर्ष समिति बनाई। देवीलाल के यह संघर्ष का दौर था। 1972 में प्रदेश में विधानसभा के चुनाव हुए।
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चौधरी देवीलाल ने तोशाम और आदमपुर दो सीटों से चुनाव लड़ा। दोनों जगह देवीलाल आजाद उम्मीदवार थे। तोशाम से 1967 और 1968 के चुनाव में बंसीलाल विधायक बन चुके थे और उसके बाद वे चार साल तक प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। वहीं आदमपुर से भजनलाल 1968 में विधायक रहने के अलावा बंसीलाल की सरकार में मंत्री रहे। तोशाम विधानसभा सीट से कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ते बंसीलाल ने 30,934 वोट हासिल करते हुए चौधरी देवीलाल को 20,494 वोटों के अंतर से चुनाव हराया। चौधरी देवीलाल को 10,440 वोट ही मिले। वहीं आदमपुर में चौधरी भजनला को 28,928 जबकि देवीलाल को 17,967 वोट मिले। देवीलाल आदमपुर सीट से 10,961 वोटों के अंतर से चुनाव हारे। खैर इस हार के बाद कुछ समय के लिए देवीलाल राजनीति से दूर हो गए। राजनीति से तौबा कर ली। दो जगह बड़ी हार के बाद देवीलाल को गहरा सदमा लगा था। 1973 में ताऊ देवीलाल ने किसान संघर्ष समिति के बैनर तले पूरे प्रदेश में अभियान चलाया। किसानी के मुद्दे को लेकर देवीलाल प्रदेश के कोने-कोने में गए।The story related to Tau Devilal’s life haryana
देवीलाल ने आंदोलन चलाया। इसी दौरान उन्हें गिरफ्तार कर लिया। काफी समय तक अंबाला की जेल में रहे। 4 अक्तूबर 1973 को देवीलाल पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के आदेश पर जेल से रिहा किया गया। इसके बाद साल 1975 में प्रदेश के रोड़ी विधानसभा सीट पर उपचुनाव हुआ। 1972 में इस सीट पर हुए सामान्य विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के हरकिशन लाल कम्बोज ने 26581 वोट हासिल करते हुए आजाद उम्मीदवार साहिब सिंह को 14,807 वोटों के अंतर से पराजित किया। हरकिशन कम्बोज के निधन के बाद 1974 में रोड़ी में उपचुनाव हुआ। रोड़ी के उपचुनाव में ताऊ देवीलाल ने कांग्रेस के खिलाफ विपक्ष के उम्मीदवार थे। खुद चौधरी चरण सिंह ने देवीलाल की मदद की। भारतीय लोकदल का समर्थन उन्हें था। प्रकाश सिंह बादल ने तो उन्हें अपनी खाली चैक बुक देते हुए कहा कि चौधरी साहब जितने पैसे चाहिएं आप ले लें। ये वो दौर था जब जनसंघ के मंगलसैन भी देवीलाल के समर्थन में आए। देवीलाल की लोकप्रियता1 बढ़ रही थी। रोड़ी का उपचुनाव बंसीलाल के लिए बड़ा इम्तिहान था। एक तो देवीलाल लोकप्रिय नेता के रूप में उभर रहे थे। दूसरा विपक्षी दलों के नेता देवीलाल के साथ थे।
तीसरा रोड़ी चौधरी देवीलाल का गृह इलाका था। सिरसा जिला की विधानसभा सीट पर 1975 में हुए रोड़ी उपचुनाव पर सबकी निगाहें लगी थीं। बंसीलाल इस इम्तिहान में हर हाल में पास होना चाहते थे। बंसीलाल ने बड़ा दांव खेला। चुनाव में अपने रिश्तेदार इंद्राज बैनीवाल को देवीलाल के सामने मैदान में उतारा। रोड़ी के उपचुनाव में सरकार के मंत्रियों ने डेरा डाल लिया। पूरी सरकार रोड़ी में थी। देवीलाल को घेरने के लिए चौधरी बंसीलाल भी रोड़ी में डेरा डाले रहे। इस ऐतिहासिक उपचुनाव में देवीलाल ने बड़े अंतर से जीत दर्ज की और विधायक बने। इसके बाद देवीलाल ने पूरे प्रदेश में अभियान चलाया। किसानों के मुद्दे उठाए। उपचुनाव जीतने के कुछ दिन बाद ही चौधरी चरण सिंह ने भारतीय लोकदल की कमान देवीलाल को सौंप दी। यही वो दौर था जब साठ साल के छह फुट दो ईंच लंबे चौधरी देवीलाल हरियाणा की राजनीति में जननायक के रूप में उभरकर सामने आए। 1975 में रोड़ी का उपचुनाव जीतने के बाद ही देवीलाल ने प्रदेश में आंदोलन चलाया। जून 1975 से जनवरी 1977 तक इमरजैंसी में देवीलाल और प्रकाश सिंह बादल दोनों 19 महीने जेल में रहे। 1977 के विधानसभा चुनाव में देवीलाल के नेतृत्व में जनता दल ने 90 में से 75 सीटों पर जीत दर्ज की। 21 जून 1977 को देवीलाल पहली बार मुख्यमंत्री बने। उधर, पंजाब में अकाली दल को जीत मिली और प्रकाश सिंह बादल सीएम बने। बादल और ताऊ की यह दोस्ती का सफर ऐसे शुरू हुआ और फिर दोनों पगड़ी बदल भाई भी बने। बादल और देवीलाल के सीएम बनने के बाद दोनों का गांव चौटाला में ऐतिहासिक स्वागत हुआ था।
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