चार साल बाद India-China सैनिकों की वापसी शुरू, जानें क्या है यह समझौता?
India-China के बीच सीमा विवाद को लेकर एक विशेष समझौता हुआ है, जिसका उद्देश्य दोनों देशों के बीच कूटनीतिक संबंधों को सुधारना है। भारतीय और चीनी सेनाएं वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) से 28 और 29 अक्टूबर को अपने सैनिकों की वापसी की प्रक्रिया को पूरा करेंगी। चार वर्षों के बाद, दोनों देशों के बीच सैन्य वापसी की प्रक्रिया शुरू हुई है।
सैनिकों की वापसी के क्षेत्र
भारतीय सेना के सूत्रों के अनुसार, हाल के समझौतों का प्रभाव केवल देपसांग और डेमचोक क्षेत्रों पर होगा। अन्य संघर्ष क्षेत्रों के लिए यह समझौता लागू नहीं होगा। दोनों देशों के बीच हुए इस समझौते में यह भी कहा गया है कि भारतीय और चीनी सैनिक अप्रैल 2020 से पहले की स्थिति में लौटेंगे। दोनों देशों के सैनिक उन क्षेत्रों में गश्त करेंगे, जहां वे अप्रैल 2020 से पहले गश्त करते थे।
कमांडर स्तर की बैठकें जारी रहेंगी
इस समझौते के बावजूद, दोनों देशों के बीच नियमित रूप से ग्राउंड कमांडर्स की बैठकें जारी रहेंगी। गश्त दलों में एक निश्चित संख्या में सैनिकों की पहचान की गई है। किसी भी गलतफहमी से बचने के लिए, एक-दूसरे को गश्त करने की योजना पहले से सूचित की जाएगी।
अस्थायी ढांचे का निष्कासन
इसके अलावा, सभी अस्थायी संरचनाओं जैसे कि शेड या तंबू और सैनिकों को भी विवादित क्षेत्र से हटाया जाएगा। दोनों पक्षों ने इस क्षेत्र की निगरानी करने का निर्णय लिया है। देपसांग और डेमचोक में वे गश्त बिंदु होंगे, जहां भारतीय सैनिक पारंपरिक रूप से अप्रैल 2020 से पहले गश्त करते थे।
तनाव कम करने की दिशा में पहला कदम
भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा कि लद्दाख सीमा पर दो संघर्ष बिंदुओं पर सैनिकों की वापसी पहला कदम है। उन्होंने यह भी कहा कि तनाव कम करना अगला कदम है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भारत और चीन के बीच विश्वास और सहयोग बनाने में समय लगेगा।
भारत-चीन संबंधों का ऐतिहासिक संदर्भ
भारत और चीन के बीच सीमा विवाद का इतिहास काफी पुराना है, और यह न केवल भौगोलिक सीमाओं पर बल्कि राजनीतिक और कूटनीतिक पहलुओं पर भी प्रभाव डालता है। 1962 में हुए भारत-चीन युद्ध के बाद से, दोनों देशों के बीच संबंध तनावपूर्ण रहे हैं। पिछले कुछ वर्षों में, लद्दाख क्षेत्र में सैनिकों की तैनाती और गश्त के चलते टकराव की घटनाएं बढ़ी हैं।
देपसांग और डेमचोक क्षेत्र का महत्व
देपसांग और डेमचोक क्षेत्र दोनों ही रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। देपसांग मैदान की ऊँचाई और उसकी भौगोलिक स्थिति इसे एक संवेदनशील स्थान बनाती है, जबकि डेमचोक क्षेत्र सीमा पर भारत के लिए एक महत्वपूर्ण गश्त मार्ग है। इन क्षेत्रों में सैनिकों की तैनाती और गश्त की गतिविधियाँ दोनों देशों के बीच तनाव को बढ़ा सकती हैं।
आगे की चुनौतियाँ
हालांकि सैनिकों की वापसी एक सकारात्मक कदम है, लेकिन दोनों देशों के बीच कई चुनौतियाँ अभी भी शेष हैं। विश्वास की कमी, सामरिक खेल और जटिल कूटनीतिक समीकरण इसे और भी मुश्किल बना सकते हैं। समझौते की प्रभावशीलता इस बात पर निर्भर करेगी कि दोनों पक्ष इसे कितनी गंभीरता से लागू करते हैं।
एक नए युग की शुरुआत
इस समझौते के बाद, भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच की दूरी बढ़ाने के लिए यह एक सकारात्मक शुरुआत हो सकती है। यदि यह प्रक्रिया सफल होती है, तो यह दोनों देशों के बीच संवाद और सहयोग की नई संभावनाएँ खोल सकती है। उम्मीद है कि इससे दोनों देशों के बीच की स्थिति में स्थिरता आएगी और भविष्य में ऐसे और समझौतों की संभावना बढ़ेगी।
वैश्विक प्रतिक्रिया
इस समझौते के बारे में अंतरराष्ट्रीय समुदाय की भी नजरें हैं। कई देशों ने इस कदम का स्वागत किया है, और इसे भारत और चीन के बीच संबंधों में सुधार के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर के रूप में देखा जा रहा है। अंतरराष्ट्रीय राजनीति में भारत और चीन की स्थिति भी इस पर निर्भर करती है कि वे अपने द्विपक्षीय संबंधों को कैसे विकसित करते हैं।
भारत और चीन के बीच सैनिकों की वापसी का यह समझौता निश्चित रूप से दोनों देशों के बीच एक नए सिरे से बातचीत और सहयोग का आधार बना सकता है। यह एक महत्वपूर्ण कदम है, जो न केवल सीमा विवाद को सुलझाने में मदद करेगा, बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता और शांति को भी बढ़ावा देगा। इस प्रक्रिया को सफल बनाने के लिए, दोनों देशों को विश्वास और सहयोग के माहौल को बढ़ावा देने की आवश्यकता होगी।